फेसबुक व ट्विटर पर छाने को तैयार अलीगढ़ की शेखाझील, अपलोड होंगे सैलानियों की तस्वीरें Aligarh news
अपने प्राकृतिक सौंदर्य व प्रवासी पक्षियों के लिए प्रसिद्ध शेखाझील पक्षी विहार की पहचान अब अलीगढ़ ही नहीं बल्कि प्रदेश और देशभर में भी होगी। इसके लिए वन विभाग इस झील को फेसबुक ट्विटर वाट्सएप इंस्टाग्राम विकीपीडिया समेत इंटरनेट मीडिया के अन्य माध्यमों के जरिए प्रमोट करेगा।
अलीगढ़, जेएनएन । अपने प्राकृतिक सौंदर्य व प्रवासी पक्षियों के लिए प्रसिद्ध शेखाझील पक्षी विहार की पहचान अब अलीगढ़ ही नहीं, बल्कि प्रदेश और देशभर में भी होगी। इसके लिए वन विभाग इस झील को फेसबुक, ट्विटर, वाट्सएप, इंस्टाग्राम, विकीपीडिया समेत इंटरनेट मीडिया के अन्य माध्यमों के जरिए प्रमोट करेगा। इसके लिए अलग-अलग साइट्स पर पेज बनाए जाएंगे। इन साइट्स पर नियमित रूप से झील, पक्षियों व सैलानियों के फोटो अपलोड किए जाएंगे। पूछताछ के लिए हेल्पलाइन नंबर बनाए जाने की भी योजना है। कवायद सफल रही तो झील को देशव्यापी पहचान मिल जाएगी।
डा. सालिम अली ने कराई थी पहचान
अलीगढ़ से 17 किलोमीटर दूर पनैठी-जलाली मार्ग स्थित शेखा झील 1852 में तब अस्तित्व में आई जब यहां पर अपर गंग नगर का निर्माण हुआ, लेकिन इसकी खोज महान पक्षी विज्ञानी डा. सालिम अली ने की। 1977 में वे एएमयू आए तो झील की जानकारी मिली। इसके बाद यूनिवर्सिटी के छात्र-छात्राएं यहां पक्षियों के बारे में जानकारी लेने आते रहे। आज भी साइबेरियन देशों में ठंड बढ़ते ही हर साल (अक्टूबर माह) हजारों देसी-विदेशी पक्षी प्रवास के लिए शेखाझील का रुख करते हैं। 1996 में जिला प्रशासन ने झील को अपनी देखरेख में लिया। 2003 में बसपा शासन में राष्ट्रीय वेटलैंड घोषित की गई। 14 अप्रैल 2016 को सपा सरकार में इसे राष्ट्रीय पक्षी विहार घोषित किया गया। डेढ़ साल पहले योगी सरकार भी इसे रामसर साइट में शामिल कर चुकी है।
निजामुद्दीन शेख की शिकारगार
इतिहासकारों के अनुसार मुगलशासन काल में जलाली के निकट शेखा में निजामुद्दीन शेख की शिकारगाह हुआ करती थी। वह अपने नुमाइंदों के साथ शेखाझील पर शिकार करने आते थे। तब यह झील करीब दो हजार बीघा में फैली हुई थी, लेकिन अब यह करीब पांच सौ बीघा ही है।
ये आते हैं परिदें
शेखाझील पर डार्टर, ग्रे हीरोन, पैटेंड स्ट्रोक, ग्रेट कोरमोरेंट, पर्पल हीरोन, ब्लैक पिनटेल, कॉम्ब डक, आइबिज, ब्लैक हेडेड आइबिज, ओपन बिल स्ट्रोक, स्पाट बिल्ड डक, ब्लैक नेक्ड स्ट्रोक, व्हाइट ब्रेस्टेड, वाटर हेन, कामन मूरहेन, लिटिल कोरमोरेंट, व्लाइट आइबिज, सोवलर, कामन टील आदि परिंदें हर साल यहां आते हैं। उनके आते ही झील गुलजार हो जाती है।
नहीं मिल पाई पहचान
राष्ट्रीय वेटलेंड योजना, पक्षी विहार का दर्जा मिलने व रामसर साइट में शामिल होने के बाद भी शेखाझील को वह पहचान नहीं मिल पाई है, जो मिलनी चाहिए। दरअसल, इसके लिए कभी प्रयास ही नहीं किए। पक्षी विहार के भ्रमण के लिए जनपद से बाहर के पक्षी विशेषज्ञों को आमंत्रित किया गया और न छात्रों को ही। इससे इतने सालों बाद भी यहां पर्यटन दम तोड़ रहा है। बहरहाल, सरकार यहां सुविधाएं बढ़ा रही है तो वन विभाग ने झील को प्रमोट करने की तैयारी कर ली है।
इनका कहना है
झील को इंटरनेट मीडिया व अन्य माध्यमों से अलीगढ़ व उससे बाहर भी पहचान दिलाने का प्रयास किया जाएगा। झील व पक्षियों के बारे में ज्यादा से ज्यादा जानकारी जुटाकर लोगों तक पहुंचाई जाएगी। नियमित रूप से सूचनाएं अपडेट की जाएंगी। पक्षी प्रेमियों व विशेषज्ञों को भी जोड़ा जाएगा।
- दिवाकर कुमार वशिष्ठ, डीएफओ।