ये हैं अलीगढ़ के मुद्देः आरजू ये है! इनको संसद में आवाज मिले

केंद्र सरकार ने जीएसटी लागू कर दिया लेकिन इसके अमल में आ रही मुश्किलें हैैं। राममंदिर इस चुनाव में बहस का केंद्र नहीं लेकिन यह मुद्दा अक्सर बहस में रहता है।

By Mukesh ChaturvediEdited By: Publish:Thu, 18 Apr 2019 01:25 AM (IST) Updated:Sun, 19 May 2019 01:23 PM (IST)
ये हैं अलीगढ़ के मुद्देः  आरजू  ये है! इनको संसद में आवाज मिले
ये हैं अलीगढ़ के मुद्देः आरजू ये है! इनको संसद में आवाज मिले

अलीगढ़ (जेएनएन)। केंद्र सरकार ने जीएसटी लागू कर दिया लेकिन इसके अमल में आ रही मुश्किलें हैैं। राममंदिर इस चुनाव में बहस का केंद्र नहीं लेकिन यह मुद्दा अक्सर बहस में रहता है। कश्मीर में धारा 35ए और धारा 370 हटाने पर अक्सर चर्चाएं होती हैैं। अलीगढ़ मुस्लिम विवि का अल्पसंख्यक स्वरूप और अनुसूचित जाति को आरक्षण का मुद्दा देशभर में बहस का केंद्र हो चुका है। यह सवाल अक्सर उठता है कि उप्र में नोएडा से अलग हटकर विदेशी कंपनियां क्यों आने से घबराती हैैं। एक मल्टीनेशनल के मुंबई ऑफिस में कार्यरत ऋचा नोएडा ट्रांसफर पर अभी भी क्यों घबराती हैैं? वह क्यों सोचती हैैं कि यूपी में लड़कियां अभी भी सुरक्षित नहीं। अलीगढ़ को गंगाजल मिलने का प्रोजेक्ट क्यों छोटी सी बाधा से रुक जाता है। ट्रैफिक जाम हर रोज हजारों घंटे बर्बाद करता है लेकिन ङ्क्षरग रोड आधी बनकर क्यों रह जाती है?  समस्याओं को लेकर आंदोलन होते हैं, लेकिन हल नहीं होते। अब लोकसभा चुनाव का वक्त है, राजनीतिक दल क्षेत्र, प्रदेश व राष्ट्रीय मुद्दों के सहारे चुनावी समर में हैं। अलीगढ़ के लोगों को भी कई बड़ी समस्याओं के निदान की उम्मीद प्रत्याशियों से है। वे चाहते हैं कि जीतने के बाद प्रत्याशी अपने वादे न भूले। लोगों की समस्याओं का ध्यान रखे। लगभग सभी राजनीतिक दलों ने अपने घोषणा पत्र तैयार किए हैं, जिनमें कुछ मुद्दे स्थान ले पाए हैं, कुछ रह गए हैं। ऐसे ही प्रमुख नौ मुद्दों को दैनिक जागरण ने सभी के सामने रखने की कोशिश की है। चुनाव प्रचार के दौरान इन मुद्दोंं को प्रमुखता से उठाया। लोगों के साथ विचार-विमर्श किया। एक्सपर्ट पैनल की मदद से तीन श्रेणियों में विभाजित किया है। पहला, अलीगढ़ लोकसभा क्षेत्र के राष्ट्रीय महत्व के मुद्दे। दूसरे, आपके लोकसभा क्षेत्र के प्रदेश स्तरीय और तीसरे स्थानीय स्तर के हैं। प्रत्येक श्रेणी में तीन-तीन मुद्दों को शामिल किया गया। इस प्रकार जनता के कुल नौ मुद्दों को छांटकर सबके समक्ष लाया जा रहा है।

अब आगे

लोकसभा चुनाव के परिणाम आने के बाद लोकसभा क्षेत्र के सांसद को इन मुद्दों की कॉपी सौंपी जाएगी और उनसे अनुरोध किया जाएगा कि वो इन मुद्दों को संसद में उठाएं और समाधान की ओर ले जाएं। हमारी भूमिका यहीं खत्म नहीं होगी। हम आने वाले पांच वर्षों तक इस पर पूरी नजर रखेंगे कि सांसद ने इन मुद्दों पर क्या किया? इसकी जानकारी खबरों के माध्यम से लगातार आप तक पहुंचाई जाएगी।

