Aligarh Municipal Corporation: अलीगढ़ में शाम है धुंआ-धुंआ
मच्छरों का प्रकोप बढ़ते ही नगर निगम ने इन पर काबू पाने के लिए सारे संसाधन निकाल लिए हैं। गली-मौहल्ले चौक-चौराहों पर शाम के वक्त फटफट करती मशीनों से फागिंग करते निगम कर्मचारी दिखाई देते हैं। मच्छर भागें न भागें धुंआ-धुंआ तो हो ही जाता है।
अलीगढ़, जेएनएन। ''शाम है धुंआ-धुंआ'', नब्बे के दशक का ये गाना इन दिनों लोग अक्सर दिन ढलते ही गुनगुनाने लगते हैं। वातावरण ही ऐसा हो जाता है कि ये बोल अनायास ही मुंह से फूट पड़ते हैं। दरअसल, शहर में मच्छरों का प्रकोप बढ़ते ही नगर निगम ने इन पर काबू पाने के लिए सारे संसाधन निकाल लिए हैं। गली-मौहल्ले, चौक-चौराहों पर शाम के वक्त फटफट करती मशीनों से फागिंग करते निगम कर्मचारी दिखाई देते हैं। मच्छर भागें, न भागें, धुंआ-धुंआ तो हो ही जाता है। इसी धुंए के भरोसे लोग रात काटते हैं। लेकिन, सुबह होते ही शरीर पर मच्छरों के निशान धुंए की कलई खोल देते हैं। दरअसल, डीडीटी पर प्रतिबंध लगने के बाद मच्छर मारने के लिए नगर निगम में कीटनाशक मेलाथियान का प्रयोग होने लगा। अब इसका भी असर नहीं हो रहा है। मच्छर मरते ही नहीं। तो क्या मच्छरों ने भी एंटी बाडी तैयार कर ली है?
पड़ौसियों के सहारे बुझ रही प्यास
पड़ौसियों से मधुर संबंध बेहद जरूरी हैं। खासकर तब, जब सरकारी सेवाएं भरोसेमंद न हों। गर्मियों के दिनों में पड़ौसी अक्सर याद आते हैं। जरूरतें ही ऐसी होती हैं कि दिन काटना भारी पड़ जाता है। यहां बात हो रही है पानी की, जिसके बिना सब सून है। शहर के कई इलाकों में पेयजल संकट छाया हुआ है। कहीं हैंडपंप खराब पड़े हैं तो कहीं ट्यूबवेल में तकनीकी दिक्कत के चलते आपूर्ति नहीं हो रही। वाटर लाइन लीकेज से दूषित पानी की शिकायतें भी आ रही हैं। डोरी नगर, इंद्रानगर में विराेध प्रदर्शन हो चुके हैं। यहां लोगों की प्यास सबमर्सिबल के जरिए पड़ौसी बुझा रहे हैं। ऐसा कब तक चलेगा? कुंवर विक्रांत कालोनी में एक हैंडपंप पर पूरी आबादी निर्भर है, जो खराब पड़ा है। यहां साधन संपन्न ऐसा कोई पड़ौसी भी नहीं है, जो मदद कर सके। ऐसे इलाकों में सरकारी सेवाएं पहुंचनी ही चाहिए।
अलीगढ़ नगर निगम की बीमार हैं ट्रालियां
मानसून से पहले सफाई महकमे का नालाें की सफाई पर जोर है। जिले के मुखिया भी दिशा-निर्देश जारी कर चुके हैं। आधे से ज्यादा नाले तो इन निर्देशों के जारी होने से पहले ही साफ हो गए थे। जो बचे हैं, उनकी सफाई चल रही है। नाला सफाई के इस अभियान में कुदाल, फांवड़े, पोकलैंड मशीनें तो नजर आयीं, लेकिन ट्रालियां नहीं दिखाई दीं। इन्हीं ट्रालियाें में नालों से निकली सिल्ट भरकर जाती है। ट्रालियां नहीं हैं तो सिल्ट सड़क पर ही डाली जा रही है। इससे दुकानदार, राहगीरों की दुश्वारियां तो बढ़ेंगी ही। बताया गया कि ट्रालियाें की मरम्मत चल रही है। इसके लिए बकायदा ठेका दिया गया है। जबकि, ये कार्य तो नाला सफाई से पहले किया जाता है। बीते साल नहीं कराया, इससे पहले भी शायद नहीं हुआ था। नाला सफाई के अंतिम दौर में ट्रालियाें की मरम्मत कराने की क्या सूझी? इसको लेकर महकमे में चर्चाएं शुरू हो गई हैं।
संवर रहीं सड़कें
मुसीबत बने सड़कों के गड्ढे अब भरने लगे हैं। नगर निगम की टीमें पिछले कुछ दिनों से उखड़ी सड़कों को तलाश कर उनकी मरम्मत कर रही हैं। ये काम विभागीय स्तर पर पहले भी हो सकता था, लेकिन अफसरों ने रुचि नहीं ली। अब विकास पुरुष ने सख्त रुख अख्तियार किया है तो सभी अपनी जिम्मेदारियां समझने लगे हैं। निर्माण विभाग की टीमें अब तक कई गड्ढे भर चुकी हैं। उम्मीद है कि ये गड्ढे फिर नहीं उखड़ेंगे। हालांकि, कुछ लाेगों को अभी भी संशय है। इनका कहना है कि पिछले साल भी सिफारिशों पर कुछ गड्ढे भरवाए गए थे। लेकिन, दाे महीने भी मसाला नहीं टिका। घटिया सामग्री से गड्ढे भरे गए थे। फिर वही स्थिति हो गई। अबकी बार ऐसा न हो, इसकी उम्मीद लोग कर रहे हैं। सही भी है, जब जनहित में काम हो ही रहा है तो मजबूती से किया जाए।