बच्चों के हाथों से ऐसे छुड़ाएं मोबाइल, ये है सटीक रास्ता Aligarh news
बच्चों के हाथों में मोबाइल अब परेशानी का सबब बनने लगा है। तमाम बच्चे बिना मोबाइल देखे भोजन तक नहीं करते हैं। कई अभिभावकों की यह समस्याएं सामने आने लगी हैं। वो मोबाइल में कार्टून खेल आदि देखने में मस्त रहते हैं।
अलीगढ़, जेएनएन। बच्चों के हाथों में मोबाइल अब परेशानी का सबब बनने लगा है। तमाम बच्चे बिना मोबाइल देखे भोजन तक नहीं करते हैं। कई अभिभावकों की यह समस्याएं सामने आने लगी हैं। वो मोबाइल में कार्टून, खेल आदि देखने में मस्त रहते हैं। ऐसे में बच्चों की सेहत पर बुरा असर पड़ रहा है। उनकी आंखे कमजोर हो रही हैं, वहीं वो शारीरिक रुप से भी कमजोर हो रहे हैं। पतंजलि योग समिति के युवा भारत इकाई के जिला संयोजक भूपेंद्र शर्मा बताते हैं कि जबतक बच्चों को जमकर खेलकूद नहीं कराया जाएगा तबतक वो मोबाइल नहीं छोड़ने वाले हैं।
गलत संस्कार ले जाता है गलत रास्ते पर
भूपेंद्र शर्मा ने कहते हैं कि जिस प्रकार से खेत में बीज डाला जाता है, उसी प्रकार से बच्चे होते हैं। जैसे बीज को जिस प्रकार से खाद-पानी और देखभाल करेंगे वैसा होगा, उसी प्रकार से बच्चे के खान-पान, रहन-सहन और उनकी देखभाल करेंगे वो वैसा होगा। यदि खेत में बीज डाल दिया। उसमें दूषित चीजें डालते गए तो वो बड़ा होकर दूषित ही होगा। उसी प्रकार से यदि बच्चे को बचपन में ही गलत संस्कार दे दिया गया तो वो गलत रास्ते पर ही चलेगा। इसी का परिणाम है कि आज अभिभावक बच्चों के हाथ से मोबाइल नहीं छुड़ा पा रहे हैं। बच्चे खाते-पीते, खेलते-कूदते हाथों में मोबाइल लिए रहते हैं, उसमें कार्टून देखते रहते हैं। भूपेंद्र शर्मा ने कहा कि दरअसल, बच्चे के माता-पिता स्वयं को नहीं रोक पा रहे हैं। वो स्वयं मोबाइल में व्यस्त रहते हैं। ऐसा नहीं कि आवश्यक रुप से बल्कि अनावश्यक रुप से, कोई काम नहीं पड़ता है, फिर भी वो मोबाइल पर व्यस्त रहते हैं, यह देखकर बच्चे भी आकर्षित हो जाते हैं और वो भी मोबाइल की जिद करते हैं।
मोबाइल छुड़वाने के दो रास्ते
भूपेंद्र शर्मा ने कहा कि बच्चों से मोबाइल छुड़वाने के दो रास्ते हैं। पहला संस्कार दूसरा परवरिश। आप बच्चे को अच्छा संस्कार दीजिए, उसे रामायण-गीता और भागवत के बारे में बताइए। चूंकि आधुनिक युग के बच्चे हैं तो विषय को रुचिकर तरीके से बताइए। उसे गुणों का अधिक से अधिक बखान कीजिए। इससे उनके अंदर संस्कार आएगा और वो अपने धर्म के प्रति मजबूत बनेंगे। बड़े होंगे तो उनके स्वयं के मन पर काबू होगा। दूसरा उनकी परविरश ठीक से करिए। उन्हें अच्छा माहौल दीजिए। जमकर खेलने -कूदने दीजिए। यदि वो माटी में खेलना-कूदना चाहते हैं तो उन्हें ऐसा करिए, उन्हें रोकिए न, उनके पंखों को उड़ान भरने दीजिए। इतना खेलकूद में व्यस्त रखें कि वो पूरी तरह से थक जाएं, उसके बाद घर पर जाकर आराम करें। फिर देखिए आपका बच्चा कैसे हाथ में मोबाइल ले सकता है? उसे खेलकूद का मैदान मिल गया, दोस्ती मिल गई, फिर उसे मोबाइल अच्छा नहीं लगेगा। इसलिए बच्चों पर विशेष ध्यान दीजिए। भूपेंद्र शर्मा ने कहा कि घरों में दादा-दादी को दरकिनार कर रहे हैं, बूढ़े होने पर विचार आ जाता है कि उन्हें आश्रम में छोड़ आएं, इससे बच्चों के कोमल मन पर गलत प्रभाव पड़ता है। घर में बुजुर्गों का खूब सम्मान कीजिए। उनके साथ बैठकर रामायण और धर्म पुराणों की चर्चा करिए, उन्हें टहलाने ले जाइए, उनसे उनके पुराने समय की बातें, किस्सागोई करिए, वो आनंद से भर जाएंगे। यह सब बच्चों के सामने कीजिए, जिससे बच्चे भी अपने दादा-दादी के अनुराग रख सकें।