शहर में 12 द्वारों से किस बाजार की बनी पहचान, जानिए Aligarh news
शहर के बीचों-बीच बसे बारहद्वारी बाजार की रोचक कहानी है। क्योंकि अमूमन बारहद्वारी बाजार का नाम आते ही लोगों के जेहन में यह उतर आता है कि यहां 12 द्वार होंगे? इसी द्वार से लोगों का आना जाना होता होगा।
राजनारायण सिंह, अलीगढ़ : शहर के बीचों-बीच बसे बारहद्वारी बाजार की रोचक कहानी है। क्योंकि अमूमन बारहद्वारी बाजार का नाम आते ही लोगों के जेहन में यह उतर आता है कि यहां 12 द्वार होंगे? इसी द्वार से लोगों का आना जाना होता होगा। इसलिए इसका नाम बारहद्वारी पड़ा है। मगर, यहां बड़े द्वार आजतक किसी को नहीं दिखे। इसके पीछे की कहानी बड़ी दिलचस्प है।
आजादी सेे पहले बसा था बाजार
बारहद्वारी बाजार आजादी से पहले का बसा हुआ है। ऐसा बताया जाता है कि बाजार के पास ही एक प्राचीन इमारत थी। उस इमारत में प्रतीक स्वरुप 12 द्वार बने हुए थे। बड़ी इमारत होने के चलते बाजार में आने-जाने वाले लोगों की निगाहें उसपर पड़ जाया करती थीं। हर किसी की निगाह इमारत पर बने 12 द्वारों की ओर पड़ती थी। धीरे-धीरे लोगों की जुबान पर 12 द्वार रटता चला गया और यह बाजार बारहद्वारी के रुप में प्रसिद्ध हो गया। लोगों की जुबान पर यह नाम ऐसा चढ़ा कि यहां के लोगों ने अन्य किसी नाम को स्वीकार नहीं किया। देश आजाद हुआ, धीरे-धीरे बाजार गुलजार होने लगा। दुकानें बढ़ी और रौनक बढ़ती चली गई। आज यहा शहर के मुख्य बाजारों में शुमार है।
सुगंध से होती है सुबह
अमूमन बाजारों में कपड़े, जूते-चप्पल आदि के शोरूम और दुकानें होती हैं। शटर उठने के बाद बाजार शुरू होता है। मगर, बारहद्वारी बाजार धनिया, अदरक की सुंगध से शुरू होता है। सुबह दस बजे तक मसालों की महक से यह महक उठता है। दरअसल, 50 साल से भी अधिक समय से यहां सब्जी मंडी लगा करती है। बाजार के पास प्राचीन घंटाघर था। जहां अंग्रेजों ने घड़ी लगाई थी। यहीं पर सब्जी मंडी लगा करती है। चूंकि पुराना शहर है इसलिए बाजार के चारों ओर घनी आबादी है। इसलिए हमेशा भीड़-भाड़ बनी रहती है। बाजार में खड़े मसालों की भी बिक्री होती है। इसलिए खड़ी धनिया, हल्दी और मिर्च का तड़का यहां हमेशा लगा रहता है। यहां से निलकने वालों के नाक तक मसालों की खुशबू जरूर पहुंचती है।
क्या कहते हैं दुकानदार
बारहद्वारी बाजार के पास पुराने समय में सराय थी। यहां मुसाफिर रुका करते थे। आज से 50 साल पहले साधन की अच्छी सुविधा नहीं होती थी। ग्रामीण क्षेत्र से व्यापारी बैलगाड़ी आदि से आया करते थे। वो रात में सराय में रुक जाया करते थे। दूसरे दिन खरीदारी करके फिर अपने गांव को लौटते थे। उस समय बारहजद्वारी बाजार की शान हुआ करती थी। तब तो नया शहर था नहीं। इसलिए लोग बारहद्वारी और आसपास के बाजारों में टहलने आया करते थे। यहां की रौनक उस समय के हिसाब से खूब चर्चित थी।
संजीव रतन अग्रवाल, कारोबारी
भले ही बड़े माल और शोरूम बन जाएं, मगर आज भी बारहद्वारी बाजार का कोई तोड़ नहीं है। यहां चारों ओर पुराने बाजार हैं। इसलिए सब्जी, कपड़े, जूते-चप्पल, किराना, तिरपाल, रस्सी, दोने-पत्तल आदि सब चीजें मिल जाया करती हैं। तमाम ऐसी जरूरतों के सामान इस बाजार में मिलते हैं कि सेंटर प्वाइंट और मैरिस रोड के लोगाें को भी कई बार यहां आना पड़ता है। पुराने लोग आज भी इस बाजार को तरजीह देते हैं।
मयंक कुमार, दुकानदार