Dainik Jagran campaign Hariyali: बढ़ रहे कंक्रीट के जंगल, हरियाली गायब Aligarh News
करोड़ों रुपये फूंकने के बाद भी हर तरफ वन नहीं कंक्रीट के जंगल बढ़ रहे हैं। अब ऐसा कोई माली मिले जो हरियाली को बढ़ाए। यह पहल आप भी कर सकते हैं। दैनिक जागरण ने इस अभियान की शुरुआत की है। आप भी हमारे साथ जुडि़ए
अलीगढ़, जेएनएन। इंसान और कुदरत के बीच गहरा रिश्ता रहा है। पेड़-पौधों से पेट भरने के लिए फल-सब्जियां व अनाज मिला। बीमार होने पर दवा मिली। तन ढकने के लिए कपड़ा तो मकान बनाने के लिए लकड़ी मिली। कोरोना काल में हमने आक्सीजन का महत्व भी समझ लिया है। आक्सीजन के प्राकृतिक स्रोत पेड़-पौधों से ही हैं, इसलिए हर साल करोड़ों रुपये पौधारोपण पर ही खर्च कर दिए जाते हैं। जो पौैधे लगाए जाते हैं, वे पेड़ नहीं बनते। करोड़ों रुपये फूंकने के बाद भी हर तरफ वन नहीं, कंक्रीट के जंगल बढ़ रहे हैं। अब ऐसा कोई माली मिले, जो हरियाली को बढ़ाए। यह पहल आप भी कर सकते हैं। दैनिक जागरण ने इस अभियान की शुरुआत की है। आप भी हमारे साथ जुडि़ए...
वन क्षेत्र दो फीसद से कम
प्रदेश में वर्ष 2030 तक हरित आवरण बढ़ाकर 15 फीसद करने का लक्ष्य है। भूमि सीमित है, इसलिए हरित आवरण बढ़ाने के लिए वन क्षेत्रों के साथ सामाजिक वानिकी व खुले क्षेत्रों में भी पौधरोपण कर इस लक्ष्य को प्राप्त करने की कोशिश होगी। अलीगढ़ समेत 30 जिले ऐसे है, जहां वन क्षेत्र दो फीसद से भी कम है। बीते 10 सालों से अलीगढ़ का वन क्षेत्र कुल भूभाग का 1.82 फीसद ही है। यह भी केवल सरकारी आंकड़ों में ही है। कुछ सालों में जिस तेजी के साथ अवैध कटान हुआ और जंगल उजड़े हैं, उससे यहां वनावरण 1.40 फीसद से अधिक नहीं होगा। यही स्थिति बागपत, बरेली, बदायूं, एटा, गौतमबुद्ध नगर, कन्नौज, हाथरस, मैनपुरी, मथुरा, मुरादाबाद, मुजफ्फरनगर और शाहजहांपुर में भी है। यहां भी वनावरण दो फीसद से कम रह गया है।
विकास लील रहा हरियाली
बढ़ता शहरीकरण व औद्योगिक विकास भी हरियाली को लील रहा है। बहुमंजिला इमारतें, हाईवे व ओवरब्रिज बनाने, बिजली लाइन, आवासीय कालोनी आदि के लिए पेड़ों की खूब बलि चढ़ाई जा रही है। उत्तर प्रदेश वृक्ष अधिनियम के तहत प्रतिबंधित श्रेणी के 10 साल से अधिक पुराने व सरकारी विकास में बाधा डालने वाले सूखे, रोग ग्रस्त या जानमाल के लिए बाधक होने पर पेड़ों को काटा जा सकता है, मगरहरे-भरे पेड़ भी खूब काटे जा रहे हैं। पिछले दिनों विश्व पर्यावरण संरक्षण दिवस पर जहां एक तरफ वन विभाग के अधिकारी पीएसी बटालियन व अन्य स्थानों पर पौधारोपण कर रहे थे, वहीं शहर से लेकर देहात तक वन माफिया पेड़ों पर आरी चला रहे थे। स्थानीय लोगों ने अधिकारियों को सूचना भी दी, लेकिन हुआ कुछ नहीं। यही वजह है कि हर साल लाखों पौधे रोपने के बाद भी हरियाली नहीं हो पाती है।
इन योजनाओं में पौधरोपण
वन विभाग की ओर से सामाजिक वानिकी व मुख्यमंत्री पौधरोपण योजना, उत्तर प्रदेश वन निगम पोषित जमीन, वन विकास अभिकरण योजना, राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड), ट्रांस ट्रिपेजियम जोन (टीटी जेड), कैंपा व जिला योजना के तहत हर साल तीन से चार लाख पौधारोपण होता रहा है। बीते चार सालों से यह लक्ष्य कम हुआ है। जुलाई में हर साल वन विभाग समेत सभी सरकारी विभागों को लाखों पौधे लगाने का लक्ष्य दिया जाता है। इतने पौधों का रोपण होने के बाद भी कहीं हरियाली दिखाई नहीं देती है।
वर्ष, क्षेत्रफल,पौधरोपण
2005-06,237,2.50
2006-07,1674,20.15
2007-08,888,2.45
2008-09,1060,12.49
2009-10,543,3.86
2010-11,170,4.00
2011-12,318,5.00
2012-13,300,4.00
2013-14,326,4.15
2014-15,286,1.86
2015-16,132.32,5.10
2016-17,319.98,3.55
2017-18,--,1.67
2018-19, --,18.55
2019-20, --,35.81
2020-21, --,29.28
(क्षेत्रफल हेक्टेयर में व पौधारोपण लाख में)
पौधारोपण के प्रति जनजागरूकता के लिए दैनिक जागरण ने जो अभियान शुरू किया है, वह सराहनीय है। हर व्यक्ति को पौधारोपण जरूर करना चाहिए। इससे पर्यावरण का संरक्षण होगा। शुद्ध प्राणवायु आक्सीजन मिलेगी। वन विभाग ने भी जुलाई में लक्ष्य के अनुसार पौधारोपण की तैयारियां शुरू कर दी हैं। पौधारोपण के लिए चलने वाले किसी भी अभियान को उत्सव की तरह मनाएं। यह हमारे आने वाले कल के लिए बहुत जरूरी है।
दिवाकर कुमार वशिष्ठ, जिला वनाधिकारी
पौधारोपण से बड़ा कोई पुनीत कार्य नहीं : कमिश्नर
कमिश्नर गौरव दयाल ने दैनिक जागरण के अभियान की सराहना करते हुए मंडल के लोगों से पौधारोपण की अपील की है। उन्होंने कहा है कि आने वाला समय पौधारोपण के लिए बहुत अच्छा है। प्रत्येक व्यक्ति को एक पौधा अवश्य रोपना चाहिए। पौधारोपण से बड़ा कोई पुनीत कार्य नहीं है। मानव जीवन में पेड़-पौधों का विशेष महत्व है। बच्चे-बड़े सभी लोग पौधारोपण में अपना अमूल्य योगदान दे सकते हैं। उन्होंने कहा कि कई बार भवन निर्माण के दौरान लोग उस स्थान के पेड़ों को कटवा देते हैं। यह गलत है। आर्किटेक्ट से उस घर की ऐसी डिजाइन बनवानी चाहिए कि पौधा भी बच जाए और निर्माण भी हो जाए। कई सरकारी भवनों के निर्माण के दौरान ऐसे पौधों को बचाया गया भी है। अब इन्हें देखकर अच्छी अनुभूति होती है।