प्रकृति होगी समृद्ध तो जीवन होगा खुशहाल
पर्यावरण शब्द परि और आवरण से मिलकर बना है। इसका अर्थ है कि वे प्राकृतिक के साधन जिनहोंने प्रकृति को घेरा हुआ है।
अलीगढ़: पर्यावरण शब्द परि और आवरण से मिलकर बना है। इसका अर्थ है कि वे प्राकृतिक साधन जिन्होंने मनुष्य को घेरा हुआ है जिसके बिना मनुष्य का जीवन संभव नहीं है। जिनका प्रयोग करते-करते मनुष्य ने इनका दोहन करना प्रारंभ कर दिया है। जिसके कारण मनुष्य का जीवन असुरक्षित हो गया है। यह अफसोस की बात है कि लोग आज भी इसके महत्व को समझ नहीं पाए हैं और इसे नुकसान पहुंचाते रहते हैं। पर्यावरण की हानि करके वे अपने सर्वनाश को निमंत्रण दे रहे हैं। पर्यावरण संरक्षण के लिए हमें सर्वप्रथम इस धरती को प्रदूषण रहित करना होगा। प्रकृति का संरक्षण मूल रूप से उन सभी संसाधनों का संरक्षण है जो प्रकृति ने मानव जाति को भेंट किए हैं। प्रकृति अगर समृद्ध होगी तो जीवन खुद-ब-खुद खुशहाल हो जाएगा।
हम अपने पर्यावरण को प्रदूषण रहित बना सकते हैं यदि हम ज्यादा से ज्यादा पेड़ पौधे लगा सकें और अगर ऐसा न कर सकें तो कम से कम पेड़ों के कटान को ही रोक लें। ताकि पर्यावरण में आक्सीजन सही मात्रा में बनी रहे। प्रकृति की ओर से दिए गए यह सभी उपहार संतुलित वातावरण बनाने में मदद करते हैं। मनुष्य और अन्य जीव-जंतुओं के कारण वातावरण प्रदूषित होता जा रहा है। नदियों तालाबों के जल एवं भूमि का जल को तो मनुष्य ने प्रदूषित किया ही है साथ ही सागर के जल को भी नहीं छोड़ा है। पर्यावरण ने मानव को अनंत काल से अनेक संसाधन प्रदान किए हैं और मानव ने भी उनका भरपूर उपयोग किया है। हमें जिस भी वस्तु की जरूरत हुई है वो पर्यावरण से ही प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से हमें हासिल हुई है। जिससे हमारी आवश्यकताओं की पूर्ति हुई है और फिर भी हम इस पर्यावरण के प्रति निर्दयता दिखाने लगे। जनसंख्या बढ़ने के कारण संसाधनों का अभाव होने लगा तो हमने अत्यधिक दोहन कर इसका विनाश शुरू कर दिया। जिस प्रकृति ने हमें आश्रय दिया है हम उसी को नष्ट करने में लगे हैं। इसको प्रदूषित करने के बहुत से दुष्प्रभाव हैं। जैसे अणु के विस्फोट से रेडियोधर्मी पदार्थ निकले, ओजोन परत जो पराबैंगनी किरणों से रक्षा करती है उसका क्षरण एवं भूमि कटान से अत्यधिक ताप वृद्धि, पानी के प्रदूषित होने से पेड़ पौधों का विनाश होना, नए-नए रोग उत्पन्न होना एवं अन्य कई बुरे प्रभाव हैं।
इन परिस्थितियों को देखते हुए सन 1992 में ब्राजील में पृथ्वी सम्मेलन का आयोजन किया गया। जिसमें 174 देश शामिल हुए। उसके बाद जोहांसबर्ग में भी सन 2002 में पृथ्वी सम्मेलन का आयोजन हुआ। जिसमें पर्यावरण संरक्षण करने के उपाय सुझाए गए। जनसंख्या वृद्धि के कारण प्रदूषण भी बढ़ता जा रहा है जिसे नियंत्रण में लाना आवश्यक है। तभी हमारे पर्यावरण का संरक्षण हो सकेगा। मनुष्य दिन प्रतिदिन प्रगति करता जा रहा है और इस विकास के नाम पर प्रदूषण वृद्धि करता जा रहा है। इसके परिणामस्वरूप ध्रुव पर ग्लेशियर पिघल रहे हैं। पर्यावरण संरक्षण हमारी जिम्मेदारी है। सन 1986 में भारत की संसद ने पर्यावरण की सुरक्षा के लिए एक अधिनियम बनाया जिसे पर्यावरण संरक्षण अधिनियम कहते हैं। जब भोपाल में गैस लीक की दुर्घटना हुई थी तब इसे पारित किया गया। प्रकृति से ही हमें सभी वस्तुएं प्राप्त होती हैं जिनके बिना जीवन संभव नहीं है। इसलिए हमारी प्रकृति जितनी मजबूत होगी हमें प्रतिफल भी मजबूत व स्वस्थ मिलेगा। पर्यावरण संरक्षण हमारा फर्ज है, इस जिम्मेदारी को हम सबको मिलकर निभाना होगा।
- चंचल शर्मा, प्रधानाचार्य, महेश चंद डिमांड इंटर कालेज, कोटा खास, बरौली।