मां बनकर विदा कीं अनजान बेटियों की डोलियां Aligarh News
हर मां का सपना होता है कि उसकी बेटी की डोली हंसी-खुशी विदा हो। लेकिन आर्थिक तंगी के चलते कई बेटियों को ये खुशियां नसीब नहीं हो पातीं। ऐसी ही बेटियों की जिम्मेदारी साध्वी देवनंदपुरी वाईजी उठा रही हैं। वह अनजान बेटियों की डोली विदा करती हैं।
अलीगढ़, लोकेश शर्मा। हर मां का सपना होता है कि उसकी बेटी की डोली हंसी-खुशी विदा हो। लेकिन, आर्थिक तंगी के चलते कई बेटियों को ये खुशियां नसीब नहीं हो पातीं। ऐसी ही बेटियों की जिम्मेदारी साध्वी देवनंदपुरी वाईजी उठा रही हैं। एक मां की तरह वह अनजान बेटियों की डोली विदा करती हैं। शादी का खर्चा हो या वैवाहिक कार्यक्रम का आयोजन, सभी व्यवस्थाएं वह जुटा लेती हैं। अब तक वह 20 शादियां करा चुकी हैं। इस नेक काम के चलते वाईजी के नाम से उनकी पहचान बनी हुई है।
बगीची में आश्रम बना लिया
अलीगढ़ की ही मूल निवासी 65 वर्षीय साध्वी देवनंदपुरी वाईजी जूना अखाड़े से हैं। एक बेटी और तीन बेटों की शादी हो चुकी है। 2009 में वह साध्वी बन गई थीं। अचल ताल स्थित बगीची में उन्होंने अपना आश्रम बना लिया। यह बगीची वाईजी बगीची के नाम से चर्चित है। वाईजी बताती हैं कि अाश्रम में समाज के हर वर्ग के लोग आते हैं। वे अपनी समस्याएं भी बताते हैं। शुरुआत में कुछ लोगों ने आर्थिक तंगी के चलते बेटियों की शादी न होने पर चिंता जताई। मदद मांगने लगे। तब सर्वशक्ति सेवा संस्थान की मदद से शादियां कराईं। अनजान बेटियाें की शादियां कराकर मन को बहुत सुकून मिला। तब से सोच लिया कि ऐसे परिवारों की बेटियों की शादी कराएंगे। संस्थान की मदद से आर्थिक रूप से कमजोर परिवारों की बेटियों की शादी कराना लक्ष्य बना लिया। उनके आश्रम से कोई खाली नहीं जाता।
सहमति से होती शादियां
सर्वशक्ति सेवा संस्थान के अध्यक्ष संतोष कुमार वाष्र्णेय बताते हैं कि गरीब बेटियों के स्वजन वाईजी से संपर्क करते हैं। लड़के वाले भी संपर्क में रहते हैं। दोनों पक्षों को आमने-सामने बैठाकर बातचीत करने बाद सहमति बनने पर आश्रम में शादी करा दी जाती है। शादी का खर्चा संस्था उठाती है। शादी के बाद भी जोड़े वाईजी से मिलने आश्रम आते हैं। इन परिवार से आत्मीयता का रिश्ता बन जाता है।