गोवंश सहभागिता योजना में लक्ष्य पूरा नहीं कर पा रहा अलीगढ़, जानिए वजह Aligarh news

सितंबर महीना होने को है लेकिन अभी तक निराश्रित गोवंश सहभागिता योजना का लक्ष्य पूरा नहीं हो पाया है। शासन से अलीगढ़ को इस महीने तक 3114 गोवंश को लोगों की सुपुदर्गी में देना था लेकिन अब तक महज 2493 ही दे पाया है।

By Anil KushwahaEdited By: Publish:Wed, 22 Sep 2021 11:42 AM (IST) Updated:Wed, 22 Sep 2021 11:47 AM (IST)
गोवंश सहभागिता योजना में लक्ष्य पूरा नहीं कर पा रहा अलीगढ़, जानिए वजह Aligarh news
जिले में अभी तक निराश्रित गोवंश सहभागिता योजना का लक्ष्य पूरा नहीं हो पाया है।

अलीगढ़, जागरण संवाददाता । सितंबर महीना होने को है, लेकिन अभी तक निराश्रित गोवंश सहभागिता योजना का लक्ष्य पूरा नहीं हो पाया है। शासन से अलीगढ़ को इस महीने तक 3114 गोवंश को लोगों की सुपुदर्गी में देना था, लेकिन अब तक महज 2493 ही दे पाया है। वहीं, मंडल का हाल भी ऐसा ही है। पूरे मंडल में अब तक कुल 5127 गोवंश को सहभागिता योजना में सुपुदर्गी में दिया जाना था, लेकिन अब तक महज 4798 गोवंश की सुपुदर्गी ही हो पाई है।

जिले में कुल 28 हजार निराश्रित गोवंश हैं

जिले में कुल 28 हजार निराश्रित गोवंश हैं। सरकार ने निराश्रित गोवंश सहभागिता योजना के तहत जिले को 3314 का लक्ष्य दिया गया था। इसमें अभी तक कुल 2494 गोवंश ही पशुपालकों की सुपुदर्गी में दिए गए हैं। पशुपालक 30 रुपए प्रतिदिन के हिसाब से गोवंश पालने के लिए तैयार नहीं हैं। यहीं कारण है कि शासन से मिले लक्ष्य के सापेक्ष काफी कम लक्ष्य पूरा हो पाया है। पशुपालक सरकारी गोवंश को सुपुदर्गी में लेने को तैयार नहीं हैं। अफसरों का तर्क है कि गांव देहात के लोगों को लक्ष्य के हिसाब से गाेवंश की सुपुदर्गी दी जा रही है। मंडल की भी यही स्थिति है। एटा में 903, हाथरस में 910 व अलीगढ़ में 491 गोवंश पशुपालकों को दिए हैं। मंडल के चारों जिलों में सबसे अधिक फिसड्डी अलीगढ़ ही हैं। यहां पर लक्ष्य के 80 फीसद ही पशुपालक को योजना में गोवंश दिए हैं।

यह है योजना

मुख्यमंत्री निराश्रित गोवंश सहभागिता योजना के तहत निराश्रित गोवंश को इच्छुक लोगों को पालने के लिए दिए जाने की योजना है। इसमें उनकी देखभाल बेहतर ढंग से हो सके। इसके लिए पशुपालक को एक गोवंश पालने के एवज हर माह 900 रुपये दिए जाते हैं। इसमें गोवंश को पालने का भार पशुपालक पर न पड़े, लेकिन पशुपालकों का कहना है कि जो राशि दी जा रही है, वह काफी कम है। पशुपालन प्रताप सिंह का कहना है कि एक पशु को पालने में प्रतिदिन कम से कम सौ रुपये का खर्च आता है। इसके लिए शासन की ओर से कम से कम इतना बजट मिलना चाहिए।

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