वर्षों से कौतूहल का विषय रहा है चंडौस का ऐतिहासिक गरगजAligarh News

ऐतिहासिक गरगज समय के साथ-साथ अपनी ऊंचाई और पहचान भी खोता जा रहा है।देखरेख के अभाव में यह अब खंडहर के रूप में तब्दील हो चुका है।इसका निर्माण किसने कराया इसके बारे में प्रमाणिक तौर पर कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है।

By Sandeep Kumar SaxenaEdited By: Publish:Fri, 24 Sep 2021 05:34 PM (IST) Updated:Fri, 24 Sep 2021 05:34 PM (IST)
वर्षों से कौतूहल का विषय रहा है चंडौस का ऐतिहासिक गरगजAligarh News
ऐतिहासिक गरगज समय के साथ-साथ अपनी ऊंचाई और पहचान भी खोता जा रहा है।

अलीगढ़, श्याम सुंदर बालाजी। चंडौस कोतवाली के निकट मौजूद ऐतिहासिक गरगज समय के साथ-साथ अपनी ऊंचाई और पहचान भी खोता जा रहा है।देखरेख के अभाव में यह अब खंडहर के रूप में तब्दील हो चुका है।इसका निर्माण किसने कराया इसके बारे में प्रमाणिक तौर पर कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है।लेकिन पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही जानकारी इसको महत्व के बारे में पता लगता है।

स्थिति एवं बनाबट

कोतवाली से करीब 500 मीटर दूर स्थिति यह गरगज अब करीब 60 से 70फीट ऊंचा रह गया है। जिसकी नीबें काफी गहरी और मजबूत हैं।जो नीचे से चौड़ा और ऊपर से संकुचित होता गया है।इसको बनाने में चूना और कंकरिया ईटों का प्रयोग किया गया है।इसमें आमने-सामने खुले गेट हैं और ऊपर से नीचे तक तीन -तीन झरोखे भी हैं।गर्गज की अंदर की ओर अब पत्थर की सीढ़ियों के निशान मात्र शेष रह गए हैं।

निर्माण एवं महत्व

जानकारों की माने तो यह मुग़ल सल्तनत कालीन है।लोग पीढ़ी दर पीढ़ी इसे देखते आ रहे हैं।माना जाता है कि दिल्ली सल्तनत की सीमा की पहरेदारी के उद्देश्य से इस गर्गज का निर्माण किया गया था।इसके साथ ही उस समय बाढ़ एवं सूखा की स्थिति को देखकर इस पर चढ़कर नाल बजाकर लोगों को चेतावनी दी जाती थी।उसके बाद भी अंग्रेजों द्वारा इससे उपयोगी समझा गया और इसके ऊपर चढ़कर दूरबीन द्वारा इलाकों का सर्वेक्षण करने के लिए इसका प्रयोग किया गया।जिसके चलते जानकारों द्वारा इसे वाचिंग टावर की संज्ञा भी दी गयी है।यह भी कहा जाता है कि जब मुगलों की सेना आगरा से दिल्ली की ओर रवाना होती थी,तो इस पर चढ़कर रास्ते में पड़ने वाले किसी भी अवरोध की जानकारी की जाती थी।इसके ऊपरी हिस्से पर नाल बजा कर लोगों से अवरोध न बनने को कहा जाता था।

और भी हैं गरगज

इस की तरह समान बनाबट एवं ऊंचाई के गरगज चंडौस के अलावा मथुरा जिले के नौहझील एवं दनकौर में भी हैं।जो एक दूसरे से 12 कोस की दूरी पर हैं।बुजर्ग बताते हैं कि एक दूसरे गरगज तक जाने के लिए इसके निचले हिस्से से कोई गुप्त सुरंग निकलती थी।लेकिन कालांतर में सुरंग से संबंधित कोई अवशेष नहीं मिलता है।अन्य स्थानों पर मौजूद गरगज के मुकाबले चंडौस स्थित गरगज अभी मजबूत स्थिति में है।

देख रेख का है अभाव

ऐतिहासिक दृष्टि से इस का काफी महत्व रहा हो लेकिन वर्तमान समय में यह देखरेख के अभाव में खंडहर का रूप ले चुका है।लेकिन यह आज भी चंडौस एवं आसपास के लोगों के लिए जिज्ञासा एवं कुतूहल का विषय बना हुआ है।

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