Justice after 19 years : अलीगढ़ के वरिष्ठ अधिवक्‍ता ने खुद पैरवी कर बेटे के हत्यारे को दिलाई सजा Aligarh news

संजीव हत्याकांड कोर्ट में 19 साल तक चलता रहा। लेकिन अधिवक्ता बलवीर सिंह ने हिम्मत नहीं हारी। अलीगढ़ से लेकर हाईकोर्ट के कई चक्कर काटे। खुद ही पैरवी करके हत्यारों को सजा दिलाई। इस बीच दो सौ तारीखें लगीं। 30 जज बदल गए।

By Anil KushwahaEdited By: Publish:Sat, 25 Sep 2021 10:08 AM (IST) Updated:Sat, 25 Sep 2021 10:08 AM (IST)
Justice after 19 years : अलीगढ़ के वरिष्ठ अधिवक्‍ता ने खुद पैरवी कर बेटे के हत्यारे को दिलाई सजा Aligarh news
संजीव हत्याकांड में 19 साल बाद मिला पिता को न्‍याय।

अलीगढ़, जागरण संवाददाता।  संजीव हत्याकांड कोर्ट में 19 साल तक चलता रहा। लेकिन, अधिवक्ता बलवीर सिंह ने हिम्मत नहीं हारी। अलीगढ़ से लेकर हाईकोर्ट के कई चक्कर काटे। खुद ही पैरवी करके हत्यारों को सजा दिलाई। इस बीच दो सौ तारीखें लगीं। 30 जज बदल गए। वहीं नए जिला जज ने 20 दिन के अंदर आजीवन कारावास का फैसला सुनाया है। तीनों पर 20-20 हजार का जुर्माना भी लगाया है।

2002 में हुई थी संजीव की हत्‍या

वर्ष 2002 में संजीव की हत्या हुई थी। उनके पिता बलवीर सिंह ने बताया कि शुरुआत से ही आरोपित अपने बचाव के लिए तरह-तरह के पैंतरे अपनाते रहे। पुलिस ने 29 अप्रैल को तीनों मेरठ में गिरफ्तार हुए थे। पुलिस इन्हें बी वारंट पर अलीगढ़ लाई थी। लेकिन, डेढ़ साल बाद ही तीनों जमानत पर बाहर आ गए, बल्कि हाईकोर्ट से स्टे ले लिया। इसके बाद एक एडीजीसी के बेटे की हत्या की। अधिवक्ता ने वर्ष 2006 में स्टे को हाईकोर्ट से खारिज कराया। साथ ही यह आदेश भी कराया कि मामले की शीघ्र से शीघ्र सुनवाई हो। इसके बावजूद तीनों अपराधी गंभीर घटनाओं को अंजाम देते रहे। वर्ष 2006 में रौबी पूर्व विधायक मलखान सिंह हत्याकांड में शामिल रहा। इसी साल बुलंदशहर में कविता हत्याकांड में योगेश शामिल था। फिर दोनों को जेल हुई। लेकिन, बाहर आ गए।

