अलीगढ़ में छंट रही धुंध हट रहा Encroachment, विस्तार से जानिए मामला
नए सेनापति की आमद से परिवर्तन की बयार बहने लगी है। इससे न सिर्फ अनचाही धुंध छंट रही है बल्कि सर्विस बिल्डिंग में अतिक्रमण से भी फिलहाल मुक्ति मिली है। इस धुंधऔर अतिक्रमण से पिछले कई सेनापति शुरुआती कार्यकाल में परेशान रहे थे।
अलीगढ़, जेएनएन। शहर की सरकार में नए सेनापति की आमद से परिवर्तन की बयार बहने लगी है। इससे न सिर्फ अनचाही धुंध छंट रही है, बल्कि ''सर्विस बिल्डिंग'' में ''अतिक्रमण'' से भी फिलहाल मुक्ति मिली है। इस ''धुंध''और ''अतिक्रमण'' से पिछले कई सेनापति शुरुआती कार्यकाल में परेशान रहे थे। कुछ को आदत पड़ गई, कुछ हार मानकर चले गए। इंजीनियरिंग में महारत हासिल कर चुके नए सेनापति के अंदाज कुछ अलग हैं। हो भी क्यों न? आखिर ''मोदी जी'' के संसदीय क्षेत्र में तकनीकी सुधार कर वे बड़े-बड़ाें की नजरों में चढ़े हुए हैं। आसानी से डिगने वाले नहीं, न? ही व्यवस्था में ढलने वाले लग रहे हैं। कुछ को आशा है कि सेनापति बने ''''इंजीनियर साहब'''' जल्द ही उनकी उम्मीदों पर खरे उतरेंगे। सड़क, सफाई का मुद्दा ही ऐसा है, इसमें सामंजस्य न? बना तो उम्मीदें बिखर जाएंगी। आखिर जो कमिटमेंट दूसरों से किए हैं, वे पूरे भी तो करने हैं। न?
फूंक-फूंककर बढ़ा रहे कदम
हरियाली वाले महकमे में इन दिनों अजीब सी खामोशी छाई हुई है। तबादले की अांधी जबसे यहां होकर गुजरी है, मानो सुकून छिन गया हो। चार अफसर, सात कर्मचारियों की विदाई हो गई। इनकी जगह जो आए हैं, वे व्यवस्था में ढलने की कोशिश कर रहे हैं। पुरानों से संपर्क कर महकमे में ''''अपने-परायों'''' की गोपनीय जानकारी जुटाई जा रही है। जिससे काम करने में कोई अड़चन न आए। ये भी जानते हैं कि इस महकमे में पुरानों के अनुभव बहुत कड़वे रहे हैं। कौन कब कोई समिति बनाकर हस्ताक्षर करा ले जाए, कह नहीं सकते। बाद में सिर्फ जवाब देना ही रह जाता है। दफ्तर आने वाले हर शख्स को शक की निगाहों से देखा जा रहा है। ठीक भी है, नई जगह पर इतनी एहतियात तो बरतनी चाहिए। जब पता हो कि यहां पूर्व में कईयों के भरोसे पर कुठाराघात हो चुका है।
आवास खाली हो तो करें गृहप्रवेश
सरकारी नौकरी में इतना तो सुकून है कि तबादला कहीं भी हो जाए, अफसरों को आवास तलाशना नहीं पड़ता। सरकारी आवास मिल ही जाता है। लेकिन, दिक्कत तब होती है जब अलाट हुए आवास पर ''''पजेशन'''' न मिल पाए। हरियाली वाले महकमे में एक साहब इसी दुविधा में पिछले 15 दिनों से जर्जर कमरे में रुके हुए हैं। जो आवास उन्हें दिया गया, वहां पुराने साहब का कब्जा अभी बरकरार है। जबकि, वे रिलीव हो चुके हैं। आवास खाली हो तो नए साहब गृहप्रवेश करें। कुछ लोगों ने सलाह दी है कि हाथ पर हाथ रखकर बैठने से अच्छा है कि लिखापढ़ी कर दें। बिना इसके कुछ होने वाला नहीं। पुराने साहब ने भी ऐसे ही आवास खाली कराया था। बड़े साहब को चिट्ठी लिखकर सात दिन में आवास पर ''''पजेशन'''' ले लिया। अब तबादला होने के बाद आवास खाली करने की नीयत नहीं कर रही।
कार से तलाश रहे साइकिल
भैयाजी ने जबसे साइकिल यात्रा का आह्वान किया है, पार्टीजनों ने साइकिल की तलाश शुरू कर दी है। बड़े-बड़े धुरंधर कार से साइकिल तलाश रहे हैं। कुछ ने तो खरीद ही ली। साइकिल चलाने की प्रैक्टिस भी की जा रही है। आखिर, साइकिल से पांच किलोमीटर का सफर जो तय करना है। इसमें पिछड़ गए तो आगे नहीं बढ़ पाएंगे। विधानसभाओं पर ताल ठोक रहे युवा नेताओं ने देररात तक यात्रा में आगे रहने की प्लानिंग की है। इस साइकिल यात्रा से सभी को उम्मीद है कि परिवर्तन होगा। पिछली साइकिल यात्रा की याद ताजा कर पार्टीजन पूरे जोश के साथ इसकी तैयारियों में जुटे हुए हैं। गुरुवार को निकलने वाली इस यात्रा का रोडमैप भी तैयार कर लिया है, जिससे कोई भटके नहीं। लेकिन, आगे-पीछे किसको रहना है, ये निर्धारित नहीं हुआ। न हो पाएगा। क्योंकि, आगे निकलने की जल्दी सभी को रहेगी। आखिर, चेहरे आगे वालों के ही चमकेंगे।