आंदोलन का बदला तरीका, अब अपनाते हैं ऐसे रास्ते, जानिए विस्‍तार सेAligarh News

अब समय आंदोलन और धरना-प्रदर्शन का तरीका भी बदल गया है। किसान आंदोलन में ऐसा तमाम जगहों पर देखने को मिल रहा है। केंद्र और सरकार का विरोध करने में घास-फूस फूंके जा रहे हैं। किसान दावा कर रहे हैं कि उन्होंने सरकार का पुतला फूंक दिया।

By Sandeep Kumar SaxenaEdited By: Publish:Tue, 19 Oct 2021 04:21 PM (IST) Updated:Tue, 19 Oct 2021 04:21 PM (IST)
आंदोलन का बदला तरीका, अब अपनाते हैं ऐसे रास्ते, जानिए विस्‍तार सेAligarh News
अब धरना-प्रदर्शन का तरीका भी बदल गया है।

अलीगढ़, जागरण संवाददाता। अब आंदोलन और धरना-प्रदर्शन का तरीका भी बदल गया है। किसान आंदोलन में ऐसा तमाम जगहों पर देखने को मिल रहा है। केंद्र और सरकार का विरोध करने में घास-फूस फूंके जा रहे हैं। किसान दावा कर रहे हैं कि उन्होंने सरकार का पुतला फूंक दिया। ऐसा पूरे जिले में आंदोलन चल रहा है।

ऐसे होता था पहले आंदोलन

पहले सरकार के खिलाफ आंदोलन और धरना प्रदर्शन में खुलकर विरोध किया जाता था। बकायदा नेताजी के नाम से पुतला बनाया जाता था। पुतले को घास फूस के साथ ही कपड़े पहनाए जाते थे। कई बार तो नेताजी के मुखौटे लगाए जाते थे। नेताजी का नाम लिखा जाता था, इसके बाद उस पुतले को चौराहों पर घुमाया जाता था, फिर उसे आग के हवाले किया जाता था। सरकार के खिलाफ नारेबाजी की जाती थी। मगर, अब ऐसा नहीं होता है। करीब एक साल से अधिक समय से किसान आंदोलन चल रहा है। किासन जगह-जगह धरना प्रदर्शन कर रहे हैं। जिले में भी तमाम स्थानों पर प्रदर्शन हुआ, मगर स्वरुप बदला दिखा। शनिवार को जिले किसान संयुक्त मोर्चा ने दो दर्जन स्थानों पर पुतला फूंकने का दावा किया। मोर्चा के संयोजक शशिकांत ने बताया कि कई जगहों पर तो किसानों को पुलिस ने रोक लिया मगर दो दर्जन के करीब स्थानों पर फिर भी पुतले फूंके गए। हालांकि, जो तस्वीर आईं वो हास्यास्पद थीं। पुतले की जगह धान की पोआल लगाई गई थी। उसे ठंड और लाठी में लगाकर जलाया गया। फिर कह दिया गया कि पुतला दहन कर दिया गया है। ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर इस तरह के विरोध का क्या औचित्य रह गया है। यदि पुतला दहन करना है तो जोरदारी के साथ सामने आएं और उसके बाद पुतले का दहन करें। वहीं, शनिवार को किसानों के आंदोलन को देखते हुए तमाम जगहों पर किसानों को नजरबंद कर लिया गया। पहले नजरबंद किए जाने पर नेताजी का पता नहीं लगता था।

नेताओं को रखते थे बंद कमरे में

पुलिस बंद कमरे में बैठती थी। मगर, अब चलन चल गया है कि नेताजी आराम से बैठे हैं और साथ में दो पुलिस कर्मी भी रहते हैं। सुरक्षा की दृष्टि से बैठे पुलिस कर्मियों के चेहरे पर भी राैनक होती है और नेताजी के चेहरे भी खिले रहते हैं। थोड़ी ही देर में नजरबंद की तस्वीर इंटरनेट मीडिया पर वायरल भी होने लगती है। शाम तक तो वह पूरे प्रदेश में फैल जाती है कि नेताजी नजरबंद हैं, जबकि पहले एेसा नहीं होता था, तस्वीर खींचने की बात तो दूर यह जानकारी भी नहीं हो पाती थी कि आखिर नेताजी को नजरबंद कहां किया गया है? बहरहाल, समय को देखते हुए आंदोलन का तरीका भी बदल लिया गया है।

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