Aligarh Poisonous Liquor Case : ...उस मंजर को लोग तो क्या, अफसर भी नहीं भुला पाएंगे

अलीगढ़ जागरण संवाददाता । जहरीली शराब... जिसने पूरे जिले को हिला दिया था। उस मंजर को लोग तो क्या अफसर भी नहीं भुला पाएंगे। बेशक पुलिस ने कठोर कार्रवाई की लेकिन अब जो हो रहा है वो लापरवाही की इंतिहा है।

By Anil KushwahaEdited By: Publish:Sat, 27 Nov 2021 10:15 AM (IST) Updated:Sat, 27 Nov 2021 10:20 AM (IST)
Aligarh Poisonous Liquor Case : ...उस मंजर को लोग तो क्या, अफसर भी नहीं भुला पाएंगे
जहरीली शराब... जिसने पूरे जिले को हिला दिया था।

अलीगढ़, जागरण संवाददाता।  जहरीली शराब... जिसने पूरे जिले को हिला दिया था। उस मंजर को लोग तो क्या, अफसर भी नहीं भुला पाएंगे। बेशक, पुलिस ने कठोर कार्रवाई की, लेकिन अब जो हो रहा है, वो लापरवाही की इंतिहा है। अदालत में ट्रायल के चलते इन दिनों जब्त किए गए माल को लाने व ले जाने का काम भी बढ़ गया है। बीते दिनों शहर के एक थाने से माल (शराब की पेटियों) को ई-रिक्शा में रखकर अदालत भेज दिया गया, जबकि यह सरकारी वाहन में जाना चाहिए। सुरक्षा के नाम पर बस एक गार्ड साथ में था। सरेराह ले जाए जाने वाले इस माल का कोई जिम्मेदार नहीं था। अभियोजन पक्ष को जब ये बात पता चली तो थाने को कड़ी फटकार भी लगाई गई, लेकिन सबक नहीं लेकर दोबारा से एक दूसरे थाने ने यही लापरवाही दोहरा दी। जहरीली शराब के मामले में ऐसी लापरवाही कहीं सब गुड़-गोबर न कर दे।

फिर 'बादशाहत' कायम

जिले के थानों की बात करें तो बदलाव के बाद फिलहाल सब ठीक ही चल रहा है। एक-दो थाने हैं, जहां अभी सुधार की जरूरत है। इनमें सबसे महत्वपूर्ण शहर से सटे थाने में फिर से बादशाहत कायम हो गई है। यहां के हालात पहले से ही खराब थे। अब फिर से अवैध खनन व कट्टी के लिए सांठगांठ तगड़ी बनी हुई है। बहुचर्चित प्रकरणों में लेनदेन की भी खूब चर्चाएं उड़ीं। किशोरी से दुष्कर्म के मामले में लाखों के लेनदेन की बात सामने आई। ब'ची की हत्या में एक सदस्य को बचाने के लिए भी काफी कवायद हुईं। इसके अलावा रही छोटे मामलों की बात तो कुछ एजेंट लंबे समय से सक्रिय हैं। हालात ये हैं कि थाने के ही अधीनस्थों से भी अंतर्कलह चल रही है, लेकिन ये सब अंदर की बात हैं, इसलिए ऊपर तक नहीं पहुंच पाती। इसीलिए बादशाहत की गाड़ी रफ्तार पकड़ती जा रही है।

यातायात, तेरा कोई रखवाला तक नहीं

शहर की यातायात व्यवस्था से हर कोई वाकिफ है। आम आदमी क्या... अगर कोई अफसर भी शहर की सड़कों पर निकल जाए तो जाम से जूझना ही पड़ेगा। इस साल के शुरुआत में यातायात व्यवस्था को सुधारने के लिए दंभ तो खूब भरे गए थे, लेकिन धरातल पर कुछ नहीं हो पाया। अब हालात ये हैं कि यातायात का कोई रखवाला तक नहीं है। मुखिया की कुर्सी खाली है। अधीनस्थों पर कई प्रभार हैं। निचले स्तर पर कहानी पूरी तरह बेलगाम है। चालान काटने के अलावा खाकी किसी भी स्तर पर सख्त नहीं दिख रही है। इसके इतर, अन्य विभागों से इतना भी तालमेल नहीं है कि मिलकर एक सार्थक फैसला ले लिया जाए। अगर जनहित में कोई निर्णय ले भी लिया तो सिफारिशों का दौर शुरू हो जाता है। विभागों की यही सोच है कि पहले कदम कौन बढ़ाएगा? ऐसे हालातों में यातायात व्यवस्था का भगवान ही मालिक है।

साहब बोले... अब कुछ नहीं हो सकता

बड़े साहब के कार्यालय में इन दिनों माहौल बदला-बदला सा है। बड़े साहब की गैरहाजिरी में अधिकतर फरियादी असंतुष्ट होकर लौट रहे हैं। कुछ तो साहब के ही इंतजार में कई दिनों से चक्कर काट रहे हैं तो कुछ जैसे-तैसे अन्य अफसरों से मिल लेते हैं तो दो-टूक जवाब लेकर वापस आ जाते हैं। शहर के बहुचर्चित प्रकरण में गैरजनपद से परिवार बड़े साहब के कार्यालय में उम्मीद लेकर आया था, लेकिन जवाब मिला कि अब कुछ नहीं हो सकता। उल्टा पीडि़त पर ही सवाल उठा दिए गए। यही नहीं, किशोरी को भगाकर ले जाने के एक अन्य मामले में स्वजन कार्यालय में शिकायत लेकर पहुंचे थे। उनको भी कुछ ऐसी प्रतिक्रिया मिली कि खोट आपके पक्ष में है। हालांकि जांच व मदद का भरोसा तो दिला दिया जाता है, लेकिन फरियादी के लिए अगर दो अ'छे शब्द ही बोल दिए जाएंगे तो उनका भी खाकी पर भरोसा बढ़ जाएगा।

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