यह है घोषणा पत्र

(1) राष्ट्रीय मुद्दे

क- हाईकोर्ट खंडपीठ को न्याय दीजिए

पश्चिमी उत्तर प्रदेश में हाईकोर्ट खंडपीठ की मांग को लेकर 1981 से शुरू हुआ वकीलों का संघर्ष अभी भी जारी है। 22 जिलों के अधिवक्ता जाम, प्रदर्शन, कचहरी में तालाबंदी और बेमियादी हड़ताल सरीखे आंदोलन कर चुके हैं। ये क्रम अभी जारी है। दिल्ली में वकीलों ने पुलिस की लाठियां भी खाकर केंद्र सरकार तक अपनी बात पहुंचाई, मगर कोई ठोस निर्णय नहीं हुआ। अब प्रत्येक शनिवार को हड़ताल इसी उद्देश्य से की जाती है, कभी तो सरकारी इनकी सुनेगी। अब लोकसभा चुनाव से पहले वकीलों का विरोध फिर मुखर हो रहा है। अन्य मुद्दों के अलावा वकील हाईकोर्ट बेंच पर भी प्रत्याशियों से सवाल करेंगे। अलीगढ़ बार एसोसिएशन के महासचिव अनूप कौशिक का कहना है कि वादकारी करीब 500 किमी दूर इलाहाबाद हाईकोर्ट जाते हैं। आने-जाने का किराया एक हजार रुपये है। करीब 10 हजार रुपये वहां वकील की फीस होती है, जो सस्ते-सुलभ न्याय की अवधारणा के अनुरूप नहीं है। नए प्रावधान में वादकारी को वहां जाकर ही प्रार्थना पत्र देना होगा। थंब इंप्रेशन, कंप्यूटर से फोटो अब वहीं होता है।  हाईकोर्ट में लंबित कुल मामलों में से 60 प्रतिशत पश्चिमी उप्र से संबंधित हैं। मध्य प्रदेश में आबादी के लिहाज से हाईकोर्ट की चार-चार खंडपीठ स्थापित हैं। अन्य छोटे प्रांतों में तीन-तीन हैं। जबकि यहां एक भी नहीं। 1985 में जसवंत सिंह आयोग गठित किया गया था। आयोग ने आगरा में बेंच स्थापित करने की सिफारिश की, लेकिन राज्य व केंद्र सरकार की खींचतान में कोई निर्णय नहीं हो सका।

राज्य सरकार भेजे केंद्र को प्रस्तावः भौगोलिक दृष्टि से खंडपीठ के लिए अलीगढ़ उपयुक्त स्थान है। वेस्ट यूपी का अलीगढ़ केंद्र है। यहां अन्य जिलों के लिए सड़क व रेल की सीधे सुविधा है, बाकी जिले भी अलीगढ़ से सटे हुए हैं। दीवानी में हेरिटेज बिल्डिंग है, जो हाईकोर्ट बिल्ंिडग की तर्ज पर बनी है। ऐसी बिल्डिंग किसी जिले में नहीं है। वहीं, एयरपोर्ट बनने के बाद हवाई यात्रा की सहूलियत मिल जाएगी। यूपी सरकार बेंच का प्रस्ताव केंद्र सरकार को भेजे, केंद्र से ये सुप्रीम कोर्ट जाए, तब निदान हो सकता है।

