Special on Bhagat Singh Birth Anniversary : शादीपुर की माटी, आज भी कहती है भगत सिंह की कहानी Aligarh News

शहीदे आजम सरदार भगत सिंह ने अपने पांव रखकर अलीगढ़ की माटी को भी धन्य किया था। आजादी की लड़ाई के समय वह अलीगढ़ के शादीपुर गांव में आए थे और यहां बच्चों को पढ़ाने के लिए स्कूल खोला था।

By Sandeep SaxenaEdited By: Publish:Sun, 27 Sep 2020 03:41 PM (IST) Updated:Sun, 27 Sep 2020 03:41 PM (IST)
Special on Bhagat Singh Birth Anniversary : शादीपुर की माटी, आज भी कहती है भगत सिंह की कहानी Aligarh News
'मेरी मां नहीं, बल्कि भारत मां बीमार हैं।'

अलीगढ़ [राज नारायण सिंह] : शहीदे आजम सरदार भगत सिंह ने अपने पांव रखकर अलीगढ़ की माटी को भी धन्य किया था। आजादी की लड़ाई के समय वह अलीगढ़ के शादीपुर गांव में आए थे और यहां बच्चों को पढ़ाने के लिए स्कूल खोला था। करीब 18 माह बाद एक दिन अचानक भगतसिंह ने कहा, उनकी मां बीमार हैं, उन्हें घर जाना होगा। वे खुर्जा रेलवे स्टेशन पर पहुंचे और ट्रेन पर बैठते ही कहा, 'मेरी मां नहीं, बल्कि भारत मां बीमार हैं, अब मैं उन्हें आजाद कराकर ही लौटूंगा।'

अलीगढ़ जिला मुख्यालय से 40 किमी दूर पिसावा क्षेत्र का गांव शादीपुर जहां सरदार भगत सिंह  आए थे। आज भी उस गांव में स्कूल और तमाम ऐसी चीजें हैं, जो भगत सिंह की यादों को ताजा करती हैं। बताया जाता है कि घरवालों ने जब शादी का दबाव बढ़ाया तो भगत दिसंबर 1923 के उत्तराद्र्ध में घर से भाग निकले। शादीपुर के रहने वाले ठा. टोडरसिंह की भगत सिंह  से मुलाकात कानपुर में हुई। यहां महान क्रांतिकारी गणेश शंकर विद्यार्थी ने भगतसिंह को अलीगढ़ में कुछ दिन रहने को कहा और टोडर सिंह अपने साथ उन्हें शादीपुर ले आए। खेरेश्वरधाम मंदिर समिति के अध्यक्ष सत्यपाल सिंह बताते हैं कि भगत सिंह कुछ समय मंदिर में भी रहे थे। पहचान छिपाने के लिए भगत सिंह ने शादीपुर गांव में अपना नाम बदलकर बलवंत सिंह  रख लिया था। यहां उन्होंने  नेशनल स्कूल नाम से विद्यालय खोला। भगत सिंह बच्चों को पढ़ाने के साथ ही भक्ति की बातें भी बताते थे।   

खुर्जा जंक्शन से निकल गए 

शादीपुर गांव के बुजुर्ग लक्ष्मण सिंह  बताते हैं कि एक दिन भगत सिंह ने गांव के लोगों से कहा कि उनकी मां बीमार हैं और वह अपने घर जाएंगे। मां के स्वास्थ्य का मामला था तो गांव के लोगों ने रोका भी नहीं। गांव जलालपुर के रहने वाले ठाकुर नत्थन सिंह को सरदार भगत सिंह को खुर्जा जंक्शन तक छोडऩे के लिए भेजा गया। ट्रेन में बैठने के बाद भगत सिंहने नत्थन सिंह से कहा, मेरी भारत मां बीमार हैं, वे मुझे बुला रही हैं और वह कानपुर की तरफ चले गए। तब गांव के लोगों को पता चला कि उनके बीच एक महान क्रांतिकारी रह रहे थे। 23 मार्च 1931 में भगत सिंह को फांसी दी गई तो शादीपुर गांव रो पड़ा था।

chat bot
आपका साथी