अलीगढ़ के कई किसान पराली नहीं जलाते, खाद बनाकर उपज हैं बढ़ाते

वैसे तो इगलास क्षेत्र आलू की बेल्ट माना जाता है। लेकिन यहां काफी किसान आलू के बाद धान की खेती भी करते हैं। यहां के किसान धान की पराली को जलाते नहीं हैं उसे पशुओं के आहार के लिए उपयोग करते हैं।

By Mukesh ChaturvediEdited By: Publish:Sat, 24 Oct 2020 10:45 AM (IST) Updated:Sat, 24 Oct 2020 10:45 AM (IST)
अलीगढ़ के कई किसान पराली नहीं जलाते, खाद बनाकर उपज हैं बढ़ाते
अलीगढ़ के कई किसान एेसे हैं जो पराली की खाद बनाकर कर खेत में उपयोग करते हैं।

योगेश कौशिक, अलीगढ़ः  धान की पराली को खेतों में जलाने से जहां एक ओर प्रदूषण बढ़ रहा है। प्रशासन द्वारा पराली जलाने वाले किसानों के खिलाफ रिपोर्ट भी दर्ज कराई जा रही है। दूसरी ओर जिला मुख्यालय से 25 किमी दूर इगलास क्षेत्र के किसानों के लिए पराली (पुआल) संजीवनी साबित हो रही है। इससे बनी खाद ने रोग से मुक्ति ही नहीं दिलाई, आलू की पैदावार भी बढ़ा दी। यहां के किसान पराली से खाद बनाकर खेतों में उपयोग कर रहे हैं। जलाने का ख्याल तो दिमाग में आता ही नहीं है।

आलू की है बेल्ट 

वैसे तो इगलास क्षेत्र आलू की बेल्ट माना जाता है। लेकिन यहां काफी किसान आलू के बाद धान की खेती भी करते हैं। यहां के किसान धान की पराली को जलाते नहीं हैं उसे पशुओं के आहार के लिए उपयोग करते हैं। वहीं क्षेत्र के तमाम किसान ऐसे भी हैं जो पराली से खाद तैयार कर हजारों रु पये बचाने के साथ अपनी जमीन की उर्वरा शक्ति बढ़ा रहे हैं।

इन्होंने तैयार की खाद 

क्षेत्र के गांव तोछीगढ़ के किसान अजीत सिंह, विकास पचौरी, मोहन सिंह, रवेंद्र सिंह, कपिल कुमार, हरेंद्र सिंह, अजय कौशल, देवेंद्र सिंह, गांव सीतापुर के संतोष कुमार, गांव नाया के भूपेंद्र सिंह, गांव वैरामगढ़ी के कंचन सिंह, ओमवीर सिंह आदि पराली से खाद तैयार कर रहे हैं। इन किसानों का कहना है कि पराली से तैयार खाद से खेत में रोग भी नहीं आया और पैदावार भी बढ़ गई। उन्होंने बताया कि इस विधि को अपनाने में कोई खास खर्चा भी नहीं आता है और खाद की लागत भी आधी हो जाती है।

ऐसे तैयार करते हैं खाद

कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार पुआल को छोटे टुकड़ों में काटकर एक गड्ढा खोदकर उसमें डालते हैं। खाद तैयार करने के लिए गड्ढ़ा छाव में होना चाहिए। इसके बाद उसमें गोबर व पानी मिलाया जाता है। अच्छा खाद तैयार करने के लिए नीम ऑयल भी प्रयोग करते हैं। 15-20 दिन में खाद तैयार हो जाती है। इसे खेत में डालने के बाद जुताई की जाती है। कृषि रक्षा इकाई के प्रभारी बनवारीलाल शर्मा ने बताया कि वहीं धान की कटाई के बाद खेत में मिट्टी पलट हल से जुलाई कर दें। इसके बाद खेत में पानी लगा दें। प्रति हेक्टेयर दो से पांच किलो यूरिया या डीकम्पोजर का प्रयोग करने से फसल अवशेष जल्द सड़ जाएंगे। ऐसा करने से जमीन की उर्वरा शक्ति बढ़ेगी। 

जलाने से होता है सूक्ष्म जीवों को नुकसान

कृषि रक्षा अधिकारी ने बताया कि फसल अवशेष को जलाना किसी भी दृष्टि से सही नहीं है। खेत में बचे फसल अवशेष का जैविक खाद के रूप में इस्तेमाल करें। इनके जलाने से मिट्टी की ऊपरी परत में मौजूद सूक्ष्म जीवों को नुकसान होता है। इससे मिट्टी की जैविक गुणवत्ता प्रभावित होती है। खाद बनाने से पर्यावरण भी सुरक्षित रहेगा साथ ही मिट्टी की सेहत में भी सुधार होगा। पैदावार भी पहले की तुलना में बढ़ेगी।

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