 ख-केंद्र ही दे पाएगा कंटेनर डिपो
यहां के ताला-हार्डवेयर कारोबार को अगर सुविधाओं की चाबी मिल जाए, तो उनकी किस्मत का ताला खुल सकता है। 250 निर्यातक 1200 करोड़ रुपये का दुनियाभर में माल निर्यात करते हैं। अर्से से कंटेनर डिपो बनाने की मांग चल रही है। रेलवे ने यहां फ्रेट कॉरीडोर भी तैयार कर दिया है। कारोबारी नई सरकार से डिपो बनाने की उम्मीद जता रहे हैं। अमेरिका, ब्रिटिश, ऑस्ट्रेलिया, जापान, नेपाल के अलावा खाड़ी देशों सहित दुनियाभर में ताला-हार्डवेयर की सप्लाई के लिए दादरी, दिल्ली से कंटेनर लोड किए जाते हैं। अगर यहां सुविधा मिल जाए तो 10 दिन पहले देश के विभिन्न बंदरगाह पर माल पहुंच जाए।कारोबारियों के साथ सौतेले व्यवहार का भी आरोप है। मुरादाबाद में फोकस (प्रोत्साहन राशि) निर्यात माल की कुल धनराशि पर पांच फीसद मिलता है, जबकि अलीगढ़ निर्मित ताला-हार्डवेयर पर तीन फीसद। इसमें भी दो फीसद की बढ़ोत्तरी सांसद सतीश गौतम ने कराई है। खुद के संसाधनों पर चीन निर्मित उत्पादन की चमक दुनियाभर में फीकी की है। 30 साल से दिल्ली-हावड़ा व दिल्ली मुंबई ट्रैक को आपस में जोड़ने की मांग चल रही है। अलीगढ़ बायां हाथरस होते हुए इसे आगरा मुंबई ट्रैक से जोड़ा जाए।

सब्सिडी पर मिले कच्चा माल, घटे जीएसटीः औद्योगकि विकास के लिए ट्रांसपोर्ट सुविधा, अच्छी सड़कें और टैक्स में राहत की जरूरत है। अलीगढ़  में नए औद्योगिक संस्थान सरकार स्थापित कराए, तब बेरोजगारी की समस्या का भी निदान हो सकेगा। इसके अलार्वा ंरग रोड का निर्माण हो। सेंट्रल ईटीपी प्लांट लगे। कारोबारियों को सब्सिडी पर रॉ मैटेरियल उपलब्ध कराया जाए। 28 फीसद जीएसटी की स्लैब हो समाप्त। जीएसटी की चोरी की शंका में उद्यमी की गिरफ्तारी का कानून समाप्त हो।

 ग-न खींचो चेन, अब दिलाइए नई ट्रेन
अलीगढ़ जंक्शन के विकास की उम्मीदों को मोदी सरकार में अधिक गति नहीं मिलसकी। रेलवे की ए श्रेणी में शुमार अलीगढ़ जंक्शन से रोजाना करीब 220 ट्रेनें गुजरती हैं। इनमें मालगाड़ी, थू्र सुपरफास्ट करीब 33 ट्रेनें अपलाइन व 32 ट्रेनें डाउन लाइन से और 12 पैसेंजर ट्रेनें शामिल हैं। यात्रियों की संख्या में बढ़ोत्तरी हुई लेकिन ट्रेनों की संख्या नहीं बढ़ाई जा सकी। यात्रियों की स्टेशन पर वंदे भारत, बिहार संपर्क क्रांति राजधानी, कानपुर- दिल्ली शताब्दी, अप लाइन में मारवाड़ी नई दिल्ली-बनारस, डाउन में शताब्दी के ठहराव की मांग पूरी नहीं हो सकी। तीसरी रेलवे लाइन पर पैसेंजर ट्रेनों के अलावा अन्य ट्रेनों का संचालन शुरू नहीं हो सका। फ्रेट कॉरिडोर की बनी लाइन पर भी ट्रेनों का संचालन नहीं हो सका। रेलवे स्टेशन की सिटी साइड पर कॉम्प्लेक्स बनाने को बजट तो मिला, लेकिन काम शुरू नहीं हो सका। अलीगढ़-गाजियाबाद तीसरी रेललाइन को स्टेशन के अंदर तक नहीं लाया जा सका। तीसरी लाइन आइटीआइ तक ही है, इस कारण ट्रेनों के संचालन में दिक्कत आ रही है। अलीगढ़-चंदौसी-बरेली- मुरादाबाद रेलवे लाइन की स्पीड को नहीं बढ़ाया जा सका। सीमा टाकीज क्रॉसिंग पर ओवरब्रिज का निर्माण शुरू नहीं हो सका। गेस्ट हाउस के निर्माण

