एएमयू के कोर्ट मेंबर रहे थे दिलीप कुमार

मशहूर फिल्म अभिनेता दिलीप कुमार न तो अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में पढ़े और आए। वे कोर्ट मेंबर रहे थे।

By JagranEdited By: Publish:Thu, 08 Jul 2021 12:59 AM (IST) Updated:Thu, 08 Jul 2021 12:59 AM (IST)
एएमयू के कोर्ट मेंबर रहे थे दिलीप कुमार
एएमयू के कोर्ट मेंबर रहे थे दिलीप कुमार

जासं, अलीगढ़ : मशहूर फिल्म अभिनेता दिलीप कुमार न तो अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में पढ़े और न कभी उन्हें यहां आने का मौका मिला। लेकिन, वह एएमयू के बारे में सब जानते थे। एक बार यूनिवर्सिटी कोर्ट की बैठक में शामिल होने के लिए वो मुंबई से अलीगढ़ आ रहे थे। दिल्ली में घुटने में चोट लगने के कारण वो नहीं आ सके। एएमयू छात्र जब उनसे मिलने दिल्ली पहुंचे तो उन्होंने शायराना अंदाज में कहा कि घुटने को 'दर्द-ए-दिल' हो गया है। दिलीप कुमार एएमयू के कोर्ट मेंबर रहे। यूनिवर्सिटी ने उन्हें मानद उपाधि से भी सम्मानित किया। कुलपति प्रो. तारिक मंसूर ने उनके निधन पर गहरा शोक जताया है।

एएमयू ने उन्हें 1982 में कोर्ट का सदस्य चुना था। कला और सिनेमा में उनकी लंबी सेवा के लिए 2002 में उन्हें डीलिट की मानद उपाधि से सम्मानित किया। एएमयू के बारे में वह बहुत नजदीक से जानते थे। यूनिवर्सिटी के कल्चरल एजूकेशन सेंटर के पूर्व डायरेक्टर प्रो. एफएस शीरानी के अनुसार दिलीप कुमार एएमयू की रग-रग से वाकिफ थे। उन्हें पता था कि यूनिवर्सिटी में काली शेरवानी पहनी जाती है और सलाम का जवाब सलाम से दिया जाता है। बहुत से लोगों के नाम वो जानते थे। उर्दू विभाग के रशीद अहमद सिद्दीकी की कई किताब उन्होंने पढ़ी थीं। एएमयू छात्रों का टूर जब भी मुंबई जाता था, तब वह उनसे मिलने जरूर आते थे। मुगल-ए-आजम फिल्म के डायलाग अलीगेरियन ने ही लिखे थे। कई और फिल्मों का निर्देशन एएमयू से जुड़े लोगों ने किया। दिलीप कुमार की अधिकांश स्पीच एएमयू में पढ़े राही मासूम रजा ने लिखी थी।

प्रो. शीरानी ने बताया कि एक बार कोर्ट की बैठक में शामिल होने के लिए आ रहे थे। दिल्ली में पहुंचते ही उनके घुटने में चोट लग गई थी। डाक्टर ने उनके चलने-फिरने पर रोक लगा दी थी। प्रो. शीरानी के अनुसार जब उनसे पूछा कि सर घुटने में क्या हो गया, तो उन्होंने कहा कि दर्द-ए-दिल हो गया है। सर सैयद की किताबों का भी उनके पास कलेक्शन था।

दिलीप कुमार को हमेशा याद रखा जाएगा : कुलपति

एएमयू कुलपति प्रो. तारिक मंसूर ने दुख जताते हुए कहा कि उनका पांच दशक से अधिक का करियर कई मायनों में आदर्श और मूल्यवान है। भारतीय सिनेमा को आकार देने और अभिनय की कला को आने वाली पीढि़यों के लिए यादगार बनाने के लिए दिलीप कुमार को हमेशा याद किया जाएगा। प्रसिद्ध अर्थशास्त्री मेघनाद देसाई ने अपनी पुस्तक 'नेहरू के हीरो दिलीप कुमार' में अपनी फिल्मों और नए स्वतंत्र भारत की मिश्रित अर्थव्यवस्था की तुलना की है। दिलीप साहब एक परोपकारी व्यक्ति थे, जिनका व्यक्तित्व उनके स्क्रीन व्यक्तित्व से काफी ऊंचा था। दिलीप कुमार की अभिनय शैली दशकों से उपयुक्त और लोकप्रिय रही है। उनके भावनात्मक अभिनय ने उन्हें ट्रेजेडी किग का खिताब दिलाया।

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