Arbitrary in Government Covid Hospitals: कोरोना का संताप, वीआइपी न होना अभिशाप Aligarh News
‘तुम्हारी फाइलों में गांव का मौसम गुलाबी है मगर ये आंकड़े झूठे हैं ये दावा किताबी है।’ अदम गोंडवी की ये पंक्तिया कोरोना महामारी के बीच सटीक बैठ रही हैं। कोविड अस्पताल में अक्सीजन बेड आइसीयू व वेंटीलेटर की संख्या बढ़ाई जा रही है।
अलीगढ़, जेएनएन। ‘तुम्हारी फाइलों में गांव का मौसम गुलाबी है, मगर ये आंकड़े झूठे हैं ये दावा किताबी है।’ अदम गोंडवी की ये पंक्तिया कोरोना महामारी के बीच सटीक बैठ रही हैं। कोविड अस्पताल में अक्सीजन बेड, आइसीयू व वेंटीलेटर की संख्या बढ़ाई जा रही है। हकीकत ये है कि जिंदगी की मेराथान में सांसों की डोर कमजोर पड़ रही है। इलाज के अभाव में तमाम मरीज रोजाना काल का ग्रास बन रहे हैं। दरअसल, कोविड अस्पताल में भर्ती होने के लिए मरीज का वीआइपी या फिर उनका करीब होना अनिवार्य शर्त होगी है। यदि आप इनमें से कोई भी शर्त पूरी नहीं करते तो कोविड अस्पताल में इलाज कराने की बात भूल जाइए। यदि आप मरीज का प्राइवेट कोविड अस्पताल में इलाज नहीं करा सकते तो वीआइपी न होना अापके लिए किसी अभिशाप से कम नहीं है। ऐसे मरीजों का बस भगवान ही मालिक है। क्योंकि, तंत्र मौन है।
आकस्मिक मौत का सच तो बताए कोई
कोविड अस्पतालों में आक्सीजन की सुचारू आपूर्ति के खूब दावे हैं। सच तो ये है कि सरकारी ही नहीं, निजी कोविड अस्पतालों में रोजाना आक्सीजन खत्म हो जाने की सूचनाएं मिल रही हैं। इसी दौरान मरीजों के मरने की खबरें भी आती हैं। हालांकि, अधिकारी इस बात से इन्कार करते रहे हैं। कई मामलों में स्वजन ने खुद बताया कि वे अपने मरीज का हालचाल जानकर अस्पताल से लौटे। देररात या सुबह सूचना दी गई कि आपके मरीज की मृत्यु हो गई। तमाम मामलों में स्वजन का आरोप रहा कि उनके मरीज की मृत्यु आक्सीजन न मिलने से हुई। सवाल ये है कि जब आक्सीजन की सप्लाई ठीक है तो मृत्यु कम क्यों नहीं हो रही? डेथ आडिट के नाम पर बस खानापूरी हो रही है। कोर्ट भी कह चुकी है कि आक्सीजन की कमी से मौत का मतबल हत्या है। अब तंत्र बताए, इन मौतों का जिम्मेदार कौन है?
बेड खाली करने के लिए जबरन डिस्चार्ज
राजीव गुप्ता, उम्र 55 साल। आक्सीजन सेचुरेशन कम होने पर कोविड अस्पताल में भर्ती कराया गया। चार-पांच दिन आक्सीजन पर रहे। इलाज से कुछ आराम भी मिला, लेकिन दो दिन पूर्व स्टाफ ने अचानक उन्हें डिस्चार्ज कर दिया। यह कहते हुए कि अब आपको कोरोना नहीं है, घर पर ही इलाज लें। नए मरीजों को भर्ती करना है। जबकि, उनकी आक्सीजन सेचुरेशन 75-80 थी। सांस लेने में भी तकलीफ थी। स्टाफ को बताया, मगर किसी ने नहीं सुनी और जबरन वार्ड से बाहर कर दिया गया। कोविड अस्पातल से मरीजों को इस तरह डिस्चार्ज करने के ऐसे तमाम मामले सामने आ रहे हैं। समुचित इलाज न मिलने से कई की मौत हो चुकी है। सवाल ये है कि नए मरीज भर्ती करने के नाम पर पुराने व गंभीर मरीजों
को जबरन डिस्चार्ज का कौन सा नियम बन गया? यह डाक्टरी पेशे और मानवता के बिल्कुल खिलाफ है।
होम आइसोलेशन से बाहर नहीं निकल रहा स्टाफ
सरकारी कोविड अस्पातलों के काफी डाक्टर व स्टाफ भी संक्रमित निकल रहे हैं। हालांकि, सभी ने टीकाकरण कराया है। इसलिए किसी को ज्यादा गंभीर लक्षण नहीं। शायद ही कोई मामला सामने आया हो, जिसमें टीकाकरण कराने वाले कर्मचारी को आइसीयू या वेंटीलेटर पर लेना पड़ा। अधिकारी परेशान इसलिए हैं कि होम आइसोलेशन में इलाज करा रहे ऐसे संक्रमित डाक्टर व अन्य कर्मचारी एक-एक माह बाद भी नहीं लौटे। सभी ने अर्जी दी है कि वे कमजोरी, थकान, बदन दर्द आदि से जूझ रहे हैं। इनमें कुछ कर्मियों की मजबूरी हो सकती है, लेकिन सभी की नहीं। बहरहाल, कर्मियों के संक्रमित होने से मरीजों के इलाज व देखभाल में समस्या हो रही है। वहीं, ड्यूटी पर तैनात अन्य कर्मियों को एक दिन की भी छुट्टी नहीं मिल पा रही। कई तो मानसिक तनाव में भी हैं। हम तो यही कहेंगे कि जो बीमार हैं, वे जल्द स्वस्थ होकर लौंटे।