आधुनिकता के दौर में बढ़ रहा उम्मींदों का बोझ, तनाव से टूट रही जिंदगी की डोर,जानिए कैसे Aligarh News

आधुनिकता के इस दौर में लोग तनाव की गिरफ्त में आकर अपनी जान गवां रहे हैं। खासकर लाकडाउन अवधि में जिले में पिछले तीन महीने में ही 86 लोग खुदकुशी कर चुके हैं। जिनमें किशोर उम्र से लेकर युवा व 70 साल के बुजुर्ग तक शामिल हैं।

By Sandeep Kumar SaxenaEdited By: Publish:Sat, 19 Jun 2021 02:06 PM (IST) Updated:Sat, 19 Jun 2021 02:06 PM (IST)
आधुनिकता के दौर में बढ़ रहा उम्मींदों का बोझ, तनाव से टूट रही जिंदगी की डोर,जानिए कैसे Aligarh News
पुलिस का आंकड़ा देखें तो 372 लोग विभिन्न कारणों से खुदकुशी कर चुके हैं।

अलीगढ़, जेएनएन। आधुनिकता के इस दौर में लोग तनाव की गिरफ्त में आकर अपनी जान गवां रहे हैं। खासकर लाकडाउन अवधि में जिले में पिछले तीन महीने में ही 86 लोग खुदकुशी कर चुके हैं। जिनमें किशोर उम्र से लेकर युवा व 70 साल के बुजुर्ग तक शामिल हैं। इनमें युवाओं के खुदकुशी कर लेने की सबसे अधिक घटनाएं हो रही है। जो आने वाली पीढ़ी के लिए बेहद चिंता का विषय है। वे तनाव और छोटी -छोटी बातों पर भी खुदकुशी करने में परहेज नहीं कर रहे हैं। युवाओं में सहनशक्ति की कमी भी खुदकुशी की एक बड़ी वजह मानी जा रही है। पिछले तीन वर्षों का ही पुलिस का आंकड़ा देखें तो 372 लोग विभिन्न कारणों से खुदकुशी कर चुके हैं।

 10 जून को लाकडाउन में क्वार्सी के चंदनियां इलाके में रहने वाले युवक ने नौकरी छूट जाने व पत्नी के मायके में चले जाने पर फंदे पर झूलकर खुदकुशी कर ली।

 13 जून को सासनीगेट के सराय हरनारायण में युवक ने काम न मिल पाने पर घर में ही फंदे पर झूलकर खुदकुशी कर ली।

घरेलू कलह व रोजगार की चिंता

घरेलू कलह, रोजगार की चिंता व तनाव को लोग सह नहीं पा रहे हैं और संघर्ष की बजाए खुदकुशी जैसी कमजोर स्थिति को चुन रहे हैं। यही कारण है कि बीते तीन माह में ही आत्महत्या के 86 मामले सामने आए हैं। इनमें से अधिकतर युवाओं से जुड़े मामले डिप्रेशन को लेकर थे। जिनमें सर्वाधिक मामले फांसी व विषाक्त पदार्थ सेवन के शामिल हैं। हालांकि खुदकुशी करने वालों में महिलाओं की संख्या कहीं अधिक है। जिले में तीन साल में खुदकुशी के 372 मामले सामने आ चुके हैं।

देश में खुदकुशी के बढ़ रहे मामले बेहद चिंताजनक हैं। इसके पीछे सबसे बड़ा कारण डिप्रेशन है। ऐसा करने वाले लोग हमेशा क्लू देने लग जाते हैं, बस जरूरत उन्हें भांपने की है। जब भी ऐसा महसूस हो तो उसे सीधे सलाह न दें, पहले उससे बात करें फिर उसे आशावादी बनाते हुए सलाह दें कि जिंदगी बेहद कीमती है।

- डा. अंतरा गुप्ता, मनोचिकित्सक

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