Agreement Between India-European Union: काई से 'पवित्र’ होगा गंदा पानी, लकड़ी से बनेगी बिजली, जानिए विस्तार से
काई से पानी दूषित होता तो आपने देखा-सुना होगा लेकिन अब इससे उलट होने जा रहा है। जल्द ही काई से पानी शुद्ध किया जा सकेगा। इसके लिए भारत सरकार और यूरोपीय संघ में द्विपक्षीय करार हुआ है। इस नई तकनीक से लकड़ी से बिजली भी बनाई जाएगी।
अलीगढ़, संतोष शर्मा। काई से पानी दूषित होता तो आपने देखा-सुना होगा, लेकिन अब इससे उलट होने जा रहा है। जल्द ही काई से पानी शुद्ध किया जा सकेगा। इसके लिए भारत सरकार और यूरोपीय संघ में द्विपक्षीय करार हुआ है। इस नई तकनीक से लकड़ी से बिजली भी बनाई जाएगी। परियोजना को पोटेंशियल एंड वेलीडेशन आफ सस्टेनेबल नेचुरल एंड एडवांस टेक्नालोजी फार वाटर एंड वेस्टवाटर ट्रीटमेंट, मानीटरिंग एंड सेफ रियूज इन इंडिया (पवित्र) नाम दिया गया है। चार साल में पूरी होने वाली पवित्र परियोजना पर भारत सरकार 7.75 करोड़ रुपये खर्च करेगी। देशभर में पायलट प्रोजेक्ट के तहत 14 संयंत्र लगाए जाएंगे। इनमें अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) में छह, पुणे, नागपुर व धनबाद में दो-दो और खडग़पुर व विशाखापत्तनम में एक-एक संयंत्र होंगे।
देश विदेश से प्रस्ताव आए
नई तकनीक से गंदे पानी को साफ करने के लिए भारत सरकार की ओर से डिपार्टमेंट आफ साइंस एंड टेक्नोलाजी और यूरोपीय संघ की ओर से होरीजन-2020 ने प्रस्ताव मांगे थे। देश-विदेश से कुल 63 प्रस्ताव आए। इनमें से तीन को स्वीकार किया गया। पवित्र इनमें से एक है, जिसके मुख्य इंनवेस्टीगेटर व कोआर्डिनेटर एएमयू के सिविल इंजीनियरिंग विभाग के प्रो. नदीम खलील हैं। इस शोध कार्य में देश-विदेश के 25 रिचर्स पार्टनर शामिल हैं। इनमें 13 यूरोपीय देशों के और 12 भारत के हैं। भारत की ओर से एएमयू अग्रणी भूमिका में है, जबकि यूरोपीय संघ की ओर से जर्मनी की संस्था टीटीजेड है। परियोजना के तहत एएमयू के अलावा भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आइआइटी) धनबाद, खडग़पुर, राष्ट्रीय पर्यावरण अभियांत्रिकी अनुसंधान संस्थान (नीरी) नागपुर और नमामि गंगे से शोध छात्र यूरोपीय देशों में जाएंगे। वहां के शोध छात्र भारत आकर अध्ययन करेंगे। पवित्र की तरह 'पानी वाटर' परियोजना पर नीरी नागपुर और 'लोटस' पर आइआइटी मुंबई काम कर रहा है। यह दोनों भी पानी को सस्ती तकनीक के जरिये साफ करने से संबंधित हैैं।
ऐसे साफ होगा सीवरेज और बनेगी बिजली
परियोजना के तहत एएमयू में कुल छह संयंत्रों में से तीन पर निर्माण कार्य शुरू हो गया है। परियोजना का निर्माण बरौला बाईपास पर बने स्विंग्स संयंत्र (सेफगार्डिंग वाटर रिसोर्सेस इन इंडिया विद ग्रीन एंड सस्टेनेबल टेक्नोलाजी) के पास कराया जा रहा है। जिसमें एक संयंत्र यूनिवर्सिटी आफ कैटालुन्या, बार्सिलोना के सहयोग से बनाया जा रहा है। इसी में काई से गंदे पानी की सफाई होगी। प्रो. नदीम खलील ने बताया कि इस तकनीक में माइक्रो शैवाल की महत्वपूर्ण भूमिका होगी। जो एक बड़े टैंक में गंदे पानी में आक्सीजन छोड़कर गंदे पानी को साफ करने का काम करेंगे। इस पानी को फिर दूसरे टैंक में ले जाकर शैवाल को अलग किया जाएगा। जिससे खाद बनेगी जो खेती में इस्तेमाल हो सकती है । शुद्ध हुए पानी का इस्तेमाल भी सिंचाई में किया जा सकेगा। इससे रोजाना 75,000 लीटर गंदा पानी साफ होगा। इस तकनीक को उच्च शैवाल तालाब प्रौद्योगिकी कहते हैं।
दूसरा संयंत्र लघु रोटेशन वानिकी पर आधारित है। जिसमें बांस, विलो (बेंत की तरह लचकदार पतली डाल वाला पेड़) इत्यादि के पौधे लगाए जाएंगे। पौधों की गंदे पानी से सिंचाई होगी। पेड़ बनने पर इनको ऊपर से छोटे-छोटे टुकड़ों में काटा जाएगा। लकड़ी के इन टुकड़ों को गैसीफायर में डाल कर बिजली बनाई जाएगी। तीसरा संयंत्र सीक्वेंसियल बैच रिएक्टर (एसबीआर) तकनीक पर बनेगा, जिसे स्पेन की एक शोध संस्था दे रही है। एक लाख लीटर की क्षमता वाले इस संयंत्र में हर रोज लगभग 15 किलोवाट बिजली खर्च होगी।
क्या है स्विंग्स संयंत्र
एएमयू में 2013 में स्विंग्स संयंत्र लगाया गया था, जो बिना बिजली खपत के विशेष पौधों के जरिए यूनिवर्सिटी से निकलने वाले गंदे पानी को साफ करता है। यूरोपीय संघ के सहयोग से इसका निर्माण हुआ था। संयंत्र आज भी काम कर रहा है।
पवित्र परियोजना के लिए विश्वविद्यालय ने 12 बीघा जमीन दी है। पर्यावरण संरक्षण के लिए यह परियोजना अहम साबित होगी।
-प्रो. तारिक मंसूर, कुलपति एएमयू