अलीगढ़ के महावीरगंज में आए बिना पूरी नहीं होती किसी भी समारोह की तैयारी Aligarh news
महावीरगंज दाल मंडी जिले की पहचान है। मुगलशासन से ही इस बाजार की अपनी अलग पहचान रही है। पुराने शहर के बीचों -बीच जीटी रोड व खैर बाईपास रोड से भी यह बाजार जुड़ा हुआ है। यहां प्राचीन घी की मंडी भी है।
अलीगढ़, जेएनएन : किसी भी शहर की शान उसके बाजार होते हैं। इनकी पहचान भी अलग होती है, जो दूसरे जिलों -शहरों तक में चर्चा का विषय बनते हैं। अलीगढ़ के भी कई बाजार इसी तरह के हैं। इनमें से एक महावीर गंज दाल मंडी है। अब इसके नाम से यह अंदाजा न लगा लें कि यहां दाल की मंडी लगती हो। करीब दो सौ साल पहले यहां दाल की मंडी थी, लेकिन अब तो तरह -तरह की दुकान हैं। हां, भगवान हनुमान जी की भक्ति इस बाजार के नाम से जुड़ गया। बाजार मेंं प्राचीन हनुमान का मंदिर हैैै। इसकेे प्रति पूरे शहर के लोगों की आस्था है। करीब दो सौ साल पहले क्षेत्र के लोगों ने इसे बनवाया था, जिसे महावीर हनुमान मंदिर नाम से पहचान मिली।
मुगलशासन काल से है बाजार
महावीरगंज दाल मंडी की जिले में खास पहचान हैैै। यह बाजार मुगलशासन काल से ही हैैै। पुराने शहर के बीचों -बीच जीटी रोड व खैर बाईपास रोड से भी यह बाजार जुड़ा हुआ है। समय केे साथ इसकेे स्वरूप में बदलाव आया है। यह पहले घी की मंडी भी रही है। लेकिन, अब चावल, आटा, मैदा, सूजी, चीनी, वनस्पति घी, गरी गोला की थोक दुकानें हैं।
अतीत के आइने में मंडी
अपने जीवन के 70 बसंत देख चुके कारोबारी ज्ञानचंद्र वार्ष्णेय ने बताया कि महावीरगंज दाल मंडी में पहले दाल-दलहन की भी खरीद फरोख्त होती थी। कारोबारी खुद दाल व चावल की फसल कर उनको बेचते थे। इस बाजार के एक छोर पर दाल-चावल, आटा, सूजी व मैदा बिकता था, हनुमान मंदिर के दूसरी दिशा में घी की मंडी है। यहां 200 साल से अधिक घी का कारोबार करने वाले कारोबारियों की संतान अपने पुरखों का काम संभाले हुए हैं।विशाल भगत का कहना है कि उनके दादा ने चावल का काम शुरू किया था। इनके बाद 70 साल पहले विशाल के पिता ने काम संभाला। चावल का थोक कारोबार आज भी चल रहा है। इसकी जिलेभर में सप्लाई होती है। ब्रांडेड चावल ही हमेशा बिका है। दूसरे जिले के फुटकर व्यापारी भी मोबाइल से ऑर्डर देकर डिलीवरी मंगाते हैं।
बाजार पर विश्वास
इस बाजार पर लोगों को अधिक भरोसा रहता हैैै। रेट के लेकर किसी को शक तक नहीं होता। विवाह समारोह की तैयारी इस बाजार में आए बिना पूरी नहीं होती। व्यापारी ज्ञान स्वरूप किराने वालों का कहना है कि पिछले 60 साल से वे दुकान कर रहे है। इनसे पहले उनके पिता परचून की दुकान को संभालते थे। इस बाजार में गुणवत्ता के साथ बहुत कम मुनाफे पर खाद्य वस्तुओं की बिक्री की जाती है। शादी-वैवाहिक समारोह में प्रयोग होने वाले किराना सामान थोक के भाव ही दिए जाते हैं। महावीर गंज के पिछले हिस्से में कन्फेक्शनरी बाजार है। वहीं दूसरे छोर पर पन्ना गंज में खाने के मसाले व मेवा की थोक दुकानें हैं। इसके बराबर गुड़ की मंडी थी। जहां तांगा रुका करते थे। बारहद्वारी के पास नगर पालिका का ऑफिस होता था। यहां भी खाली जगह थी। ग्रामीण अंचल से आने वाले ग्राहक अपनी बैल गाड़ी व तांगा यहीं खड़ा करते थे।