नए उच्च शिक्षण संस्थान खोले जाने का फैसला औचित्य से परे : डा. रक्षपाल Aligarh news

आगरा यूनिवर्सिटी टीचर्स एसोसिएशन (औटा) के पूर्व अध्यक्ष डा. रक्षपाल सिंह ने प्रदेश सरकार में उप मुख्यमंत्री व शिक्षामंत्री प्रो. दिनेश शर्मा की ओर से 10 नये निजी विश्विद्यालयों व 51नए राज्य महाविद्यालयों की स्थापना किए जाने की घोषणा को औचित्य से परे करार दिया है।

By Anil KushwahaEdited By: Publish:Thu, 14 Jan 2021 05:20 PM (IST) Updated:Thu, 14 Jan 2021 05:57 PM (IST)
नए उच्च शिक्षण संस्थान खोले जाने का फैसला औचित्य से परे : डा. रक्षपाल Aligarh news
आगरा यूनिवर्सिटी टीचर्स एसोसिएशन (औटा) के पूर्व अध्यक्ष डा. रक्षपाल सिंह ।

जासं, अलीगढ़ : आगरा यूनिवर्सिटी टीचर्स एसोसिएशन (औटा) के पूर्व अध्यक्ष डा. रक्षपाल सिंह ने प्रदेश सरकार में उप मुख्यमंत्री व शिक्षामंत्री प्रो. दिनेश शर्मा की ओर से 10 नये निजी विश्विद्यालयों व 51नए राज्य  महाविद्यालयों की स्थापना किए जाने की घोषणा को औचित्य से परे करार दिया है। आश्चर्य जताते हुए कहा कि उप मुख्यमंत्री ने सूबे के मौजूदा 45 विश्विद्यालयों, 169 राजकीय कालेजों, 331 एडेड कालेजों व 6531 निजी कालेजों की जमीनी हकीकत की पूरी जानकारी की होती और राज्य के खजाने से उक्त शिक्षण संस्थानों पर खर्च होने वाली अरबों रुपये की धनराशि के सदुपयोग होने के बारे में सोचा होता तो उच्च शिक्षामंत्री नए विश्विद्यालय तथा सरकारी कालेजों को खुलवाने की अनौचित्यपूर्ण घोषणा न करते। 

मानकों के अनुसार शिक्षकों की व्‍यवस्‍था नहीं

डा. सिंह ने कहा कि उत्तर प्रदेश में इस समय भी प्रदेश की आवश्यकता से अधिक उच्च शिक्षण संस्थान हैं, लेकिन अफसोस का विषय है कि उनमें से 75 फीसद से अधिक में मानकों के अनुरूप शिक्षकों की व्यवस्था नहीं है। शिक्षण संस्थान खुलते नहीं अर्थात थ्यौरी व प्रक्टिकल कक्षाएं होती नहीं, ऐसे संस्थानों में तथाकथित विद्यार्थियों के प्रवेश व उनकी परीक्षाएं ही होती हैं और वे येन केन प्रकारेण अच्छे अंकों की अंकतालिकाएं प्राप्त कर महामहिम राज्यपाल से डिग्री प्राप्त करने का कारनामा कर लेते हैं। डा. सिंह ने विद्यार्थियों, शिक्षा व्यवस्था व सूबे के खजाने के व्यापक हित में राज्य सरकार से अनुरोध किया है कि प्रदेश में नए उच्च शिक्षण संस्थान खोलने के बजाय मौजूदा शिक्षण संस्थानों में मानकों के अनुरूप योग्यताधारी शिक्षकों व कर्मचारियों की नियुक्तियां कराने और उन्हें  पूरा वेतन दिए जाने के प्रयास किए जाएं। कालेजों में पठन-पाठन का वातावरण सृजित कराने तथा नकलविहीन व साफ सुथरी परीक्षाएं कराने के लिए सरकार भगीरथ प्रयास करे। तब सरकार विद्यार्थियों को गुणवत्तापरक शिक्षा दिलवाने में अपनी अहम भूमिका का निर्वहन कर सकती है, अन्यथा की स्थिति में सरकार की सारी कवायद ढाक के तीन पात ही सिद्ध होगी। बताया कि आज से 50 वर्ष पूर्व प्रदेश में आठ राज्य विश्वविद्यालय और लगभग 500 महाविद्यालय थे जो आज क्रमशः 45 और 7031 हो चुके हैं। मगर कई गुने उच्च शिक्षण संस्थान खुल जाने के बावजूद भी शिक्षा की गुणवत्ता निरंतर गिरते जाना शिक्षामंत्री के लिए हैरानी का विषय न हो, लेकिन शिक्षाविदों व बुद्धिजीवियों के लिए अत्यधिक चिंता का विषय है।

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