वट का पूजन कर अखंड सौभाग्य का मांगा आशीर्वाद

अखंड सौभाग्यवती का व्रत वट सावित्री श्रद्धाभाव के साथ मनाया गया। गुरुवार को सुहागिनों ने पूजन किया।

By JagranEdited By: Publish:Fri, 11 Jun 2021 01:19 AM (IST) Updated:Fri, 11 Jun 2021 01:19 AM (IST)
वट का पूजन कर अखंड सौभाग्य का मांगा आशीर्वाद
वट का पूजन कर अखंड सौभाग्य का मांगा आशीर्वाद

जासं, अलीगढ़ : अखंड सौभाग्यवती का व्रत वट सावित्री श्रद्धाभाव के साथ मनाया गया। गुरुवार को सुहागिनों ने बरगद के पेड़ की पूजा की और अखंड सौभाग्य का आशीर्वाद लिया। पति की लंबी उम्र की कामना की। शहर में सुबह से ही वट के पेड़ों के पूजन की तैयारियां शुरू हो गई थी। महिलाओं ने व्रत के संकल्प के साथ ही सोलह श्रृंगार किया। रेलवे स्टेशन के निकट, क्वार्सी, सारसौल, सासनीगेट आदि स्थानों पर वट का पूजन किया। घर से प्रसाद बनाकर ले आईं सुगाहिनों ने अर्पित किया। कलावा बांधा और 108 परिक्रमा लगाई। पौराणिक कथाओं के अनुसार इसी दिन सावित्री ने यमराज से अपने पति के प्राण वापस लौटाए थे। सावित्री के सतित्व को देखकर यमराज को भी सत्यवान को जीवित करना पड़ गया था।

सुहागिनों ने वट के नीचे बैठकर सावित्री और सत्यवान की कथा सुनी। बांस का पंखा, धूप, दीप, घी, बाती लाल और पीले रंग का कलावा, पुष्प, सुहागा का सामान, जल भरा हुआ कलश आदि से पूजन किया। पूजन के बाद सुहागिनों ने बायना निकाला और अपनी सासु मां को दिया। ब्राह्मणों को वस्त्र, दक्षिणा आदि दान दिया। गांधी नगर में प्रीति वाष्र्णेय ने महिलाओं के साथ पूजन किया। उन्होंने बताया कि सुबह से ही पूजन की तैयारियों में जुटी हुई थीं। पेड़ के नीचे ही सभी ने कथा सुनी और पति की लंबी आयु की कामना की। प्रीति ने कहा कि वट सावित्री का व्रत हमें पर्यावरण का भी संदेश देते हैं। इसलिए उन्होंने अपने आंगन में वट का पेड़ लगा रखा है।

ग्रहण के चलते रहे असमंजस में

गुरुवार को सूर्य ग्रहण पड़ने से तमाम महिलाएं व्रत को लेकर असमंजस में थी। हालांकि, यह सूर्य ग्रहण विदेश में था, भारत में इसका कोई असर नहीं था, इसलिए सूतक आदि भी नहीं मान्य था। स्वामी पूर्णानंदपुरी महाराज ने बताया कि व्रत, पूजन आदि में किसी तरह का कोई परहेज नहीं था, सुहागिनों ने आम दिनों की तरह विधि-विधान से पूजन किया। उन्होंने कहा कि सिर्फ सनातन संस्कृति में एक घड़ी, एक पल तक की जानकारी दी जाती है। इसलिए हमारे यहां तीज त्योहार निश्चित तिथि पर ही मनाए जाते हैं।

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