के साथ ही सिटी साइड में टिकट विंडो की संख्या नहीं बढ़ सकी।  इन सुविधाओं के अभाव में अलीगढ़ के लोग परेशान हैं।

प्रस्ताव भिजवाकर रेल मंत्रालय में करनी होगी पहल : अलीगढ़ के साथ महरावल, कुलवा, सोमना रेलवे स्टेशन पर यात्रियों की मांग के अनुरूप नई ट्रेनों के ठहराव के लिए इसका प्रस्ताव रेल मंत्रालय व रेलवे बोर्ड को भिजवाना होगा। वहां जाकर फिर ठोस पैरवी करनी होगी। नई ट्रेनों के ठहराव के प्रस्ताव के साथ स्टेशनों पर बेहतर यात्री सुविधाओं के लिए अफसरों से मिलकर काम कराना होगा। स्टेशन पर स्वचालित सीढ़ियां बनाई जाएं। स्टेशन के सिटी साइड में वाहन पार्किंग स्टैंड का निर्माण हो।

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(ख) प्रदेश के मुद्दे

 

क-कब तक छली जाएगी काली नदी

20 साल पहले तक अमृत (स्वच्छ जलधारा )के रूप में लोगों को जीवन देने वाली काली नदी अब जानलेवा बन चुकी है। गैर नियोजित तरीके से बसे शहरों व औद्योगिक प्रतिष्ठानों से निकलने वाले प्रदूषित पानी से नदी का जल जहरीला हो गया है। आसपास के गांव व कस्बों का भूमिगत जल भी प्रदूषित हो गया है। जिले में एक दर्जन गांवों से होकर नदी गुजरती है। प्रदूषित पानी से इन गांवों के कई लोगों की मौत हो गई है। इसके बाद भी किसी भी प्रत्याशी ने इस समस्या को अपने एजेंडे में शामिल नहीं किया। काली नदी से सटे बरानदी, भवनगढ़ी, कलाई आदि गांव के लोग बताते हैं कि पहले इस नदी के पानी का सिंचाई के साथ ही नहाने में भी प्रयोग होता था, लेकिन प्रदूषण बढ़ने से यह पानी जहर में बदल गया है। आसपास के गांवों में एक दर्जन से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है। कैंसर तेजी से फैल रहा है। कई बार जनप्रतिनिधियों से इसके सुधार की मांग की गई, हुआ कुछ नहीं। वोट मांगने तो सभी दलों के नेता आते हैं, नदी का कोई इंतजाम नहीं कराता। दो-तीन साल यही स्थिति रही तो इन गांवों में पलायन की स्थिति बन जाएगी। नदी के आसपास के गांवों में हवा भी जहरीली होती जा रही है। उसके बाद भी किसी का ध्यान नहीं है।

नालों के गिरने पर लगाई जाए रोक, बढ़ाया जाए पानी का प्रवाहः प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को उदासीनता छोड़कर काली नदी के लिए काम करना होगा। मेरठ से लेकर कन्नौज तक इस नदी में गिरने वाले सभी नालों पर रोक लगनी चाहिए। अगर कोई भी फैक्ट्री इसमें गंदगी फैलाती है, तो तत्काल उस पर कार्रवाई की जाए। इसके पानी में बढ़ोत्तरी करनी होगी। जनप्रतिनिधियों को संसद व विधानसभा में नमामि गंगे योजना के तरह कोई विशेष योजना शुरू करनी होगी।

 ख-विश्वविद्यालय की किताब खोल दो
राज्य विश्वविद्यालय की आस अब लोकसभा चुनाव में प्रत्याशियों के गले की फांस बनेगी। इस मांग को लेकर छात्रनेताओं, छात्र-छात्राओं ने तमाम आंदोलन किए। डीएस कॉलेज छात्र राजनीति का गढ़ रहा है। कॉलेज से ही कई दिग्गज नेता मंत्री व सांसद से लेकर मुख्यमंत्री तक रहे हैं। मगर, राजकीय विश्वविद्यालय का सपना साकार करने की जहमत कोई न उठा सका। यह एक या दो साल की लड़ाई नहीं बल्कि 2004 से इसकी जंग लगातार जारी है।

