अमृत महोत्सव: सोशल आडिट का बेहद जरूरी, जानिए विस्‍तार सेAligarh News

व्यवस्था की जवाबदेही सुनिश्चित करना जन-सहभागिता बढ़ाना। कार्य एवं निर्णय प्रक्रिया में पारदर्शिता लाना। जनसामान्य को उनके अधिकारों एवं हक के बारे में जागरूक करना।कार्ययोजनाओं के चयन एवं क्रियान्वयन पर निगरानी रखना यह सभी इसके मूल उद्देश्य हैं।

By Sandeep Kumar SaxenaEdited By: Publish:Thu, 21 Oct 2021 05:41 PM (IST) Updated:Thu, 21 Oct 2021 05:41 PM (IST)
अमृत महोत्सव: सोशल आडिट का बेहद जरूरी, जानिए विस्‍तार सेAligarh News
कार्ययोजनाओं के चयन एवं क्रियान्वयन पर निगरानी रखना यह सभी इसके मूल उद्देश्य हैं।

अलीगढ़, जागरण संवाददाता। आजादी के अमृत महोत्सव के अवसर पर सोशल ऑडिट जनसुनवाई एवं जागरूकता कार्यक्रम सेमिनार का आयोजन विकास भवन के सभागार में किया गया। कार्यक्रम का शुभारंभ जिला विकास अधिकारी भरत कुमार मिश्र, परियोजना निदेशक, डीआरडीए भालचंद त्रिपाठी, स्वतंत्र सेनानियों एवं पूर्व सैनिकों द्वारा दीप प्रज्ज्वलन कर किया गया। जिला विकास अधिकारी भरत कुमार मिश्र ने सर्वप्रथम मंच पर उपस्थित सभी स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के परिजनों को  सभी को शॉल उड़ाकर सम्मानित किया। साथ ही सभी लोगों को सोशल ऑडिट के उद्देश्य बताए।

जन सहभागिता बढ़ाना जरूरी

उन्होंने कहा कि व्यवस्था की जवाबदेही सुनिश्चित करना जन-सहभागिता बढ़ाना। कार्य एवं निर्णय प्रक्रिया में पारदर्शिता लाना। जनसामान्य को उनके अधिकारों एवं हक के बारे में जागरूक करना। कार्ययोजनाओं के चयन एवं क्रियान्वयन पर निगरानी रखना यह सभी इसके मूल उद्देश्य हैं। साथ ही उन्होंने बताया कि सोशल ऑडिट महत्त्वपूर्ण क्यों है। उन्होंने कहा कि सोशल ऑडिट की व्यवस्था को यदि भली-भाँति लागू किया जाए तो इससे कई लाभ प्राप्त किये जा सकते हैं, जो सुशासन में मददगार साबित होंगे, जैसे इससे लोगों को सहजतापूर्वक सूचना मिलेगी और शासन व्यवस्था पारदर्शी होगी। जवाबदेही बढ़ेगी, जिससे भ्रष्टाचार पर अंकुश लग सकेगा। नीतियों और कार्यक्रमों की योजना-निर्माण में आम जनता की भागीदारी बढ़ेगी। सोशल ऑडिट से ग्राम सभा या शहरी क्षेत्रों में मोहल्ला-समिति जैसी प्रजातांत्रिक संस्थाओं को मज़बूती मिलेगी। परियोजना निदेशक डीआरडीए भालचंद्र त्रिपाठी ने संबोधित करते हुए कहा कि आजादी का अमृत महोत्सव के साथ विकास के कार्यों की सोशल ऑडिट जनसुनवाई एवं जागरूकता किस प्रकार की जाती है यह ही बताना इस कार्यक्रम का मूल उद्देश्य है। उन्होंने कहा कि सर्वप्रथम हमको यह जानना है कि सोशल ऑडिट क्या होता है। कोई नीति, कार्यक्रम या योजना से वांछित परिणाम हासिल हो पा रहा है या नहीं? उनका क्रियान्वयन सही ढंग से हो रहा है या नहीं? इसकी छानबीन यदि जनता स्वयं करे तो उसे सोशल ऑडिट कहते हैं। यह एक ऐसा ऑडिट है जिसमें जनता, सरकार द्वारा किये गए कार्यों की समीक्षा ग्राउंड रियलिटी के आधार पर करती है।

निरंतर हो रहे अनूठे प्रयोग

उन्होंने कहा कि पूरे विश्व में आजकल प्रतिनिधिक प्रजातंत्र की सीमाओं को पहचानकर नीति-निर्माण और क्रियान्वयन में आम जनता की सीधी भागीदारी की मांग जोर पकड़ रही है। निगरानी के अन्य साधनों के साथ ही सामुदायिक निगरानी के विभिन्न साधनों के अनूठे प्रयोग हो रहे हैं। सोशल ऑडिट ऐसी ही एक अनूठी पहल है। उल्लेखनीय है कि महात्मा गांधी राष्ट्रीय रोज़गार गारंटी अधिनियम, 2005 में सोशल ऑडिट का प्रावधान किया गया है। इस कानून की धारा-17 के अनुसार साल में दो बार ग्राम सभा द्वारा सोशल ऑडिट किया जाना आवश्यक है। ग्राम सभा, ग्राम पंचायत क्षेत्र में निवास करने वाले सभी पंजीकृत मतदाताओं का एक साझा मंच है। ग्रामीण क्षेत्र में प्रत्यक्ष लोकतंत्र की यह सबसे महत्त्वपूर्ण संस्था है।

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