आसान नहीं था, फिर भी किया अलीगढ़ में भी पोलियो का खात्मा

नई पीढ़ी भले ही इस बीमारी की भयावहता से परिचित न हो मगर एक समय ऐसा भी था जब भारत ही नहीं पूरा विश्व इस बीमारी के खिलाफ लड़ रहा था। 1995 में पल्स पोलियो प्रतिरक्षण अभियान शुरू हुआ और इसके बाद पोलियो उन्मूलन।

By Mukesh ChaturvediEdited By: Publish:Sat, 24 Oct 2020 12:20 PM (IST) Updated:Sat, 24 Oct 2020 04:24 PM (IST)
आसान नहीं था, फिर भी किया अलीगढ़ में भी पोलियो का खात्मा
जिस समय अभियान शुरू हुआ, कई चुनौतियां सामने आई थीं।

विनोद भारती, अलीगढ़।  पोलियो एक ऐसी बीमारी जिसका नाम सुनते ही आंखों के सामने जमीन पर घिसटता व बैसाखी पर झूलता बचपन दिखने लग जाता है। जिसकी जिंदगी आगे चलकर खुद पर बोझ बन जाती थी। जिले में सैकड़ों लोग इस बीमारी का दंश झेल रहे हैं। नई पीढ़ी भले ही इस बीमारी की भयावहता से परिचित न हो, मगर एक समय ऐसा भी था जब भारत ही नहीं, पूरा विश्व इस बीमारी के खिलाफ लड़ रहा था। 1995 में पल्स पोलियो प्रतिरक्षण अभियान शुरू हुआ और इसके बाद पोलियो उन्मूलन। राह आसान नहीं थी, लेकिन हर जनमानस इसमें कूद गया। 2014 में भारत पोलियो मुक्त घोषित हो गया। भारत में पोलियो के लिए जिम्मेदारी पी-2 वायरस का अंतिम केस 1999 में अलीगढ़ में सामने आया था। विशेषज्ञों की मानें तो जैसी जनसहभागिता पल्स पोलियो अभियान में थी, वैसी अन्य किसी अभियान में नहीं हो पाई। 

एेसे मिली सफलता 

जिले में 1995 से 1999 तक साल दो बार दवा पिलाई गई। 2000 से 2002 तक साल में छह बार, 2003 से 2005 तक साल में सात बार, 2005 से 2011 तक साल में नौ बार पोलियो ड्राप्स पिलाई गई। शून्य से पांच साल तक के 6.30 लाख बच्चों को हर राउंड में दवा पिलाई गई। अभियान शुरू होने के बाद 2001 से 2019 के मध्य पी-1 वायरस के 66 व पी-3 वायरस के 53 मामले सामने आए। अंत: जिले से पोलियो का नामोनिशान मिट गया। पोलियो का अंतिम केस (पी-2) अतरौली के गांव दलपतपुर में 24 अक्टूबर 1999 को सामने आया था। भारत में भी यह पी-2 का अंतिम केस था। जिले में पी-3 का अंतिम केस जवां ब्लॉक में 20 दिसंबर 2009 व पी-1 का अंतिम केस 23 मई 2019 को सामने आया। इसके बाद जनपद में किसी भी श्रेणी का पोलियो वायरस केस नहीं पाया गया। 

चुनौतियों के बीच जनसभागिता 

मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ. भानुप्रताप सिंह कल्याणी ने बताया कि जिस समय अभियान शुरू हुआ, कई चुनौतियां सामने आई थीं। लोगों के मन में गलत धारणाएं आ रही थीं कि ड्रॉप्स से नपुसंकता हो जाएगी। एक समय ऐसा भी आया, जब आम नागरिकों के साथ, डॉक्टर, धर्मगुरु, शिक्षक, सरकारी व गैर सरकारी एजेंसी, मीडिया, वकील, कर्मचारी समेत समाज के तमाम वर्ग अभियान में शामिल हो गए। माइक्रोप्लान बनाकर टीमों को उतारा गया। डोर-टू-ड़ोर दस्तक दी गई। यह ऐसा अभियान था, जिसमें किसी भी स्तर से कहीं लापरवाही नहीं बरती गई। अंतत: परिणाम सबके सामने है। 

जारी रहेगी मॉनिटरिंग

जिला प्रतिरक्षण अधिकारी डॉ. दुर्गेश कुमार ने बताया कि पोलियो की खुराक अभी भी पिलाई जा रही है, लेकिन कम कर दी गई है। साल में दो बार ही अभियान चल रहा है। हमने अपने देश को तो सुरक्षित कर लिया है, लेकिन पड़ोसी देशों में अभी भी पोलियो के केस निकल रहे हैं। ऐसे में किसी अन्य देश से कोई भी वायरस लेकर हमारे देश में घुस न जाए इसलिए हर बॉर्डर पर टीम रहती है। सिल्वर टेस्टिंग भी लगातार चल रही है। अब पोलियो की वैक्सीन भी आ गई है, जो नियमित टीकाकरण भी शामिल कर ली गई है।

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