इसलिए है राज्य विवि की जरूरत: डॉ. भीमराव आंबेडकर विश्वविद्यालय आगरा से अलीगढ़ मंडल के अलावा मैनपुरी, आगरा, मथुरा, फीरोजाबाद के 996 डिग्री कॉलेज संबद्ध हैं। इनमें 957 सेल्फ फाइनेंस व 39 एडेड कॉलेज हैं। यूजीसी की गाइड लाइन के अनुसार एक विवि से 110 से ज्यादा कॉलेज संबद्ध नहीं होने चाहिए।

2013 में विवि परीक्षा की जिम्मेदारी एजेंसी को सौंपी गई। एजेंसी विद्यार्थियों का डाटा लेकर भाग गई। तमाम विद्यार्थियों के 2013 के अंकपत्र अभी तक नहीं आए हैं। प्रवेशपत्र में त्रुटि, देर से परीक्षा होना, परिणाम दो-तीन साल तक अटके रहना आदि तमाम समस्याओं से छात्र-छात्राएं हर साल जूझते हैं।

शासन में दमदारी से करनी होगी पैरवीः एक समय था जब पहले मध्यप्रदेश, राजस्थान, कानपुर, मेरठ, झांसी, रूहेलखंड, बुंदेलखंड, बरेली, उत्तराखंड के श्रीनगर, गढ़वाल तक के कॉलेज आगरा यूनिवर्सिटी से संबद्ध थे। तब फोन, कंप्यूटर, आवागमन के पर्याप्त साधन भी नहीं थे। तब भी विवि का काम बिल्कुल समय से होता था। अब तमाम समस्याएं पैदा हो गई हैं। इसके लिए राज्य विवि की स्थापना जरूरी है। विश्वविद्यालय के लिए जनप्रतिनिधि को राज्य सरकार से संपर्क कर प्रस्ताव तैयार कराना होगा। फिर ठोस पैरवी कर इसे मंजूर कराना होगा।

ग-किसानों को चाहिए आलू का भाव

आलू ने पिछले तीन साल में किसानों को अच्छा अनुभव नहीं दिया है। घाटा होने के बावजूद किसानों ने हार नहीं मानी और बंपर पैदावार की। शुरुआत में अच्छे भाव नहीं मिलने से लेकर अब तक अच्छे भाव नहीं मिले है। आलू का भंडारण हो चुका है। भाव न बढ़ने से किसान के माथे पर चिंता है। आलू के भाव गिरने का कारण यह है कि यूपी के अलावा अन्य प्रांतों में आलू की अच्छी पैदावार हुई है, इसलिए मांग नहीं आ रही है। जिले में इगलास, गौंडा, खैर में सबसे अधिक आलू होता है। धनीपुर, जवां, चंडौस में भी इसकी खेती होती है। पिछले पांच सालों की बात करें तो आलू का रकबा 26-27 हजार हेक्टेयर के बीच रहा है। इससे छह से सात लाख टन आलू का उत्पादन होता है। यहां से आलू दिल्ली, राजस्थान, महाराष्ट्र,असम, केरल, कर्नाटक के राज्यों में भी जाता है। आलू में 2016 से घाटा हो रहा है। 2017 में आलू के दाम इतने गिर गए थे कि सरकार को बाजार हस्तक्षेप योजना के तहत आलू की खरीद की योजना बनाई। सरकार ने आलू के रेट 489 रुपये प्रति कुंतल रखे। किसानों की उम्मीद के हिसाब से सरकार आलू खरीद नहीं पाई। किसानों को कोई फायदा नहीं हुआ। 2018 में भी बाजार में भाव बढ़ने के चक्कर में किसान आलू रोके रहा। दाम नहीं बढ़े और घाटे में बेचना पड़ा। चुनावी सीजन चल रहा है और सहालग भी शुरू हो चुके हैं। आलू की खपत बढ़ी है लेकिन भाव पर फर्क नहीं पड़ा है। घाटे से परेशान किसान अन्य खेती करने लगा है।

