कैसे जीतेंगे कोरोना से जंग, अलीगढ़ में वेंटीलेटर को चलाने वाले भी नहीं Aligarh news

हालात को देखते हुए स्वास्थ्य विभाग ने वेंटीलेटर तो बढ़ा लिए हैं मगर उन्हें चलाने के लिए तो पर्याप्त एनेस्थेटिक्स तक नहीं। हर वेंटीलेटर की टेक्नीशियन के जरिए मानीटरिंग जरूरी है। अफसोस यहां एक भी टेक्नीशियन नहीं है।

By Anil KushwahaEdited By: Publish:Mon, 19 Apr 2021 03:11 PM (IST) Updated:Mon, 19 Apr 2021 03:39 PM (IST)
कैसे जीतेंगे कोरोना से जंग, अलीगढ़ में वेंटीलेटर को चलाने वाले भी नहीं  Aligarh news
तीन वेंटीलेटर 100 बेड हास्पिटल अतरौली में हैं।

विनोद भारती, अलीगढ़। ऐसे मरीज जिनके श्वसन तंत्र में सांस लेने की क्षमता नहीं रह जाती है, उन्हें वेंटीलेटर के जरूरत पड़ती है। कोरोना संक्रमित मरीजों में इस बार सबसे ज्यादा यही समस्या देखने को मिल रही है। हालात को देखते हुए स्वास्थ्य विभाग ने वेंटीलेटर तो बढ़ा लिए हैं, मगर उन्हें चलाने के लिए तो पर्याप्त एनेस्थेटिक्स तक नहीं। हर वेंटीलेटर की टेक्नीशियन के जरिए मानीटरिंग जरूरी है। अफसोस, यहां एक भी टेक्नीशियन नहीं है। इससे वेंटीलेटर की सही इस्तेमाल भी नहीं हो रहा। ऐसे में कई गंभीर मरीजों को मेडिकल कालेज या आगरा एसएन मेडिकल कालेज रेफर करना पड़ रहा है। यदि वेंटीलेटर चलाने के लिए एनेस्थेटिक्स व टेक्नीशियन मिल जाएं तो कई मरीजों की जिंदगी बचाई जा सकती है। 

ये है सूरतेहाल 

दीनदयाल कोविड केयर सेंटर के आइसीयू में वेंटीलेटर युक्त 44 बेड की क्षमता है। तीन वेंटीलेटर 100 बेड हास्पिटल अतरौली में हैं। किसी भी मरीज को वेंटीलेटर पर रखने का कार्य एनेस्थेटिक्स की देखरेख में होता है। क्रिटिकल केयर स्पेशलिस्ट की जरूरत भी पड़ती है। दीनदयाल अस्पताल में चार एनेस्थेटिक्स हैं। क्रिटिकल स्पेशलिस्ट कोई नहीं। एनेस्थेटिक्स की भी शिफ्टवाइज ड्यूटी है। 15 दिन की ड्यूटी के बाद 15 दिन नान कोविड ड्यूटी कराई जाती है। ऐसे में एनेस्थेटिक्स की कमी होती है। कई बार एनेस्थेटिक्स न होने से मरीज को जरूरत होने पर भी वेंटीलेटर नहीं मिल पाता। वेंटीलेटर मिल भी जाए तो सबसे बड़ी समस्या उसकी मानीटरिंग की है, यह कार्य टेक्नीशियन करता है। अफसोस, न तो दीनदयाल में कोई टेक्नीशियन है और अतरौली में। इससे मरीजों की मानीटरिंग ठीक से नहीं हो पाती है। वेंटीलेटर के तीन पार्ट हैं। आई फ्लो नेजल कैनुला (एचएफएनसी) व वाइपेप की सुविधा तो किसी तरह मरीजों को मिल जाती है, तीसरा हिस्सा जिसे इन्टूवेट कहते हैं, मरीज को गुब्बारे नुमा उपकरण से आक्सीजन दी जाती है। यह काम सेकंडों का होता है, जिसे टेक्नीशियन करता है। ऐसे में दीनदयाल में अभी तक इसका इस्तेमाल नहीं हो पाया है। इससे कितने मरीजों को नुकसान हुआ, यह कहना मुश्किल है। अन्य निजी कोविड केयर सेंटरों की बात करें तो करीब 100 वेंटीलेटर की व्यवस्था हो जाएगी, मगर गरीब मरीजों के लिए सरकारी अस्पतालों में यह सुविधा मिलनी जरूरी है। 

ये है वेंटीलेटर 

श्वसन तंत्र की छमता कमजोर होने पर मरीज की जिंदगी बचाने के लिए उसे वेंटीलेटर पर लिया जाता है। वेंटिलेटर दो तरह के होते हैं। पहला मैकेनिकल वेंटीलेटर और दूसरा नान इनवेसिव वेंटीलेटर। अस्पतालों में सामान्य तौर पर मैकेनिकल वेंटीलेटर होता है, जो एक ट्यूब के जरिए श्वसन नली से जोड़ दिया जाता है। वेंटीलेटर फैंफड़ों में आक्सीजन पहुंचाने व शरीर से कार्बन डाइ ाआक्साइड को बाहर निकालता है। वहीं दूसरे तरह का नॉन इनवेसिव वेंटिलेटर श्वसन नली से नहीं जोड़ा जाता। इसमें मुंह और नाक को कवर करके आक्सीजन फैफड़ों तक पहुंचाता है वेंटीलेटर पर मरीज को उस कंडीशन में लिया जाता है जब मरीज खुद से या फिर कृत्रिम आक्सीजन से सांस नहीं ले पाता।  

प्रबंधन ने भेजी डिमांड  

वेंटीलेटर व आइसीयू को चलाने के लिए दीनदयाल प्रबंधन ने चार क्रिटिकल केयर स्पेशलिस्ट, कम से कम चार एनेस्थेटिक्स व 12 वेंटीलेटर टेक्नीशियन की मांग की है। तीनों स्तर का स्टाफ मिल जाए तो सरकारी अस्पतालों में कई मरीजों की जान बच सकती है। 

इनका कहना है

यह सही है है कि आइसीयू व वेंटीलेटर को चलाने के लिए स्टाफ की कमी है। फिलहाल 34 वेंटीलेटर चालू कर रखे हैं। एनस्थेटिक्स व अन्य स्टाफ की व्यवस्था की जा रही है। 

- डा. बीपीएस कल्याणी, सीएमओ।

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