अलीगढ़ में विकसित होंगे मियावाकी जंगल, जानिए क्या है खासियत
पर्यावरण को लेकर चिंतित लोगों के लिए राहत वाली खबर है। जापान के मियावाकी वनों की तर्ज पर अब जनपद में भी पर्यावरण की सेहत सुधरेगी। अलीगढ़ में वन क्षेत्र काफी कम है। जगह के अभाव में वन क्षेत्रों का विस्तार नहीं हो पा रहा।
अलीगढ़, विनोद भारती। पर्यावरण को लेकर चिंतित लोगों के लिए राहत वाली खबर है। जापान के मियावाकी वनों की तर्ज पर अब जनपद में भी पर्यावरण की सेहत सुधरेगी। अलीगढ़ में वन क्षेत्र काफी कम है। जगह के अभाव में वन क्षेत्रों का विस्तार नहीं हो पा रहा। मियावाकी पद्धति से कम क्षेत्रफल और कम समय में ही नए घने वन क्षेत्र तैयार किए जाएंगे। इससे हरियाली तेजी से बढ़ेगी ही, पर्यावरण संरक्षण भी होगा। वन विभाग ने पहला मियावाकी वन बनाने के लिए कासिमपुर नहर के पास जमीन चिह्नित की है। यहां तीन साल में विभिन्न प्रजाति के करीब 16 हजार पौधे लगाए जाएंगे। इसके लिए इसी मानसून से काम शुरू कर दिया जाएगा। इसके अलावा निजी क्षेत्र के सहयोग से अन्य स्थानों पर भी मियावाकी वन तैयार करने की योजना वन विभाग ने बनाई है।
19 लाख रुपये का खर्च
जिले का 3,650 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र फल है। वन क्षेत्र मात्र 1.82 फीसद के करीब है। पर्यावरण के लिए सरकार वन क्षेत्र बढ़ाने पर जोर दे रही है। इसमें समस्या जमीन की है। नए जंगल तैयार करने के लिए वन विभाग के पास भी इतनी जमीन ही नहीं है। शहर में ऐसी ही स्थिति है, जिसके चलते सिटी फारेस्ट बनाने में समस्या है। ऐसे में यहां निजी क्षेत्र की मदद लेकर मियावाकी पद्धति से छोटे वन तैयार किए जाएंगे। रोटरी क्लब व निजी क्षेत्र के पर्यावरण प्रेमियों से भी बातचीत की जा रही है। ऐसे वन तैयार करने में करीब 19 लाख रुपये का खर्च आता है और तीन साल का समय लगता है।
ये है मियावाकी पद्धति
आमतौर पर जंगलों में पेड़ों की एक-दूसरे से दूरी काफी अधिक होती है। मियावाकी तकनीक में आधा से एक फीट की दूरी पर पौधे रोपे जाते हैं। इस पद्धति में जलवायु अनुकूल पौधे सघन रूप से लगाए जाते हैं। इससे पौधे सिर्फ ऊपर से ही सूर्य की किरणें प्राप्त करते हैं। सघनता की वज़ह से ये पौधे सूरज की रोशनी को धरती पर नहीं आने देते। इससे खरपतवार नहीं उग पाते हैं। पौधे ऊपर की ओर अधिक वृद्धि करते हैं। तीन वर्षों के बाद इन पौधों को देखभाल की आवश्यकता नहीं रहती। पौधों की वृद्धि 10 गुना व सघनता 30 गुना अधिक हो जाती है। जबकि, जंगल को पारंपरिक विधि से तैयार करने में अरसा लग जाता है। मियावाकी पद्धति से केवल 20 से 30 वर्षों में ही पौधे जंगल का रूप ले लेते हैं। जापान के पर्यावरणविद् डी अकीरा मियावाकी ने इस पद्धति को इजाद किया, इसलिए यह मियावाकी पद्धति के नाम से प्रसिद्ध है।
पर्यटकों को मिलेगा सुकून
भागदौड़ भरी जिंदगी में मनुष्य को फुर्सत के दो पल गुजारने के लिए शांति और सुकून चाहिए, जिसे हम प्रकृति के माध्यम से ही प्राप्त कर सकते हैं। रमणीय व हरे-भरे मियावाकी वन लोगों को खूब भाएंगे। बच्चों के लिए यहां झूले तक लगाए जा सकते हैं।
मुंबई, पुणे, बंग्लुरू समेत प्रदेश के नोएडा में ऐसे मियावाकी वन बनाए गए हैं। जनपद में कासिमपुर नहर के पास की जमीन से शुरूआत कर रहे हैं। मियावाकी वन निजी सहयोग से ही संभव है। कोई भी व्यक्ति या संस्था, जो मियावाकी वन बनाने में रूचि रखते हों, वह वन विभाग से संपर्क कर सकता है। विभाग तकनीकि मदद प्रदान करने के लिए तैयार है।
- दिवाकर कुमार वशिष्ठ, डीएफओ।