Corona Warrior : जब तक सांस है मरीजों की सेवा करती रहूंगी Aligarh News
ईश्वर ने मुझे इस काम के लिए चुना है। मुझसे जितनी सेवा की जा सकती है कर रही हूं। समय बहुत खराब है। हमें इससे मुंह नहीं मोड़ना है। जब तक सांस हैं इस जिम्मेदारी को पूरा करूंगी। मैंने घर में भी बोल रखा है कि मेरा इंतजार मत करना।
अलीगढ़, संतोष शर्मा। ईश्वर ने मुझे इस काम के लिए चुना है। मुझसे जितनी सेवा की जा सकती है कर रही हूं। समय बहुत खराब है। हमें इससे मुंह नहीं मोड़ना है। जब तक सांस हैं इस जिम्मेदारी को पूरा करूंगी। मैंने घर में भी बोल रखा है कि मेरा इंतजार मत करना। जब तक मुझे में दम है, ड्यूटी से पीछे नहीं हटूंगी। ये कहते-कहते सिस्टर बबीता स्काट का गला भर आता है। कहती हैं, अस्पतालों में मरीजों का डाक्टर व नर्स के अलावा कोई नहीं होता है। अगर हम उनको हिम्मत नहीं देंगे तो कौन देगा। ईश्वर इंसान की बड़ी परीक्षा ले रहा है, लेकिन हमें विचलित नहीं होना चाहिए।
भर्ती कराने के बाद नहीं आते परिजन
सिस्टर बबीता स्काट अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के जवाहर लाल नेहरू मेडिकल कालेज में हेड नर्स हैं। जो पिछले एक साल से कोरोना वार्ड में सेवा दे रही हैं। उनके साथ अन्य नर्सिंग स्टाफ भी इसी तल्लीनता से ड्यूटी को बखूबी अंजाम दे रहा है। बबीता बताती हैं कि वह 27 साल से नौकरी कर रही हैं। लेकिन ऐसा वक्त पहले कभी नहीं देखा। जनरल वार्ड में इतना काम नहीं होता। वहां तो मरीज की देखभाल के लिए तीमारदार होते हैं । हमें तो मरीज को इंजेक्शन, दवाएं ही देनी होती हैं। कोविड वार्ड में ऐसा नहीं हैं। यहां मरीजों के लिए सबकुछ डाक्टर व नर्स होते हैं। हम दवाएं देने के साथ उनके दूसरे काम भी करते हैं। मरीज को खाना खिलाना, टायलेट को ले जाना आदि जिम्मेदारी भी संभालनी होती है। बहुत से मरीज तो वार्ड में आते ही घबरा जाते हैं। उनकी हम काउंसलिंग भी करते हैं। समझाते हैं कि बीमारी लाइलाज नहीं हैं, बस जरूरत है समय पर इलाज शुरू करने की। मरीजों को भी एहसास हो जाता है कि यहां डाक्टर व नर्स के अलावा उनका कोई नहीं है। परिवार के लोग तो भर्ती कराने के बाद आते भी नहीं हैं। ऐसा कई मरीजों के साथ हुआ भी है।
घर पर रहती हैं अकेली
सिस्टर बबीता सुबह आठ बजे ड्यूटी के लिए निकल जाती हैं। शाम को साढ़े चार व पांच बजे के बाद ही घर पहुंचना होता है। परिवार के सभी सदस्य ठीक से रहें इस लिए वह दूरी भी बनाकर रखती हैं। मकान में वह एक कमरे में अलग रहती हैं। परिवार में उनके दो बेटी हैं।
मन मारकर नहीं खुले मन से करते हैं ड्यूटी
जेएन मेडिकल कालेज के ही कोविड वार्ड में ड्यूटी कर रहीं सिस्टर सिंथिया स्टीफन भी अपने को भाग्यशाली मानती हैं। कहतीं है हर किसी को ये सेवा करने का मौका नहीं मिलता है। हम मन मारकर नहींं, खुले मन से मरीजों की सेवा कर रहे हैं। 16 साल से नौकरी कर रहीं सिंथिया बताती हैं कि मरीज कभी-कभी हम पर ही नाराज हो जाते हैं। हम उन्हें समझाते हैं। उनकी बातों पर नाराज नहीं होते। क्यों हालात ही ऐसे हैं मरीज परेशान हो जाता है। बताती हैं कि वह भी घर में एक कमरे में अलग रहती हैं। दो बेटा हैं जो उनके घरेलू काम में मदद भी करते हैं।