वैज्ञानिक आधार पर एकदम खरी उतरती है भारतीय संस्कृति Aligarh news

कोरोनो की इस बार की लहर ने आक्सीजन के महत्व को बता दिया है। कैसे एक-एक सांस आक्सीजन के डोर से बंधी हुई है। मगर लोग परवाह नहीं करते थे। अब जब लोगों को मुसीबतों का सामना करना पड़ा तो वो शुद्ध वातावरण कैसे मिले इसकी चिंता कर रहे है।

By Anil KushwahaEdited By: Publish:Mon, 17 May 2021 05:14 PM (IST) Updated:Mon, 17 May 2021 05:14 PM (IST)
वैज्ञानिक आधार पर एकदम खरी उतरती है भारतीय संस्कृति  Aligarh news
आक्सीजन पार्क में यज्ञ में आरती करते वैदिक विद्वान मनोज शैली, आदर्श सत्संग मंडल के प्रमुख चौधरी ऋषिपाल सिंह।

अलीगढ़, जेएनएन ।   कोरोना की इस बार की लहर ने आक्सीजन के महत्व को बता दिया है। कैसे एक-एक सांस आक्सीजन के डोर से बंधी हुई है। मगर, लोग उसकी परवाह नहीं करते थे। अब जब लोगों को मुसीबतों का सामना करना पड़ा तो वो शुद्ध वातावरण कैसे मिले इसकी चिंता कर रहे है।

आक्‍सीजन पार्क में यज्ञ का आयोजन

स्वर्णजयंती नगर स्थित आक्सीजन पार्क में सोमवार को सुबह छह बजे यज्ञ का आयोजन किया गया। गायत्री शक्ति पीठ एवं वैदिक विद्वान मनोज शर्मा शैली ने कहा कि आज लोगों को हवन-यज्ञ की चिंता सताने लगी है, जबकि गायत्री परिवार वर्षों से यज्ञ के महत्व को बताता चला आया है। यज्ञ से वातावरण शुद्ध होता है। वातावरण में फैले तमाम कीटाणु नष्ट होते हैं। विश्व के तमाम देशों में इसपर शोध हुआ है, मगर हम अपनी वैज्ञानिक परंपरा को भूलते जा रहे हैं। नई पीढ़ी पाश्चात्य संस्कृति की गिरफ्त में है, वो कुछ भी सुनने को तैयार नहीं है। तमाम संकट झेलने के बाद भी वो सनातन संस्कृति की ओर लौटना नहीं चाहती है। मनोज शैली ने कहा कि सनातन संस्कृति कोई कट्टपंथी नहीं है, बल्कि वह सहज और सरल जीवन जीने की एक पद्धति है। जिसमें बताया जाता है कि हम पर्यावरण के साथ जीएं। दूसरों को नुकसान न पहुंचाएं, प्रकृति का संरक्षण करें। आज हम पेड़ों को धड़ाधड़ काटते जा रहे हैं, उसी का परिणाम है कि शहरों में एकाएक आक्सीजन की कमी पड़ गई है। इसलिए प्रकृति का संरक्षण करें। घर-घर हवन-यज्ञ कराएं, महामारी से निश्चित जीत होगी। 

लौटना होगा परंपरा की ओर 

आदर्श सत्संग मंडल के प्रमुख व पूर्व प्राचार्य चौधरी ऋषिपाल सिंह ने कहा कि हमारे वेद-मंत्रों में असीम शक्ति होती थी। उनके गूंजने मात्र से ही वातावरण में तमाम कीटाणु नष्ट हो जाया करते थे। इसलिए हमारी संस्कृति में शंखनाद किया जाता था। मंत्रों को जोर-जोर से वाचन किया जाता था। आज कहा जा रहा है कि शंखनाद करने वालों को सांस की दिक्कत नहीं होेगी। इसका मतलब हम पहले से ही वैज्ञानिक आधारित जीवन यापन कर रहे थे, मगर आजादी के बाद हम भटक गए। हमने अपनी संस्कृति का ही उपहास उड़ाना शुरू कर दिया। हम लोगों ने जींस-कोट-पैंट वालों को ही सज्जन व्यक्ति समझने लगे, जबकि कुर्ता-धोती पहने वालों को हम गंवार समझने लगे। पूजा-पाठ, हवन-पूजन से भी दूर भागने लगे। धार्मिक कार्यक्रमों का आयोजन कम होने लगा। कुछ जगहों पर धार्मिक कार्यक्रम होता है तो वो सिर्फ दिखावा मात्र होता है, इसलिए उसका यश नहीं मिल पाता है। चौधरी ऋषिपाल सिंह ने कहा कि हमें अपनी परंपरा की ओर लाैटना ही होगा, तभी सभी का लोककल्याण होगा। कार्यक्रम में राकेश शर्मा, बृजेश कुमार, मेघराज सिंह, राजेश शर्मा, भगीरथ शर्मा, चंद्रभान चौहान, महेश पाल सिंह, हरेंद्र चौधरी, योगेश शर्मा आदि मौजूद थे।

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