समस्या का निदानः किसानों को एक  साल बाद आलू के स्थान पर दूसरी फसल करनी चाहिए। वे फल, फूल व सब्जी की खेती कर अपनी आय बढ़ा सकते है। आलू की खपत बढ़ाने के लिए सरकार को छोटे से लेकर बड़े स्तर पर इंतजाम होना चाहिए। निजी क्षेत्र के अलावा सरकारी स्तर पर बड़ी प्रोसेसिंग यूनिट लगनी चाहिए।आलू की फसल करने वाले किसानों को सरकारी स्तर पर आर्थिक मदद और प्रशिक्षण की व्यवस्था की जरूरत है। ताकि उनके सामने आ रही समस्याओं का निदान हो सके।

(ग) स्थानीय मुद्दे

क-छुट्टा गोवंश... दूर हो यह दंश

जिले में दिनों दिन छुट्टा पशुओं की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। इसी कारण यह काफी बड़ी संख्या में खेतों में नुकसान पहुंचा रहा हैं। फसल की फसल चर रहे हैं। वहीं कई गांव में इन पशुओं ने लोगों पर हमला तक करना शुरू कर दिया है।  पिछले छह महीने में कई लोगों की मौत और कई घायल हो चुके हैं। किसानों की मानें तो प्रदेश में योगी आदित्यनाथ के सीएम बनने के बाद गोकशी पर रोक लगने से पिछले एक साल में छुट्टा पशुओं की संख्या चार गुनी तक बढ़ गई है। अब हर गांव में झुंड बनाकर छुट्टा पशु घूमते हुए दिखाई दे जाएंगे। पिछले दिनों इससे परेशान किसानों ने कई गांव में विरोध प्रदर्शन और धरना दिया था। सरकारी स्कूल और अस्पताल में पशु भर दिए थे। गूंज सीएम योगी आदित्यनाथ तक पहुंची। उन्होंने सभी डीएम को जिम्मेदार बनाते हुए व्यवस्था कराने को कहा। जिले में अब तक दो करोड़ से अधिक का बजट खर्च कर 24 से अधिक गोशाला खुल चुकी हैं। इसमें नगर निगम, पालिका और ग्राम स्तर की अलग-अलग गोशाला शामिल थीं, लेकिन अब तक इनसे निदान नहीं मिल सकी है। पशु पालन विभाग का दावा है कि पिछले छह महीने में 20 हजार से अधिक गोवंश को सरंक्षण दिया है। अभी करीब 18 हजार और छुट्टा पशु हैं। इनके लिए भी व्यवस्था हो जाएगी।

गांव-गांव खुलें गोशाला, तैनात हों कर्मचारीः जानकारों की मानें तो छुट्टा पशुओं के निदान के हर गांव गोशाला का खोली जानी चाहिए। इनमें देखरेख के लिए दो-तीन कर्मचारियों की तैनाती भी की जाए। जिससे वह इन पशुओं के लिए चारा-पाना का इंतजाम करते रहें।  इन गोशाला से एक बार तो सरकार का बजट खर्च होगा, लेकिन बाद में ज्यादा खर्च नहीं होगा। इसके साथ ही छुट्टा पशु छोड़ने वाले लोगों पर कार्रवाई का प्रावधान होना चाहिए।

ख-शहर में सोच मुड़े तो रिंग रोड बने
अपना शहर पश्चिमी यूपी में स्मार्ट सिटी योजना में शामिल इकलौता शहर है, लेकिन यहां तमाम  दिक्कतें हैं। सबसे बड़ी समस्या है जाम। हर सड़क, तिराहे और चौराहे पर जाम से जूझना पड़ता है। लगातार वाहनों के बढ़ने से यह दिक्कत बढ़ती जा रही है। वाहनों की अधिक संख्या के पीछे एक बड़ा कारण र्है ंरग रोड की कमी। अगर शहर के चारों ओर्र ंरग रोड बन जाए तो फिर 30 फीसद वाहन बाहर से ही निकल सकते हैं। एडीए की महायोजना 2021 र्में ंरग रोड प्रस्तावित है, पीडब्ल्यूडी ने पांच साल पहले इसका प्रस्ताव बनाकर भी शासन को भेजा था, लेकिन अब तक मुहर नहीं लग सकी है। खेरेश्वर धाम होते हुए मथुरा रोड, आगरा रोड होकर सिंधौली पर पहुंचने वाली बाइपास ने जरूर एक ओर्र ंरग रोड की भरपाई की है, लेकिन अभी महेश्वर, क्वार्सी व असदपुर कयाम की तरफ से बाइपास निकलना बाकी है। इसके लिए प्रस्ताव गया है, लेकिन शासन से मुहर नहीं लगी। इसी कारण लोगों को शहर के अंदर जाकर घंटों जाम में फंसना पड़ता है। परिवहन विभाग के आंकड़ों के मुताबिक जिले में 56 हजार से अधिक छोटे-बड़े वाहन हैं। अगर्र ंरग रोड बन जाए तो अधिकांश वाहनों को बाहर से ही निकाला जा सकता है।

