अलीगढ़ में कंकरीट की इमारतों के नीचे दब गई हरियाली, जानिए विस्‍तार से

विकास की रफ्तार के आगे हरियाली की गति धीमी पड़ गई है। शहरीकरण का दबाव इतना था कि कृषि योग्य भूमि भी कंकरीट की इमारतों के नीचे दब गईं। विकास के लिए पेड़ काटे गए तो अवैध कटान ने भी पुराने पेड़ों की बलि ले ली।

By Sandeep Kumar SaxenaEdited By: Publish:Fri, 25 Jun 2021 09:23 AM (IST) Updated:Fri, 25 Jun 2021 09:23 AM (IST)
अलीगढ़ में कंकरीट की इमारतों के नीचे दब गई हरियाली, जानिए विस्‍तार से
विकास की रफ्तार के आगे हरियाली की गति धीमी पड़ गई है।

अलीगढ़, जेएनएन। विकास की रफ्तार के आगे हरियाली की गति धीमी पड़ गई है। शहरीकरण का दबाव इतना था कि कृषि योग्य भूमि भी कंकरीट की इमारतों के नीचे दब गईं। विकास के लिए पेड़ काटे गए तो अवैध कटान ने भी पुराने पेड़ों की बलि ले ली। सड़क का चौड़ीकरण हो या फ्लाईओवर का निर्माण, हजारों पेड़ों की बलि दे दी गई। लेकिन, इस अनुपात से पौधे नहीं लगाए गए। अब जरूरी हो गया है कि हर व्यक्ति एक पौधा अवश्य लगाए और इसका संरक्षण करे। शहर के बुजुर्ग उन दिनों को याद करते हैं, जब घर के आगे एक वृक्ष होता था। क्यारी में उगी सब्जियां ही परिवार खाता था। दैनिक जागरण ''''आओ रोपें अच्छे पौधें'''' अभियान से उन्हीं दिनों को लौटाने का प्रयास कर रहा है।

यह है अभियान

कोरोना महामारी ने आक्सीजन का महत्व बता दिया है। आक्सीजन बिना पेड़-पौधों के संभव नहीं है। विशेषज्ञ बताते हैं कि जहां पेड़-पौधे अधिक हाेते हैं, वहां आक्सीजन लेवल बेहतर रहता है। यही वजह है कि गांवों में लोगों की रोग प्रतिरोधक क्षमता अधिक होती है। बुजुर्ग बताते हैं कि 20-25 साल पहले तक शहर की सीमाओं पर बीघों में फैले खेत हुआ करते थे। सड़क किनारे आम, अमरूद के बागों में राहगीर कुछ क्षण सुकून की सांस लेते थे। फैक्ट्रियां, कारखाने पहले भी थे, लेकिन इतना प्रदूषण नहीं था। किसानों को अच्छी कीमत मिली तो बिल्डरों को खेत बेच दिए। अब वहां अपार्टमेंट, हाउसिंग सोसायटी बन चुकी हैं। औद्योगिक इकाइयां खड़ी हो गईं। इन्हें स्थापित करने के लिए जितने पेड़ काटे गए, उतने पौधे लगाए नहीं गए। इस दिशा में दैनिक जागरण के अभियान की हर तरफ सराहना हो रही है। लोग पर्यावरण संरक्षण के प्रति गंभीरता दिखाकर अभियान से जुड़ रहे हैं।

 

मकान की छत से नजर आते थे खेत

कृष्णा विहार के गोपाल प्रसाद सारस्वत 30 साल पुरानी याद ताजा करते हुए बताते हैं कि गांव से जब बच्चों के पास शहर आते थे तो रास्ते में तमाम खेत मिलते थे। सड़क किनारे आम, अमरुद, जामुन के बाग नजर आते। घर की छत से दूर तक खेत दिखाई देते। अब न खेत रहे, न बाग। सड़क किनारे लगे पेड़ भी कट चुके हैं। पहले ज्यादातर घरों के बाहर एक वृक्ष होता था। घर-घर में क्यारियां मिलती थीं। अब यह सब कहां देखने को मिलता है। मेरे बेटे वेद प्रकाश ने बालकानी में पौधे लगा रखे हैं, इन्हें देखकर बहुत सुकून मिलता है। नातिन प्रिया इनका ख्याल रखती है।

पार्कों में ही नजर आती है हरियाली

राम विहार निवासी गोकुल चंद चौहान ने भी शहर को हरा-भरा देखा है। माैजूदा हालातों पर वह भी दुखी हैं। वे कहते हैं पेड़-पौधे धरती का गहना हैं और हरियाली उसका श्रृंगार। यही नहीं रहेंगे तो धरती उजाड़ हो जाएगी। हरियाली रहेगी तो जीवन में खुशहाली आएगी। यह तभी संभव है जब पेड़ों का अंधाधुंध कटान रोककर वृहद रूप से पौधारोपण किया जाए। इन पौधों का संरक्षण भी हो। 20-25 साल पहले तक शहर में हरियाली देखने को मिल जाती थी। अब तो पार्कों में ही पेड़-पौधे नजर आते हैं। दैनिक जागरण की मुहिम वाकई सराहनीय है। हर व्यक्ति को इस मुहिम से जुड़ना चाहिए।

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