लोगों की सुरक्षा में तैनात खाकी ही असुरक्षित, भीड़ तंत्र का शिकार हो रही पुलिस Aligarh news
कोरोना काल में लोग घरों में सुरक्षित हैं क्योंकि बाहर खाकी अपनी जान की परवाह किए बिना सड़कों पर डटी हैं। पुलिस का संवेदी चेहरा शायद पहले कभी न दिखा होगा। इन हालातों में भी खाकी पर हमला होना ठीक नहीं है। अकराबाद में पुलिस वालों को घेरकर पीटा गया।
अलीगढ़, जेएनएन । कोरोना काल में लोग घरों में सुरक्षित हैं, क्योंकि बाहर खाकी अपनी जान की परवाह किए बिना सड़कों पर डटी हैं। पुलिस का संवेदी चेहरा शायद पहले कभी न दिखा होगा। इन हालातों में भी खाकी पर हमला होना ठीक नहीं है। अकराबाद में पुलिस वालों को घेरकर पीटा गया। दर्जनों की भीड़ के आगे तीन पुलिसकर्मी बेबस हो गए। ये घटना हमें सोचने पर मजबूर करती हैं? कि हम किस समाज का हिस्सा हैं? और किस ओर जा रहे हैं? पुलिस की चूक थी कि संवेदनशील गांव की जानकारी होने के बावजूद सिर्फ तीन लोग गए। हमला जानलेवा था। दारोगा चाहते तो पिस्टल के बूते भीड़ को तितर-बितर कर सकते थे। लेकिन, दारोगा ने संयम दिखाया। बहरहाल, कुछ भले लोग भी थे, जिन्होंने बीचबचाव किया। अकराबाद में पहले भी हमला हो चुका है। कड़ी कार्रवाई हुई है। लेकिन, सबक सिखाना जरूरी है, ताकि भविष्य में ऐसा न हो सके।
कहीं सख्त, कहीं नरम
वर्तमान में संकट का ग्राफ भी ऊपर-नीचे हो रहा है। लेकिन, लोगों की लापरवाही कम नहीं हो रही है। इसमें पुलिस को ही सबसे बड़ी जिम्मेदारी निभानी है। कुछ दिनों से पुलिस सख्त हुई है। चेकिंग कड़ी हो गई है। लेकिन, समरूपता नजर नहीं आती। कुछ जगहों पर पुलिस की मुस्तैदी ऐसी है कि परिंदा भी बाहर न निकल पाए तो कुछ इलाकों में मानो खुली छूट दे दी गई है। उदाहरण के तौर पर द्वितीय सर्किल के कई इलाकों में तगड़ी बैरिकेटिंग रहती है। वहीं कुछ इलाके ऐसे हैं कि पुलिस वाले देखकर भी अनदेखी करते हैं। कहीं सख्त और कहीं नरम वाले माहौल में एकरूपता आना जरूरी है। सवाल तब उठते हैं कि जब पुलिसकर्मी आपात सेवाओं के लोगों को भी बेवजह परेशान करते हैं। माना कि लाकडाउन की आड़ में शरारतीतत्व सक्रिय हैं। लेकिन, अनुभवी खाकी को इसकी पहचान करके प्रताड़ना वाले रास्ते पर नहीं जाना चाहिए।
धाक मत जमाइये, नाम चमकाइये
पुलिस विभाग में अक्सर कार्रवाई व शिकायतों के आधार पर दारोगाओं को इधर से उधर किया जाता है। लेकिन, इस बार वास्तविकता देखकर हुआ फेरबदल अच्छा है। कप्तान ने 78 दारोगाओं को नई जिम्मेदारी दी है। ये वो दारोगा है, जो लंबे समय से एक ही जगह पर टिके थे। इनमें कई ने अपने क्षेत्र में ऐसी धाक जमा ली थी कि लोग त्रस्त थे। हफ्ताबंदी वाला खेल चलता था। चूंकि तंग गलियों वाले इलाकों में किसी की नजर नहीं जाती। शिकायत हो भी जाए तो ''कृपा'' ऐसी होती है कि टस से मस न हो सकें। दूसरी तरफ, कई दारोदाओं ने अपना नाम भी चमकाया है। उनके जाने के बाद इलाकों में कमी भी खलेगी। हमें ऐसे ही पुलिसकर्मियों की जरूरत है। खैर, ऐसे बदलाव जनता के लिए ही लाभकारी होते हैं। उम्मीद है कि नई जिम्मेदारी के बाद सभी पुलिसकर्मी धाक जमाना नहीं, बल्कि नाम चमकाना पसंद करेंगे।
बताओ तो सही, फौरन मिलेगी ''मदद''
जिले के मुखिया इन दिनों खूब दौड़ लगा रहे हैं। अपराध नियंत्रण पर काम करना तो मुखिया का कर्तव्य है। लेकिन, अब बरसों से सुस्त पड़ी बारीक चीजों पर भी ध्यान दिया जा रहा है। भौकाल के बीच पुलिस लाइन व थानों के बैरक चमक उठे हैं। साफ-सफाई अव्वल दर्जे की है। डेढ़ माह में कोई विभाग ऐसा नहीं छूटा, जहां निरीक्षण न हुआ हो। फोरेंसिक से लेकर एलआइयू वालों के भी कान खड़े हो गए हैं। इतनी भागदौड़ में शांत पड़े विभागों में भी जान आ गई और खलबली मची पड़ी है। मुखिया का फंडा है कि जहां दिक्कत मिले, उसे तुरंत दूर किया जाए। वरना पहले कभी इतनी सुविधाएं या थानों के लिए 40-40 हजार रुपये आवंटित नहीं हुए। माहौल ऐसा है कि कहीं परेशानी बताओ तो सही। ग्रांट रूपी ''मदद'' फौरन मिलती है। लेकिन, काम में लापरवाही करने वालों के लिए ''माफी'' की भी गुंजाइश नहीं है।