अलीगढ़ में लाखों का बजट हुआ पानी, जानिए क्‍या है मामला

ये उस कूड़े की कहानी है जो घर-घर से निकलता है। इसमें गीला भी होता है और सूखा भी। इन्हें अलग-अलग एकत्र करने के कुछ नियम हैं। उद्देश्य कूड़े काे सही तरीके से निस्तारित करने का है। एनजीटी ने भी कूड़े को अलग-अलग एकत्र करने के दिशा-निर्देश दे रखे हैं।

By Sandeep Kumar SaxenaEdited By: Publish:Wed, 24 Nov 2021 10:43 AM (IST) Updated:Wed, 24 Nov 2021 10:43 AM (IST)
अलीगढ़ में लाखों का बजट हुआ पानी, जानिए क्‍या है मामला
85 लाख रुपये का बजट इसी जनजागरण में पानी की तरह बहा दिया।

अलीगढ़, जागरण संवाददाता। ये उस कूड़े की कहानी है, जो घर-घर से निकलता है। इसमें गीला भी होता है और सूखा भी। इन्हें अलग-अलग एकत्र करने के कुछ नियम हैं। उद्देश्य कूड़े काे सही तरीके से निस्तारित करने का है। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने भी कूड़े को अलग-अलग एकत्र करने के दिशा-निर्देश दे रखे हैं। इन्हीं दिशा-निर्देशों के अनुपालन में नगर निगम ने फरवरी-मार्च में वृहद अभियान छेड़ा था। लखनऊ की निजी कंपनी को इसके लिए हायर किया गया। नुक्कड़ नाटक हुए, गाेष्ठियां की गईं, शिविर लगे, शहर भर में पेंटिंग कर दीवारों पर स्वच्छता और कूड़ा पृथककरण के संदेश भी दिए गए। 15 लाख काल, 20 लाख मैसेज कर लोगों को कूड़ा अलग करने की तकनीक बताई गई। 85 लाख रुपये का बजट इसी जनजागरण में पानी की तरह बहा दिया। मगर, कूड़े को अलग करने की तकनीक लोग सीख न सके। अफसर भी अभियान के बाद मौन हो गए। एक ही डस्टबिन (कूड़ेदान) में कूड़ा एकत्र होता है और एक ही जगह डाला जा रहा है। कूड़े की ये कहानी शहरवासियों के अलावा नगर निगम भी समझ लेता तो अलीगढ़ स्वच्छ सर्वेक्षण में इंदौर के साथ खड़ा होता।

कूड़े का ऐसे हो निस्‍तारण

गीला और सूखा कूड़ा अलग-अलग एकत्र करने से इसके निस्तारण में समस्या नहीं आती। गीले कूड़े से जैविक खाद बनता और सूखा कूड़ा प्लास्टिक, धातू, कांच आदि अलग करने के बाद निस्तारण किया जाता है। नगर निगम ने शहरभर में कूड़ेदान के जोड़े इसी उद्देश्य से लगाए हैं कि एक में गीला और दूसरे में सूखा कूड़ा डाला जाए। घरों से कूड़ा उठाने के लिए जो आटो टिपर वाहन जाते हैं, उनमें भी गीला और सूखा कूड़ा अलग-अलग लेने की व्यवस्था है। नगर निगम ने हरे और नीले रंग के कूड़ेदान भी बंटवाए थे। घरों से ये कूड़ेदान गायब हैं, सड़कों पर रखे कूड़ेदान भी उद्देश्य पूरा नहीं कर पा रहे। कई तो उखड़ चुके हैं। आटो टिपर वाहनों में गीला और सूखा कूड़ा अलग-अलग नहीं लिया जा रहा। कर्मचारी देखते तक नहीं कि कैसा कूड़ा वाहन में डाला जा रहा है। ये कूड़ा मथुरा रोड स्थित सालिड वेस्ट मैनजमेंट प्लांट में लाया जाता है। यहां सिर्फ 200 मीट्रिक टन कूड़ा ही जैविक खाद के रूप में निस्तारण होता है। बाकी 250 मीट्रिक टन कूड़ा वहीं एक स्थान पर डंप हो रहा है। ज्यादातर लोगों का कहना है कि कूड़ा अलग करने के बारे में उन्हें बताया नहीं गया। न ही आटो टिपर पर तैनात कर्मचारी उनसे गीला-सूखा कूड़ा अलग-अलग लेते है।

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