भलाई के मार्ग पर लेकर जाती है हरि कथा
मनुष्य को परम सत्ता में विश्वास रखते हुए हमेशा सत्कर्म करते रहने चाहिए।
अलीगढ़ : मनुष्य को परम सत्ता में विश्वास रखते हुए हमेशा सत्कर्म करते रहने चाहिए। सत्कर्म करने के लिए सत्संग व कथा सुनाना आवश्यक है। क्योंकि सत्संग व हरि कथा हमें भलाई के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करती है। भगवान की भक्ति करने के लिए कोई उम्र का बंधन नहीं है। बच्चों को छोटी उम्र से ही भक्ति करने की प्रेरणा देनी चाहिए। बचपन चाक पर रखी मिट्टी की तरह होता है। उसे जैसा चाहे पात्र बनाया जा सकता है। उक्त बातें गांव नगला बलराम में भागवत कथा में पं. मुकेश शास्त्री महाराज ने कहीं। उन्होंने आगे सती चरित्र की कथा सुनाते हुए कहा कि किसी व्यक्ति को बिना निमंत्रण के किसी कार्यक्रम में जाने से पहले यह विचार अवश्य करना चाहिए कि वहां उसके इष्ट का अपमान तो नहीं होगा। ऐसा होने की आशंका हो तो उस स्थान पर जाने का विचार त्याग देना चाहिए फिर चाहे वह पिता का घर ही क्यों न हो। भगवान शिव की बात न मानकर सती पिता के घर चली गईं और उन्हें अग्नि में समाहित होना पड़ा था। कथा के बीच में सुनाए गए भजनों पर श्रोता मंत्रमुग्ध होकर झूमने पर मजबूर हो गए।
जीव जैसा कर्म करता है
वैसा ही मिलता है फल
संसू, इगलास : जीव जैसे कर्म करता है वैसा ही फल प्राप्त करता है। जब तक जीव गर्भ में रहता है वह बाहर निकलने के लिए छटपटाता है। गर्भ से बाहर निकलने के लिए ईश्वर से प्रार्थना करता है और उनके प्रकार के वायदे करता है, लेकिन जन्म लेने के पश्चात सांसारिक मोह जाल में फंसकर रह जाता है। ईश्वर की भक्ति को भूलने के कारण पुन: 84 लाख योनियों से होकर गुजरना पड़ता है। यदि जन्म मृत्य के बंधन से छुटकारा पाना है तो ईश्वर की भक्ति करनी पड़ेगी। उक्त प्रवचन कस्बा के मुहल्ला शिवपुरी स्थित बनखंडी महादेव मंदिर पर चल रही भागवत कथा में व्यास विजय गोस्वामी ने कहे। उन्होंने आगे गोवर्धन लीला का मार्मिक वर्णन करते हुए कहा कि श्रीकृष्ण ने बृज में इंद्र की पूजा बंद करा दी। अहंकार के वशीभूत होकर इंद्र ने बृज में वर्षा शुरू कर दी। तब भगवान श्री कृष्ण ने इंद्र का मान मर्दन करने के लिए गोवर्धन पर्वत को अपनी उंगली पर उठाकर बृजवासियों की रक्षा की। कथा स्थल पर श्रद्धालुओं द्वारा गोवर्धन पूजा की गई। भक्ति गीतों पर श्रद्धालु जमकर झूमे।