जनप्रतिनिधियों को लगना पड़ेगाःजाम से निपटने के लिए हर हाल में सरकार को शहर के बाहर्र ंरग रोड का निर्माण करना होगा। जनप्रतिनिधियों को भी विशेष पहल करनी होगी। अगर खेरेश्वर होकर गुजरने वाले बाइपास की तरह क्वार्सी की तरफ भी एक फोरलेन बाइपास बन जाए तो जाम से आसानी से मुक्ति मिल सकती है। इसके बाद अतरौली, अनूपशहर क्षेत्रों से आने वाले वाहन बाहर होकर ही दिल्ली, आगरा, कानपुर जा सकते हैं।

 

ग-अब गंगाजल को चाहिए भागीरथ

शहर जल संकट से न जूझे, इसके लिए गंगाजल के लिए प्रयास हुए। जल निगम ने दिसंबर 2010 में प्रोजक्ट तैयार किया, जिसमें अपर कैनाल गंगा के जवां स्थित सुमेरा झाल से शहर को पाइप लाइन के जरिए गंगाजल पहुंचाना था। सरकार ने 642 करोड़ रुपये के इस प्रोजेक्ट को मंजूरी भी दी। तंत्र ने तो शहर के लोगों की प्यास गंगाजल से बुझाने की पूरी कोशिश की मगर सांसद व विधायकों ने इस ओर ध्यान नहीं दिया। शहर में गंगाजल की सप्लाई के लिए भागीरथी प्रयास की जरुरत है। शहर में सबमर्सिबल का प्रचलन लगातार बढ़ रहा है। नगर निगम के 123 नलकूप पाताल के हलक सूखा रहे हैं। शहर की 10 लाख की आबादी के लिए 125 मिलियन लीटर पर डे (एमएलडी) जल सप्लाई किया जा रहा है। जल निगम के इंजीनियर मोहम्मद अहसान के प्रोजक्ट के अनुसार 13 किलो मीटर की पाइप लाइन अपर गंगा कैनाल के सुमेरा झाल से प्रस्तावित की गई थी। साथ ही अनूपशहर रोड स्थित प्रादेशिक कॉओपरेटिव संघ (पीसीपीएफ) पर चार एकड़ जमीन अधिग्रहण करने या खरीदने का प्रस्ताव भी दिया गया। ताकि वाटर ट्रीटमेंट प्लांट (जल शोधन सयंत्र प्लांट) लगाया जा सके। तंत्र की सक्रियता की प्रजातंत्र के अगुवाई करने वाले (सांसद व विधायकों) ने घनघोर लापरवाही की। 50 क्यूसिक पानी शहर को मिलेगा। इतना पानी 200 नलकूपों से एकत्रित होता है।

जमीन खरीद ही विकल्प  : जल निगम को दोबारा प्रयास करने चाहिए। इसके लिए स्थानीय विधायक व सांसद को रूची दिखानी होगी। आठ साल पहले 642 करोड़ रुपया की लागत से यह प्रोजेक्ट परवान चढ़ना था। जमीन की व्यवस्था जिला प्रशासन या निगम को करनी थी। अगर योगी सरकार इस प्रोजेक्ट को मंजूरी देती है, तो इस पर अब 1200 करोड़ रुपया खर्च होगा। वाटर ट्रीटमेंट  प्लांट के लिए सरकारी जमीन अधिग्रहण की जगह नगर निगम किसानों से सीधे जमीन खरीद करे।

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