नेताजी..माटी से जुड़ना होगा
हैंडपंप वाली पार्टी के नेता आशीर्वाद लेने के लिए निकल पड़े हैं।
राजनारायण सिंह, अलीगढ़: हैंडपंप वाली पार्टी के नेता आशीर्वाद लेने के लिए निकल पड़े हैं। जनता के बीच में जाकर अपने दादा और पिता की बातें बता रहे हैं। युवा हैं, जोश और उत्साह से भरे हैं, इसलिए समर्थकों का अपार प्रेम उमड़ पड़ा है। गोमत और हाथरस में उमड़े सैलाब से यह साबित भी हो गया कि बुजुर्ग उनकी आंखों में भविष्य के सपने देख रहे हैं। मगर, इस सैलाब को युवा नेता संभाल पाएंगे कि नहीं यह सवाल तलाशने की जरूरत है। दरअसल, रैलियों की भीड़ को दिल से जोड़ने की जरूरत है। मगर, युवा नेता अभी दल में ही बंधे हैं। खेतों और खलिहानों की बातें खूब करते हैं, मगर उन किसानों की बातें मंच के नीचे तसल्ली से नहीं सुनते। गोमत में तो एक बड़े किसान नेता ने यह बात कह भी दी। कहा कि तुम्हारे लिए लड़ाई लड़ रहे और तुम हम लोगों से बिना मिले चले गए।
संवेदना में भी सियासत
संवेदना के समय भी सियासत ठीक नहीं। ये वो भावनाएं होती हैं, जिसे रोक पाना मुमकिन नहीं होता। मगर, अभी पिछले दिनों सिधु बार्डर पर अनुसूचित जाति के युवक की निर्मम हत्या पर जमकर सियासत हुई। शहर में तनिक बात पर कैंडिल लेकर शोक संवेदना व्यक्त करने वाले दिखाई नहीं दिए। अनुसूचित जाति के युवक के लिए उनके पास दो शब्द और दो आंसू भी न थे। वरना तमाम ऐसे मामले आए, जब सियासतदार जरा-सी बात पर सड़कों पर उतर आते थे। उनके लिए तो मानों यह मामले मुद्दे बन जाया करते हैं, वो लपकने के लिए तैयार रहते हैं। मगर, सिधु बार्डर पर युवक की हत्या के बाद जिस तरह से अंतिम संस्कार में स्थिति उत्पन्न की गई, उसपर भी संवेदना नहीं जागी। कोई दल शोक संवेदना तक जताने आगे नहीं आया। भले ही अनुसूचित जाति के युवक की निर्मम हत्या पर दल मौन हों, सवाल तो उठेंगे ही।
ये पुलिस..नहीं सुनती किसी की
कानपुर के मनीष गुप्ता की हत्या हो या फिर आगरा में पुलिस हिरासत में अरुण की मौत का मामला हो, भले ही इनसे प्रदेश में तांडव मच जाए, मगर पुलिस को कोई फर्क नहीं पड़ता है। महीने दो महीने बाद ऐसी घटनाएं सामने आ जाती हैं, इन घटनाओं से पुलिस फिर भी कोई सबक नहीं लेती है। अभी पनेठी में एक मामले में दो सिपाही पहुंच गए, उन्होंने बिना वजह ही एक ठेकेदार को हड़का दिया। एक नेताजी ने पुलिस कर्मियों को रोकना चाहा, बोले- जब इनसे जुड़ा मामला नहीं है तो क्यों इनपर रौब गांठ रहे हो? नेताजी ने समझाया एक समाज से जुड़ा मामला है, अभी तिल का ताड़ हो जाएगा? मगर, पुलिस कर्मी कहां मानने वाले हैं, उन्होंने अपने सीनियर को फोन मिला दिया। नेताजी ने तसल्ली से समझाया कि जिन्हें पुलिस कर्मी फटकार रहे हैं, उनसे जुड़ा मामला है ही नहीं, तब कहीं जाकर मामला थमा।
इनकी तरफ भी देखिए हुजूर
कमल वाली पार्टी में टिकट के लिए दावेदार सक्रिय हो गए हैं। क्षेत्र से लेकर प्रदेश तक उन्होंने परिक्रमा शुरू कर दी है। कोई भी मौका मिलता है पलभर में आगरा पहुंच जाते हैं। यहां से सूचना मिलती है कि लखनऊ में बड़े नेता पहुंचे हैं तो तुरंत वहां रवाना हो जाते हैं, मगर बड़े नेताओं से बमुश्किल ही मुलाकात हो पा रही है। दावेदारों का दर्द यह है कि कम से कम लखनऊ तो नहीं, मगर आगरा वाले तो उनकी बात को सुनें, मगर वहां भी उनकी बात नहीं सुनी जा रही। इन दावेदारों की बात भी सही है। क्षेत्र में रहकर इन्होंने साढ़े चार साल तक खूब पसीना बहाया है। संगठन के लिए दिन-रात एक कर दिया। तमाम ऐसे नेता हैं, जिन्होंने पूरा जीवन ही संगठन को समर्पित कर दिया। उनकी तकलीफ है कि जब वह बात रखने जाते हैं तो उनकी तरफ देखा तक नहीं जाता है।