औषधीय फसलें कर रहे किसान की 'संजीवनी' से संवर रही आर्थिक सेहत Aligarh news

धान-गेहूं जैसी परंपरागत फसलों में बढ़ती लागत और कम आमदनी के चलते तंगी से जूझ रहे किसान औषधीय खेती से अपनी आर्थिक सेहत सुधार रहे हैं।

By Mukesh ChaturvediEdited By: Publish:Fri, 21 Feb 2020 05:03 PM (IST) Updated:Sat, 22 Feb 2020 01:56 PM (IST)
औषधीय फसलें कर रहे किसान की 'संजीवनी' से संवर रही आर्थिक सेहत Aligarh news
औषधीय फसलें कर रहे किसान की 'संजीवनी' से संवर रही आर्थिक सेहत Aligarh news

अलीगढ़-लोकेश शर्मा [ जेएनएन ] : धान-गेहूं जैसी परंपरागत फसलों में बढ़ती लागत और कम आमदनी के चलते तंगी से जूझ रहे किसान औषधीय खेती से अपनी आर्थिक सेहत सुधार रहे हैं। कम समय और लागत में ये फसलें कर किसान कई गुना अधिक लाभ कमा रहे हैं। आयुर्वेदिक उत्पाद बनाने वाली कंपनियां इनके द्वार पर दस्तक दे रहीं हैं। किसानों ने सतावर, अश्वगंधा, सहजन, जेरेनियम और एलोवेरा की खेती शुरू की है अतरौली के गांव खानपुर निवासी सुरजन सिंह, पेराई के नत्थी सिंह, रुस्तमपुर के अशोक कुमार, गभाना के राजाराम के खेतों में औषधीय फसलें उग रही हैं।

बिकता है 15 से 20 हजार रुपये प्रतिकिलो

इनका कहना है कि इसमें मुनाफा तो है, पर मेहनत भी है। मिट्टी की जांच, उसकी अम्लता व जल निकासी का ख्याल रखना पड़ता है। सुरजन सिंह बताते हैं कि वह आलू, गेहंू धान करते आए हैं, लेकिन अब दो हेक्टेयर खेत में सतावर की खेती कर रहे हैं। बीज, वर्मी कंपोस्ट खाद, निराई, गुड़ाई की 80 हजार रुपये लागत आती है। फसल तैयार होने पर 2.50 लाख रुपये प्रति बीघा के हिसाब से मिलता है। दिल्ली, कानपुर की कंपनियां उनसे सतावर खरीदती हैं। जेरेनियम की पौध भी लगाई है, जिसका तेल 15 से 20 हजार रुपये प्रतिकिलो बिकता है।  

80 फीसद तक मुनाफा

इगलास में रामनिवास त्यागी ने सहजन (मोरिंगा) के चार एकड़ में प्लांट लगाए हैं। वे बताते हैं, एक एकड़ में 40-50 हजार रुपये लागत आती है। शुरू की दो कटाई में पत्तियां कम निकलती हैं, लेकिन उसके बाद उत्पादन बढ़ जाता है। दूसरे साल प्रति एकड़ 10 टन तक पत्तियां निकल सकती हैं। पत्तियों से साल में दो से ढाई लाख तक का मुनाफा हो सकता है। फूल, छाल, जड़, बीज, फली भी अच्छी कीमत में बिकती है। वह इसकी मार्केटिंग और निर्यात भी कर रहे हैं। मेडिशनल क्रॉप की दुनियाभर में मांग है। 25 किसानों को इस उद्योग से जोड़ा है। इनका उत्पाद खरीदकर वह कंपनियों को बेचते हैं।

45 हेक्टेयर में फसल

फसल, रकबा (हेक्टेयर में)

सतावर, 15 

अश्वगंधा, 15 

कालमेल पांच 

तुलसी, 10

 45 हेक्टेयर का लक्ष्य मिला 

जिला उद्यान अधिकारी एनके सहानिया, ने कहा औषधीय फसलें आय बढ़ाने का जरिया होने के साथ मिट्टी की उर्वरा शक्ति भी बनाए रखती हैं। सरकार 30 फीसद तक अनुदान दे रही है। इस बार 45 हेक्टेयर का लक्ष्य मिला था, जो पूरा हो गया।

chat bot
आपका साथी