गोबर-केंचुआ से बन रहा'सोना', ये अपनाई रणनीति Aligarh News
जहां चाह वहां राह। इस कहावत को अतरौली के जूनियर हाईस्कूल से प्रधानाचार्य पद से सेवानिवृत्त एक किसान ने सच कर दिखाया है। इन्होंने गोबर व केंचुआ को मिलाकर ऐसा जैविक खाद तैयार किया।
सुरजीत पुंढीर, अलीगढ़ : जहां चाह, वहां राह। इस कहावत को अतरौली के जूनियर हाईस्कूल से प्रधानाचार्य पद से सेवानिवृत्त एक किसान ने सच कर दिखाया है। इन्होंने गोबर व केंचुआ को मिलाकर ऐसा जैविक खाद तैयार किया है, जिससे फसलें लहलहा रही हैं।
बीमारियों से भी हो रहा बचाव
जिला मुख्यालय से 40 किमी दूर अतरौली के गांव बैंबीरपुर निवासी शंभू दयाल शर्मा 2006 में जूनियर हाईस्कूल से सेवानिवृत्त हुए थे। उन्होंने गांव में ही खेती-बाड़ी शुरू की। पहले अपने खेतों में रासायनिक खाद का प्रयोग शुरू किया, लेकिन रासायनिक खाद से फैलने वाली बीमारियों को लेकर वह चिंतित थे। इन्होंने खुद ही जैविक खाद बनाना शुरू किया। एक-दो फसल बाद इसका अच्छा फायदा हुआ। इन्होंने गांव-गांव जाकर जैविक खाद के प्रयोग की सलाह दी। जब इनके खाद की डिमांड बढ़ी तो इन्होंने अपने बेटे पुष्पेंद्र को भी सरकारी नौकरी छुड़वाकर कारोबार में शामिल कर लिया। अब पुष्पेंद्र ही पूरा काम संभालते हैं।
40 से अधिक जिलों में सप्लाई
प्रदेश के फतेहपुर, कानपुर, हरदोई, कन्नौज, बरेली, हाथरस, एटा, अलीगढ़, आगरा, मथुरा, बुलंदशहर, बदायूं, बिजनौर, शाहजहांपुर, मुरादाबाद, लखीमपुर, पीलीभीत, रामपुर, इटावा, मैनपुरी समेत 40 से अधिक जिलों में जैविक खाद की सप्लाई हो रही है। यूपी स्टेट एग्रो व लघु उद्योग केंद्र के माध्यम से वन विभाग, कृषि विभाग व उद्यान विभाग को यह खाद दिया जाता है। 10 रुपये किलो तक इसकी कीमत है। 15-20 युवाओं को भी रोजगार मिलता है।
ऐसे तैयार करते हैं खाद
गोबर को हिस्सों में बांटकर उसके बेड बनाए जाते हैं। इन पर नर-मादा केंचुआ को छोड़ दिया जाता है। ऊपर से टाट के बोरे या पराली बिछा दी जाती है। दो महीने तक इस पर सुबह-शाम पानी का छिड़काव होता है। इसके बाद परतों के हिसाब से खाद उतारा जाता है। केंचुओं की संख्या जैसे-जैसे बढ़ती है, उतना ही जैविक खाद अच्छा तैयार होता है।
डेढ़ गुना तक फायदा
पहली फसल के दौरान एक बीघा क्षेत्रफल में पांच किलो के दो जैविक खाद के पैकेट पड़ते हैं। इसमें साधारण के मुकाबले एक चौथाई रासायनिक खाद पड़ता है। दूसरी फसल में दो पैकेट जैविक खाद व आठवें हिस्से का रासायनिक खाद पड़ता है। तीसरी फसल में केवल जैविक खाद के दो पैकेट पड़ेंगे और रासायनिक खाद से छुटकारा मिल जाएगा।
फसल में बीमारियां कम होती हैं
गंगा बर्मी शक्ति के संचालक पुष्पेंद्र कुमार शर्मा न बताया कि जैविक खाद फसलों के लिए काफी फायदेमंद है। इससे उगे अनाज से बीमारियां तो कम होती ही हैं, उपजाऊ भूमि बंजर भी नहीं होती है। किसान शिवकुमार का कहना है कि धान की खेती के बाद अब गेहूं की बुवाई चल रही है। 20 बीघा फसल में जैविक खाद का प्रयोग करते हैं। अच्छी खासी बचत होती है।
मिट्टी की उर्वरा शक्ति बढ़ती है
कृषि उपनिदेशक वीके सचान का कहना है कि जैविक खाद से मिट्टी की उर्वरा शक्ति बढ़ती है। वहीं, फसलों को भी पोषक तत्व भरपूर मिलते हैं। कृषि विभाग भी अब जैविक खेती के प्रयोग पर जोर दे रहा है।