अलीगढ़ में दीपक तले अंधेरा, ''मलाई'' पर डेरा, जानिए क्‍या है मामला

दीपक तले अंधेरा वाली कहावत जिला प्रशासन पर बिल्कुल सटीक बैठती है। प्रशासनिक अफसर भले जिले भर के लोगों को नियम कानून का पाठ पढ़ाते हों लेकिन वह अपने ही कार्यालयों में इन्हें भूल जाते हैं। बात हो रही कलेक्ट्रेट व तहसीलों में तैनात कुछ मातहतों की।

By Sandeep Kumar SaxenaEdited By: Publish:Tue, 03 Aug 2021 12:20 PM (IST) Updated:Tue, 03 Aug 2021 12:20 PM (IST)
अलीगढ़ में दीपक तले अंधेरा, ''मलाई'' पर डेरा, जानिए क्‍या है मामला
तुम्हारी फाइलों में गांव का मौसम गुलाबी है, मगर ये आंकड़े झूठे हैं, ये दावा किताबी है।

अलीगढ़, जेएनएन। दीपक तले अंधेरा''' वाली कहावत जिला प्रशासन पर बिल्कुल सटीक बैठती है। प्रशासनिक अफसर भले जिले भर के लोगों को नियम कानून का पाठ पढ़ाते हों, लेकिन वह अपने ही कार्यालयों में इन्हें भूल जाते हैं। बात हो रही कलेक्ट्रेट व तहसीलों में तैनात कुछ मातहतों की। सालों से यह मातहत एक ही पटल पर जमे हुए हैं। महीनेदारी के नाम से लाखों का बंटाधार हो रहा है। रिश्वत न मिलने तक लोगों के यह जरूरी काम भी अटकाए रहते हैं। फरियादियों तक से तहजीब से बात नहीं करते हैं, लेकिन शासन के नियमों के बाद भी अफसर इनके पटल नहीं बदलते हैं। कई तो इनमें इतने बड़े मठाधीस हैं कि वह एक-एक दशक से भी ज्यादा समय से एक ही कुर्सी संभाले हुए हैं। हर रोज यह दर्जनों बार छोटे-बड़े साहबों के सामने पड़ते हैं, लेकिन मजाल है कि कभी किसी कि कभी इनके लिए कोई नियम कानून याद आए हों।

जो पैदल, वही पावरफुल

सरकार ने हर पंचायत में एक-एक पंचायत सहायक को नियुक्त करने की घोषणा की है। जिला स्तर पर इसकी तैयारियां भी हो गई हैं। सहायक के लिए छह हजार प्रति महीने मानदेय तय हुआ है। ऐसे में साल भर में एक सहायक को घर बैठे 72 हजार मिला करेंगे। हालांकि, सरकार ने शासनादेश में साफ कहा है कि इस पद पर प्रधान या पंचायत सदस्य के किसी स्वजन की नियुक्ति नहीं होगी, लेकिन 72 हजार रुपये देखकर सदस्यों के ही मन ललचा गए हैं। कुछ ने तो इस नौकरी को पाने के लिए पद से इस्तीफा देने तक का मन बन लिया है। उनका तर्क है कि सदस्य रहे तो पूरे कार्यकाल कुछ न मिलेगा, पंचायत सहायक बन गए तो हर महीने छह हजार तो आएंगे। इससे अच्छा तो पद से पैदल होना ही ठीक है। कई तो प्रधानों में भी इसकी नाराजगी है कि उनका मानदेय तो महज 3500 है ओर सहायक को छह हजार मिल रहे हैं।

मौसम होगा ''''गुलाबी''''

तुम्हारी फाइलों में गांव का मौसम गुलाबी है, मगर ये आंकड़े झूठे हैं, ये दावा किताबी है। अमूमन गांव देहात के विकास को लेकर लोगों के मन में ऐसी ही धारणा रहती है, लेकिन जिले के युवा ''''विकास पुरुष'''' ने इस पंच वर्षीय योजना के लिए ऐसा रोडमैप तैयार किया है, अगर वह सौ फीसद जमीं पर आया तो हकीकत में गांव का मौसम गुलाबी ही होगा। उन्होंने हर पंचायत के लिए 10 बिंदु तय किये हैं। प्रधान व सचिव ने यह बिंदु समय से पूरे कर लिए तो वह दिन दूर नहीं जब गांव शहरों जैसे दिखेंगे। हर गांव में सुख सुविधाएं होंगी। एक ओर छात्र पुस्कालय में पढ़ रहे होंगे तो दूसरी ओर युवा खेल मैदान में पसीना वहां रहे होंगे। गांव के सड़कें तो पक्की होंगी ही, रेन वाटर हार्वेस्टिंग से पानी भी सरंक्षित होगा। माडल तालाब व हर्बल गार्डन भी पिकनिक प्वाइंट जैसे होंगे। गांव में ही कूड़े का निस्तारण होगा। मिनी सचिवालय में ही सभी डिजिटल सुविधाएं मिलेंगी।

समझो भाई, गंगाधर ही शक्तिमान

विकास प्राधिकरण में जो कुछ होता है, वह किसी से छिपा नहीं है। इन दिनों सबसे बड़ा खेल यहां के दो ''''शिल्पकारों'''' के बीच चल रहा है। एक सरकारी पद पर है तो दूसरा प्राइवेट। इन दोनों को शहर के एक-एक निर्माण की जानकारी होती है कि कौन सा वैध है और कौन सा अवैध। इन्हें यह तक पता है कि अगर किसी का नक्शा भी पास है तो उसमें कितना ज्यादा निर्माण हुआ है। प्राइवेट ''''शिल्पकार'''' पहले ऐसे ही निर्माणों को चिन्हित कर सूची सरकारी ''''शिल्पकार'''' को देता है। फिर सरकारी शिल्पकार मौके पर जाते हैं और भवन स्वामी को खूब धमकाते हैं। अंत में वह जाते जाते एक लाइन बोल देते हैं कि जिसने तुम्हारा नक्शा बनाया है ,उसे लेकर कार्यालय आओ। भवन स्वामी को लगता है कि अब उसे लेनदेन का माध्यम तो मिल गया है, लेकिन उसे यह नहीं पता कि जो उसका बिचौलिया बन रहा है, वही शिकायकर्ता ही है।

chat bot
आपका साथी