इस तरह एक बेटी ने महसूस किया कोरोना काल में अपनों से दूर होने का एहसास

जिंदगी रफ्तार पकड़ने लगी है। अपनों की यादें भला किसे नहीं आती। कौन उनसे मिलना नहीं चाहता। इसी उम्मीद और यादों को छात्रा नंदनी सेठ ने अपने नाना-नानी को भेजी चिट्ठी में शामिल किया है। प्रस्तुत है उसके द्वारा लिखी गई चिट्ठी।

By Mukesh ChaturvediEdited By: Publish:Wed, 21 Oct 2020 01:12 PM (IST) Updated:Wed, 21 Oct 2020 01:12 PM (IST)
इस तरह एक बेटी ने महसूस किया कोरोना काल में अपनों से दूर होने का एहसास
सीनियर सैकेंडरी स्कूल गल्र्स एएमयू की इंटर मीडिएट की छात्रा नंदिनी सेठ ने अपने नाना -नानी को लिखा है पत्र

जेएनएन, अलीगढ़ः कोरोना...। इस वायरस का संकट अभी टला नहीं है, लेकिन जिंदगी रफ्तार पकड़ने लगी है। अपनों की यादें भला किसे नहीं आती। कौन उनसे मिलना नहीं चाहता। इसी उम्मीद और यादों को छात्रा नंदनी सेठ ने अपने नाना-नानी को भेजी चिट्ठी में शामिल किया है। प्रस्तुत है उसके द्वारा लिखी गई चिट्ठी...

खतरनाक था प्रकोप 

उन्होंने लिखा कि इस वैश्विक महामारी के दौरान मैंने आप लोगों को बहुत याद किया। इस बार गर्मी की छुट्टियों में आप लोगों से मिल भी नहीं पाई, मगर इसका प्रकोप इतना खतरनाक है कि आप लोगों से कह भी नहीं सकती थी कि आप मिलने आ जाएं। जब हम लोगों को एक दिन बुखार आया तो सब बहुत ज्यादा डर गए थे। मन में बार-बार कह रहे थे कि सिर्फ वायरल हुआ हो। 

तब पैसे तले खिसक गई थी जमीन 

मन में यह विचार था कि हम तो कहीं बाहर भी नहीं जा रहे तो संक्रमित हो ही नहीं सकते। फिर एक दिन बाद टेस्ट करवाया तो पता चला कि हम चारों लोगों की कोरोना रिपोर्ट पॉजिटिव आई है। यह जानकर जैसे पैरों तले जमीन खिसक गई। अब क्या होगा? सभी बीमार थे और शरीर में बिल्कुल जैसे जान ही नही थी। ऐसा लगता था कि बिना कुछ करे ही कितना थक गए। मम्मी-पापा ने खुद से ज्यादा हमारा ख्याल रखा। हमारी कामवाली दीदी हर रोज आतीं और बाहर से जितनी सफाई संभव होती वो करतीं। हमारी सोसायटी के लोगों ने भी बहुत साथ दिया। वो खाना गरम करके प्लास्टिक की प्लेट््स में घर के बाहर रख देते थे, ताकि हम अच्छे से खाना खा सकें। इस मुश्किल वक्त में मैं सबकी बहुत आभारी हूं। कहते हैं कि जब मिलकर कोई काम किया जाए तो कोई भी काम बड़ा नहीं होता। हम सब की एकजुटता से ही यह वक्त जल्द से जल्द निकल गया। 

एेसे बढ़ा हौसला 

इस दौरान आप लोगों ने भी बहुत साथ दिया। हम सबका दिन में कई बार फोन करके हालचाल पूछना,  वीडियो कॉल के जरिये बात कर हौसला बढ़ाया। कई बार तो लगता था कि पता नहीं सब कैसे ठीक होगा? काफी परेशान थे हम लोग, लेकिन आप लोगों ने ढांढस बंधाया। कहा, ईश्वर पर भरोसा रखो, सब जल्द ही ठीक होगा। यह बिल्कुल इस प्रकार था कि आप हमारे साथ न होकर भी साथ थे। आप पूछते थे कि पढ़ाई कैसी चल रही है? इस पर आपको बताना है कि मेरी पढ़ाई पर भी थोड़ा असर पड़ा। आपने समझाया था कि पहले स्वस्थ हो जाओ, फिर खूब मन लगाकर पढऩा। इसी को ध्यान रख परीक्षाएं भी दीं और अंक भी बेहतर आए। नाना-नानी जी उम्मीद है कि आप लोग भी सुरक्षा उपायों का पालन करते हुए घर पर सुरक्षित होंगे। ईश्वर से प्रार्थना है कि आप स्वस्थ रहें।

मुश्किल समय में सहयोग व हौसला बहुत जरूरी

शांति निकेतन स्कूल की प्रधानाचार्य मंजू गौड़ का कहना है कि अच्छे वक्त व खुशी में शरीक होना आम बात है, मगर मुश्किल वक्त में किसी का सहारा बनकर सहयोग करना व हौसला देना बहुत जरूरी है। स्वस्थ समाज के लिए ये भाव होना भी बहुत जरूरी है। जिस तरह नंदिनी ने मुश्किल समय में सोचा था कि कैसे सब ठीक होगा? कैसे इस समस्या से उबर पाएंगे? उस वक्त ये सोसायटी का सहयोग व बुजुर्गों का हौसला ही था, जो कोरोना जैसी बीमारी में भी संजीवनी का काम कर गया। मुश्किल वक्त में किसी के लिए अपने हाथ बढ़ाने के लिए किसी योग्यता या डिग्री की जरूरत नहीं होती। इंसान में नेक दिल होना चाहिए। सोसायटी के लोग पढ़े-लिखे व संपन्न होकर साथ खड़े रहे, ये बढिय़ा बात है, लेकिन नंदिनी की काम वाली दीदी कोरोना संक्रमण में भी अपनी सेवाएं देती रहीं, ये मिसाल है। इसके साथ ही नाना-नानी के हौसले ने भी बेटी को मुश्किल समय में उबारा। मुश्किल घड़ी में सकारात्मक सोच व हौसला बहुत जरूरी होता है, जो नंदिनी के नाना-नानी ने दिया। इसका परिणाम भी ये आया कि उनकी नातिन बेहतर तैयारी भी कर सकी और अच्छे अंक भी आए। कठिन परिस्थितियों में सहयोग के लिए तत्पर रहना ही सच्ची इंसानियत है।

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