अपने मकसद से भटका गोवंश विहार, शुरू हो गया मछली पालन का धंधा, जानिए वजह Aligarh news
पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप (पीपीपी) माडल पर बना सूबे का पहला गोवंश विहार अपने मकसद से ही भटक गया है। यहां नियम-कायदे ताक पर रख मछली पालन का धंधा चल रहा है। धान व गेहूं की खेती से कमाई की जा रही है।
सुरजीत पुंढीर, अलीगढ़ । पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप (पीपीपी) माडल पर बना सूबे का पहला गोवंश विहार अपने मकसद से ही भटक गया है। यहां नियम-कायदे ताक पर रख मछली पालन का धंधा चल रहा है। धान व गेहूं की खेती से कमाई की जा रही है। शुरुआत में 10 हजार गोवंशी के संरक्षण का दावा किया गया था, लेकिन अनदेखी के चलते पांच सौ ही बचे हैं। इनमें भी अधिकांश दुधारू हैं। दूध न देने वाले गोवंशी तो नाम के हैं।
2017 में शुरू हुई थी गोवंश तस्करों के खिलाफ कार्रवाई
2017 में सूबे में योगी आदित्यनाथ के सीएम बनने के बाद गोवंशी तस्करों के खिलाफ कार्रवाई शुरू की थी। इससे प्रदेश में निराश्रित गोवंशी की संख्या बढऩे लगी। जिले में भी 25 हजार से अधिक निराश्रित गोवंशी हैं। तीन साल पहले जिले में निराश्रित गोवंशी की संख्या बढऩे पर प्रशासन ने पीपीपी माडल पर प्रदेश का पहला गोवंश विहार विकसित करने का फैसला लिया था। इसके लिए गाजियाबाद के रमेशचंद्र चैरिटिबल ट्रस्ट से अनुबंध किया गया। गभाना के कंदौली-कोमला पंचायत की 56 हेक्टेयर सरकारी जमीन मुफ्त में ट्रस्ट को दी गई। शर्त यह थी कि यह भूमि केवल गोवंशी के संरक्षण में ही उपयोग की जाएगी। गोवंशी को रखा जाएगा। जमीन पर चारा बोया जाएगा। राजस्व परिषद ने भी इन्हीं शर्तों पर एनजीओ को जमीन देने के लिए मुहर लगाई थी।
नियमों का उल्लंघन
गोवंश विहार को शुरू हुए ढाई साल हो चुके हैैं। शुरुआत में तो सब कुछ ठीक रहा। दो हजार के करीब पशु रखे गए, इसके बाद से यहां कमाई शुरू हो गई। स्थानीय लोगों का आरोप है कि यहां दर्जनों बीघा क्षेत्रफल में तालाब बनाकर मछली पालन किया जा रहा है। चारा उगाने की बजाय धान की खेती हो रही है। प्राथमिकता दुधारू गोवंशी को दी जा रही है।
डीएम होते हैं अध्यक्ष
गोवंश विहार के लिए कमेटी गठित है। इसके अध्यक्ष डीएम हैं। एनजीओ बतौर सदस्य नामित है। एनजीओ को ग्राम पंचायत से जमीन दी गई है। शर्त थी कि विहार से हुई आय सरकारी खजाने में जमा करनी होगी। गोबर गैस, जैविक खाद, गोमूत्र व दूध से होने वाली आय से खर्च की पूर्ति होगी।
इनका कहना है
गोवंश विहार का खर्च उठाना तक मुश्किल हो गया है। ऐसे में तालाब खुदाई कर मछली पालन करने पर विचार हुआ था, लेकिन इससे फायदा नहीं हुआ है। तालाब बनने से इसकी जमीन भी उपजाऊ बनेगी। धान की खेती नियमानुसार की जा रही है। इससे चारा तो मिलेगा ही, खर्च की पूर्ति भी होगी। घाटे के चलते कम गोवंशी रखे जा रहे हैं।
संजीव डागा, अध्यक्ष, रमेश चंद्र चैरिटेबल ट्रस्ट
गोवंश विहार में काफी अनियमितताएं बरती जा रही हैं। दूध न देने वाले गोवंशी की बजाय कमाई के लिए दुधारू गायों को रखा जा रहा है। मछली पालन हो रहा है। स्थानीय अफसरों से शिकायत के बाद भी जांच नहीं होती है।
राहुल, ग्रामीण, कोमला
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गोवंश विहार के नाम पर धंधा चल रहा है। तालाब बनाकर मछली पालन किया जा रहा है। गोवंशी को तो यहां पर कोई देखने वाला नहीं है। धान की खेती तक हो रही है।
अशोक कुमार, ग्रामीण, कोमला
मेरे संज्ञान में ऐसा कोई प्रकरण नहीं आया है। अगर ऐसा कुछ है तो इसकी जांच कराई जाएगी। जांच रिपोर्ट में जो भी मिलेगा, उसी के हिसाब से आगे का निर्णय होगा।
अंकित खंडेलवाल, सीडीओ