Girl Murder Case in Tappal Aligarh: टप्‍पल में बच्‍ची की हत्‍या प्रकरण : बच्ची का कत्ल, ये कैसा अपनत्व Aligarh News

मानव की प्रवृति ही ऐसी है। जरा सा किसी से विवाद हुआ नहीं देख लेने की ठान ली जाती है। ये न ताे स्वयं के लिए उचित निर्णय होता है और न सामने वाले के लिए। ये कदम ही उन्हें अपराध की ओर धकेल देता है।

By Sandeep Kumar SaxenaEdited By: Publish:Sun, 26 Sep 2021 09:52 AM (IST) Updated:Sun, 26 Sep 2021 09:52 AM (IST)
Girl Murder Case in Tappal Aligarh: टप्‍पल में बच्‍ची की हत्‍या प्रकरण : बच्ची का कत्ल, ये कैसा अपनत्व Aligarh News
बेटा को बचाने के लिए दादा-दादी अपनी ही नातिन का गला दबा देंगे। ये सच सामने आ चुका है।

अलीगढ़, जागरण संवाददाता। मानव की प्रवृति ही ऐसी है। जरा सा किसी से विवाद हुआ नहीं, देख लेने की ठान ली जाती है। ये न ताे स्वयं के लिए उचित निर्णय होता है और न सामने वाले के लिए। ये कदम ही उन्हें अपराध की ओर धकेल देता है। कभी-कभी तो दूसरे को सबक सिखाने के लिए खून से हाथ भी रंग लेते हैं। टप्पल में पिछले दिनों यही हुआ। आठ साल की बच्ची को दादा-दादी ने मार कर खेत में फेंक दिया। खुद अंजान बनकर घड़ियालू आंसू बहाते रहे। वो भी उस बेटे को बचाने के लिए, जिस पर गांव के व्यक्ति ने छेड़छाड़ का मुकदमा दर्ज कराया था। पुलिस ने जब हत्या की परतें खोलीं तो स्वजन भी अवाक रह गए। उन्हें विश्वास भी नहीं हो रहा था कि बेटा को बचाने के लिए दादा-दादी अपनी ही नातिन का गला दबा देंगे। ये सच सामने आ चुका है।

सहयोग भी करना होगा

यह है मामला

ये आंकड़े हैरान करने वाले हैं कि जिले में इस साल 19 घटनाएं ऐसी हुईं, जिन्हें अपनों ने ही अंजाम दिया। सभी कत्ल की थीं। किसी ने प्रेमी के साथ मिलकर पति की हत्या कर दी तो किसी ने मां का कत्ल कर जेवर लूट लिए। अधिकांश घटनाएं ऐसी थीं, जिसमें पुलिस की कार्यप्रणाली पर सवाल उठे। कानून व्यवस्था को भी कठघरे में खड़ा किया गया। ऐसी स्थिति में अपराधियों को खोजना किसी चुनौती से कम नहीं होता। पुलिस को दिक्कत तब आती है, जब जांच में रोड़ा अटकाया जाता है। किसी भी घटना का विरोध करना ठीक है, लेकिन पुलिस अगर संदिग्ध लोगों से पूछताछ करती है तो उसमें सहयोग की भावना भी रखनी चाहिए। ऐसा करने से घटना का सही से पर्दाफाश होने के चांस बढ़ जाते हैं। कई केस ऐसे भी हुए हैं, जिनमें निर्दोष जेल चले गए और सही अपराधी बाद में पुलिस के हाथ लगे।

यह बदलाव जरूरी था

पिछले काफी समय से बहुत अच्छे दिन आने की उम्मीद में बैठे बाबु व लेखपाल भी पुराने दिनों को याद करने लगे हैं। नए बड़े साहब ने तो कड़क फैसले लेते हुए परिवर्तन का ऐसा दौरा शुरू किया है कि हर कोई हैरान है। सालों से मलाईदार पटलों पर जमे पड़े कर्मचारियों के भी पसीने छूट रहे हैं। तबादलों के बाद अक्सर राजनीति करने वाले कर्मचारी नेताओं ने भी इस बार बड़े साहब के आदेशों पर चुप्पी साध ली है। यही हाल अधिकतर लेखपालों का है। आदेश जारी होते ही यह भी बिना कुछ चाप-चपड़ किए अपनी तहसीलों में पहुंचने लगे हैं। हालांकि, अंदरखाने जरूर कुछ कर्मचारी इन परिवर्तनों पर सवाल उठा रहे हैं, लेकिन जनता में इसका काफी अच्छा संदेश है। लोगों का कहना है कि ये बदलाव तो पहले ही हो जाने चाहिए थे। इसका अहसास किसी को भी नहीं होना चाहिए कि वो ही सबकुछ है।

लगाम लगना जरूरी है

सट्टा और जुआ ऐसे अपराध हैं, जो बर्बादी का बड़ा कारण बनते हैं। इस अपराध को रोकने के लिए पुलिस हाथ-पैर तो खूब मारती है, लेकिन होता कुछ नहीं है। सट्टा और जुआ के जितने भी ठिकाने होते हैं, सब पुलिस की नजर में होते हैं। लेकिन जिम्मेदार आंखे मूंद कर बैठे रहते हैं। मुखबिर की कहीं सेटिंग खराब हो जाती है तो छापेमारी की कार्रवाई होती है, लेकिन इसका दूरगामी प्रभाव फिर भी नहीं पड़ता। शहर के कई इलाके ऐसे हैं, जहां ये धंधा खूब हो रहा है। गांधीपार्क, सासनीगेट, देहलीगेट, बन्नादेवी समेत शहर व देहात का शायद ही ऐसा कोई थाना हो, जहां सट्टा व जुआ के बड़े खिलाड़ी न हों। जब सिपाही से लेकर थानेदार तक का एेसे लोगों पर आशीर्वाद होता है तो उनका कुछ नहीं बिगड़ सकता। ये भी सबको पता है कि गोपनीय तरीके से ही इस पर लगाम लगाई जा सकती है।

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