2010 में मुकदमे में ट्रायल प्रक्रिया शुरु हुई थी

अधिवक्ता के बताया कि 2010 में मुकदमे में ट्रायल प्रक्रिया शुरू हो गई थी। इस दौरान पांच गवाह थे। इसमें बलवीर व रमेश चश्मदीद थे। इनके अलावा पोस्टमार्टम को साबित करने के लिए डा. वाइ भारद्वाज, विवेचना कर रहे एसआइ आरके वर्मा, एफआइआर व जीडी को साबित करने के लिए हेड मोहर्रिर केशव देव की गवाही हुई। लेकिन, आरोपित लगातार फरार चलते रहे। वर्ष 2015 में हरदुआगंज के जीतू हत्याकांड में कालू का नाम आया। उसने इसी मुकदमे में सरेंडर किया था। इधर, वर्ष 2016 में अधिवक्ता ने हाईकोर्ट से ये आदेश प्राप्त किया कि मामले की सुनवाई विशेष जज से कराई जाए। इधर, योगेश व रौबी के खिलाफ गैरजमानती वारंट जारी हो गए। अधिवक्ता ने बताया कि योगेश व रौबी को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया था। लेकिन, उन्हें छोड़ दिया गया। इसकी शिकायत डीजीपी से हुई थी, जिसके बाद एसओजी ने दोनों को राजस्थान से गिरफ्तार किया था। वर्ष 2018 में अधिवक्ता ने हाईकोर्ट से डे-टू-डे सुनवाई का आदेश कराया। इसके बाद 2019 में हाईकोर्ट ने तीन महीने के अंदर फैसला सुनाने को कहा। अधिवक्ता का कहना है कि इसी बीच आरोपितों ने किसी माध्यम से एफआइआर, तहरीर, सरकारी प्रपत्र भी गायब करवा दिए थे, जो कोर्ट के आदेश पर दोबारा पेश किए गए। जेल पहुंचने के बाद भी आरोपित कोर्ट में किसी तरह से हाजिर नहीं होते थे, जिसके चलते मामले में देरी होती रही। वहीं कोरोना के चलते भी फैसला आने में देरी हुई। अधिवक्ता के मुताबिक, रौबी के खिलाफ डेढ़ दर्जन मुकदमे दर्ज हैं। वहीं योगेश व कालू पर भी कई मुकदमे दर्ज हैं।

तीनों थे दोस्त, बाद में अलग हुआ गैंग

रौबी, कालू व योगेश तीनों दोस्त थे। संजीव हत्याकांड के पीछे वर्चस्व की लड़ाई भी थी। वहीं इस मामले में जेल से आने के बाद तीनों ने प्रापर्टी डीलिंग का काम शुरू कर दिया। लेकिन, बीच में तीनों में खटास आ गई। इसके चलते योगेश व रौबी एक तरफ हो गए और कालू ने अलग गैंग तैयार कर लिया। इस गैंग ने रामघाट रोड पर कई घटनाओं को अंजाम दिया। दोनों गैंग के बीच कलाई में गैंगवार भी हुआ था।

मुझे धमकियां मिलती रहीं, मगर न्याय का भरोसा बरकरार रहा : बलवीर

अलीगढ़ । बेटे की हत्या में 19 साल बाद फैसला आने के बाद अधिवक्ता बलवीर सिंह भावुक हो गए। बोले कि बेटे के जाने का अफसोस आज भी है। लेकिन, मुझे उम्मीद थी कि एक दिन न्याय जरूर मिलेगा। मेरा बेटा प्रापर्टी डीलिंग का काम करता था। ऐसे में क्वार्सी क्षेत्र में एक जमीन की रंजिश को लेकर तीनों मुजरिमों ने उसकी कालेज के गेट के सामने हत्या कर दी थी। मैं सुरक्षा के लिहाज से ही साथ गया था। लेकिन, नहीं पता था कि आरोपित घात लगाए बैठे थे। आरोपित फरार रहकर लगातार बड़ा घटनाएं करते रहे। मुझे भी कई बार धमकियां मिलीं। लेकिन, मेरा हौसला बरकरार रहा। इंसाफ पाकर न्यायपालिका का शुक्रियादा करने के लिए मेरे पास शब्द नहीं हैं। घर में हर्ष का माहौल है।

पुलिस ने संभाली भीड़

मामले में गुरुवार को ही दोनों पक्षों के अधिवक्ताओं के बीच बहस पूरी हो गई थी। शुक्रवार को फैसला आना था। इसे लेकर भारी संख्या में भीड़ कोर्ट में जुट गई। तीनों आरोपितों के स्वजन व समर्थक भी मौजूद थे। भीड़ को जैसे-तैसे पुलिस ने संभाला। फैसला आने के बाद शाम पांच बजे जब तीनों मुजरिम कोर्ट से बाहर निकले तो इनके स्वजन के आंसू छलक उठे।

chat bot
आपका साथी