Corona Havoc in Aligarh: मजबूरियों को समझिए, दुआएं लीजिए...पैसा तो मिलता रहेगा

इस समय चारों तरफ चीत्कार है करुण पुकार है। दशहत में हर इंसान है। हर कोई कह रहा है कि धरती पर डाक्टर भगवान है। इससे बड़ी उपाधि आपको दी नहीं जा सकती है। इसलिए आपके पास दो अवसर हैं।

By Sandeep Kumar SaxenaEdited By: Publish:Thu, 06 May 2021 11:31 AM (IST) Updated:Thu, 06 May 2021 11:31 AM (IST)
Corona Havoc in Aligarh:  मजबूरियों को समझिए, दुआएं लीजिए...पैसा तो मिलता रहेगा
इस समय चारों तरफ चीत्कार है, करुण पुकार है। दशहत में हर इंसान है।

अलीगढ़, जेएनएन। इस समय चारों तरफ चीत्कार है, करुण पुकार है। दशहत में हर इंसान है। हर कोई कह रहा है कि धरती पर डाक्टर भगवान है। इससे बड़ी उपाधि आपको दी नहीं जा सकती है। इसलिए आपके पास दो अवसर हैं। एक आप मरीजों के दर्द को दरकिनार कर अपनी झोली भरें, दूसरी उनकी तकलीफों को समझकर इलाज करें और उनकी दुआएं लें। जिन्हें आप सस्ता और अच्छा इलाज देंगे, वो जिंदगी भर आपको भूलेगा नहीं। क्योंकि इस समय किसी का बेटा, किसी के पिता, किसी की मां की सांस की डोर टूट रही है। न जाने कहां से वो लोग पैसे इकट्ठा करके ला रहे हैं। तमाम बुजुर्ग ऐसे हैं जो जवान बेटे को बचाने के लिए पगड़ी को पांव पर रख दे रहे हैं, गिड़गिड़ा रहे हैं। हालात से आप भी वाकिफ हैं, क्योंकि आप धरती के ही भगवान हैं। इसलिए मजबूरियों को समझिए, परिवार को दो तरफ से मरने मत दीजिए। एक मरीज जा रहा है, दूसरे पूरा परिवार इलाज के कर्ज के बोझ तले मरता है। रहम कीजिए... 

मेरे पास...मेरा परिवार है

आज मुझे दीवार फिल्म का डायलाग याद आ रहा है। अमिताभ का वो डायलाग सुनिए। मेरे पास? बिल्डिंग है, प्रापर्टी है, बंगला है, गाड़ी है, क्या है तुम्हारे पास? थमकर, सुकून भरी आवाज में शशी कपूर कहते हैं मेरे पास मां है। यानि दौलत और शोरहत से बड़ी चीज मां को बताया। कोरोना के काल में ये डायलाग कुछ इस तरह हो सकता है। गाड़ी, बंगला खड़े करने वाले लोग यदि ईंट भट्ठे के मजदूर और किसान से पूछेंगे तो वह सुकून भरे अंदाज में कहेंगे कि मेरे पास? मेरा परिवार है। आज जिंदगी बचाने की जिद्दोजहद है। इमारते खड़ी हैं, लग्जरी गाड़ियां थमी हैं। अकूत संपत्ति एकत्र करने वालों को भी आक्सीजन नहीं मिल पास? रहा है। डाक्टरों के सामने वह भी मजदूरों की तरह माई-बाप कहते हुए गिड़गिड़ा रहे हैं। ये ताकीद है, हम प्रकृित की ओर बढ़े। उससे खिलवाड़ न करें। क्योंकि ईंट-भट्ठे पर काम करने वालों की सांसे नहीं उखड़ रही हैं। दरसअल, वो प्रकृति के साथ हैं। 

जिंदगी बचाइए..अध्यक्ष आते-जाते रहेंगे 

आज सभी दल अध्यक्ष बनाने के लिए जोड़-तोड़ में जुट गए हैं। बहुमत किसी को नहीं हैं, मगर जुगाड़ हर किसी के पास है। हर कोई कोशिश कर रहा है कि कुछ भी करना पड़े मगर अध्यक्ष किसी तरह उनकी पार्टी का बनना चाहिए। सत्ता पक्ष ताकत में है तो विपक्ष एकजुटता की कोशिश कर रहा है। सभी दलों में इन्हीं पर मंथन और चिंतन चल रहा है। इन दलों के नेताओं ने चुनाव के समय अपने आपको सबसे बड़ा रहनुमा बताया होगा। सीना ठोककर कहा होगा कि जनता के सबसे बड़े शुभचिंतक वही है। यदि सही मायने में यह जनता के शुभचिंतक हैं तो इन्हें कहना चाहिए कि अध्यक्ष दाे महीने बाद भी बना लेंगे, मगर मेरे लिए सबसे पहले जनता है। कोरोना के संकट में पहले मैं इनकी रक्षा करूंगा? स्थिति जब सामान्य हो जाएगी तब अध्यक्ष के लिए कवायद कर लूंगा। मगर, एक भी दल के नेता ने जनता के लिए ऐसी अपील नहीं की। 

मुझे खरीद लो....बिकने के लिए तैयार हूं 

बोली लगने का समय आ गया है। कुछ बिकने को भी तैयार हैं। दल, पद, प्रतिष्ठा से अधिक उन्हें पैसे की चाहत है। इसलिए अधिक से अधिक बोली लगाने वाले का वो बेसब्री से इंतजार कर रहे है। अभी जिले के एक बड़े नेता ने एक सदस्य का हालचाल लें? लिया। कहा कि फोन पर संपर्क पर रहना, दो दिन से मिला रहा हूं तो तुम्हारा फोन स्वीच आफ जाता है। कोई दूसरा नंबर हो तो दे दो। सदस्य कन्नी काट गए। दबी जुबान से बोलें, इनसे हमें कितना मिलेगा, चुनाव में लाखों खर्च हो गए हैं। नैतिकता का पाठ वर्षों पढ़ा है, पर मिला कुछ नहीं। इसलिए जिसकी बोली ठीक लगेगी उसी के साथ जाऊंगा। कमोवेश यही स्थिति तमाम की है। हर किसी को चिंता है कि चुनाव में खर्च हुआ पैसा निकलकर किसी तरह आ जाए। इसलिए वो प्रतीक्षा कर रहे हैं कि किसी तरह बड़ी बोली लगाने वाले का फोन उनके पास आ जाए और वो लपककर उठा लें?

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