कारगिल में गौरव गाथा लिखकर माटी को महका गए अलीगढ़ के लाल Aligarh news

कारगिल की चोटी पर फतह करने वाले रणबांकुरों में अलीगढ़ के भी जवान थे। यहां की माटी ने अपने तीन बहादुर जवानों को न्यौछावर कर दिया था। कारगिल की चोटी से दुश्मनों का पता लगाने वालों में अलीगढ़ के नरेश सिंह भी थे।

By Anil KushwahaEdited By: Publish:Mon, 26 Jul 2021 05:42 AM (IST) Updated:Mon, 26 Jul 2021 06:45 AM (IST)
कारगिल में गौरव गाथा लिखकर माटी को महका गए अलीगढ़ के लाल Aligarh news
शहीद बेटे की प्रतिमा को कपड़े से साफ करती मां।

राजनारायण सिंह, अलीगढ़ । कारगिल की चोटी पर फतह करने वाले रणबांकुरों में अलीगढ़ के भी जवान थे। यहां की माटी ने अपने तीन बहादुर जवानों को न्यौछावर कर दिया था। कारगिल की चोटी से दुश्मनों का पता लगाने वालों में अलीगढ़ के नरेश सिंह भी थे। सौरभ कालिया के साथ नरेश सबसे पहले कारगिल चोटी पर पहुंचे थे। दुश्मन से मुकाबला करते हुए वह शहीद हो गए। अतरौली राजगांव के राजवीर की भी कहानी प्रेरणा से भरी हुई है। गोरई के गांव वास खेमा गांव के प्रेमपाल सिंह ने भी देश के लिए जान न्यौछावर कर दी।

इंटर की पढ़ाई के बाद सेना में भर्ती

गौंडा क्षेत्र के छोटी बल्लभ के नरेश सिंह 18 फरवरी 1992 को इंटर की पढ़ाई करने के बाद सेना में भर्ती हो गए थे। नरेश के अंदर बचपन से ही देश भक्ति की भावना भरी पड़ी थी। 28 अप्रैल 1996 में अतरौली के महका निवासी कल्पना से परिणय सूत्र में बंध गए। 1999 में उन्हें कारगिल में थे। नरेश सिंह सौरभ कालिया के साथ सबसे पहले कारगिल चोटी पर चढ़े थे। उन्हें मिलाकर कुल पांच जवान थे। तभी उन्हें पता चला कि पाकिस्तानी सैनिकों ने कारगिल चोटी पर घुसपैठ कर ली है। सामने दुश्मनों की पूरी टुकड़ी थी। ये सिर्फ पांच थे। संख्या में कम होने पर भी उन्होंने पाक सैनिकों को ललकारा। कुछ ही देर में पाक सैनिकों ने पांचों को अपने कब्जे में ले लिया। सौरभ कालिया के साथ नरेश सिंह भी थे। दुश्मनों ने उनके शरीर को अंग-भंग कर दिया गया। करीब एक महीने बाद नरेश का शव मिला था।

मां के लिए तो आज भी जिंदा है बेटा

गोरई के गांव वास खेमा के प्रेमपाल सिंह की बहादुरी पर आज भी पूरा गांव गर्व करता है। 12वीं तक की पढ़ाई की थी। उसी के बाद सेना में भर्ती हो गए। पिता शिव सिंह और मां वीरमती देवी उस समय बेटी की शादी की तैयारी कर रही थीं। तभी कारगिल में युद्ध छिड़ गया। युद्ध में वह बहादुरी से लड़ते हुए शहीद हो गए। बेटा के शव को देखकर मां का बुरा हाल था। उन्होंने सीने पर पत्थर रखकर उस समय कहा भी, मुझे गर्व है बेटा तुने देश की के लिए अपने प्राण न्यौछावर कर दिए। 1999 से आज भी प्रेमपाल की मां वीरमती अपने बेटे की प्रतिमा के पास भोजन रखती हैं। उनके लिए बिस्तर लगातीं हैं। चारपाई के सिरहाने पानी आदि रखतीं हैं। वीरमती कहतीं हैं कि देश पर मर मिटने वाले कभी मृत्यु को प्राप्त नहीं होते, मेरा बेटा शहीद हुआ है आज भी वो मेरे आसपास ही है।

साथी को बचाने में हो गए शहीद

अतरौली के गांव राजगांव निवासी शहीद सूबेदार राजवीर सिंह की बहादुरी की खुशबू गांव की माटी में आज भी महक रही है। राजपुर गांव के डिप्टी सिंह बताते हैं कि राजवीर को पहली तैनाती कश्मीर में मिली। कारगिल युद्ध उनका एक साथी दुश्मनों के बीच घिर गया था। राजवीर सिंह को पता था कि गोलियों के बीच में साथी तक पहुंचना मौत के मुंह में जाना है, मगर वो पीछे नहीं हटे। साथी को बचाते हुए वह दुश्मनों की गोलियों शिकार हो गए। राजवीर सिंह की पत्नी रामवती देवी को पति की शहादत पर गर्व है।

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