Aligarh Coronaivrus Alert : ये दाग तो अच्छा नहीं है साहब
अजगर करे ना चाकरी पंछी करे ना काम दास मलूका कह गए सब के दाता राम ! इस कहावत का आशय ये है? कि अजगर और पंछी दोनों ही काम नहीं करते फिर भी अपना जीवन जीते हैं। कुछ ऐसी ही स्थिति इन दिनों सेहत वाले महकमें की भी है।
अलीगढ़, जेएनएन। लागा चुनरी में दाग, छुपाऊं कैसे..., कुछ ऐसी ही परिस्थितियों से स्वास्थ्य विभाग भी गुजर रहा है। उसके दामन पर भी पिछले दिनों टीकाकरण में धांधली का बदनुमना दाग लगा, जिसे मिटाने के लिए पूरी कोशिशें हुईं। पहले एक एएनएम की करतूत ने सैकड़ों लोगों का जीवन संकट में डाल दिया। एएनएम ने फर्जी टीकाकरण किया, यह बात साबित भी हो गई, लेकिन उसने अब तक कितने टीके लगाने का दावा किया, कितनों को नहीं लग पाए? विभाग ने यह जानने का प्रयास नहीं किया। दूसरी घटना ने तो हिलाकर रख दिया। अलीगढ़ की वैक्सीन नोएडा पहुंचने का दाग तो और भी गहरा था। आनन-फानन जांच हुई, कार्रवाई भी। अफसोस, वैक्सीन नोएडा पहुंचाने वाले लोगों के चेहरे सामने नहीं आए। लोगों का कहना है? कि प्रकरण की रिपोर्ट में भी गोलमोल बातें हुई है। वैक्सीन अपने चहेतों को नोएडा पहुंचाने का दोषी कौन है? अभी पता नहीं चला है?
इन कर्मियों के लिए कोरोना काल ही अच्छा
अजगर करे ना चाकरी, पंछी करे ना काम, दास मलूका कह गए, सब के दाता राम ! इस कहावत का आशय ये है? कि अजगर और पंछी दोनों ही काम नहीं करते, फिर भी अपना जीवन जीते हैं। कुछ ऐसी ही स्थिति इन दिनों सेहत वाले महकमें की भी है। कोरोना के खिलाफ जंग में जहां तमाम डाक्टर व स्टाफ ने जान की परवाह न करते हुए भी ड्यूटी की। यहां तक कि उन्हें कई-कई माह तक अवकाश तक नहीं दिया गया। वहीं, दूसरी तरफ ऐ्से भी डाक्टर व अन्य कर्मचारी रहे हैं, जिन्होंने 14 माह के कोरोना काल में 14 दिन भी कोविड ड्यूटी नहीं की। कई की कोविड ड्यूटी तो लगी, लेकिन अस्पतालों व रिस्क वाले कार्यों से दूर। काफी कर्मियों के लिए तो सामान्य काल से अच्छा कोरोना काल रहा। बिना काम के ही तनख्वाह खाते में पहुंचती रही। संक्रमण कम होने के बावजूद मौज में हैं।
मुख्यमंत्री की इच्छा का सम्मान तो करो डाक्टर साहब
सूबे के मुखिया योगी आदित्यनाथ ने कोरोना संक्रमण कम होते ही स्वास्थ्य सुविधाअों को सुदृढ़ बनाने के लिए सब सेंटरों तक को सुचारू करने के निर्देश जारी किए। मानव संसाधन की कमी के चलते सीएमअो, एसीएमअो, डिप्टी सीएमओ व अन्य परियोजना में जुटे चिकित्सकों को सप्ताह में कम से कम तीन दिन ओपीडी में बैठकर मरीज देखने को कहा गया। ऐसा पहली बार नहीं, जब इस तरह के आदेश जारी हुए हैं। मगर, सीएमअो को छोड़ दें, ज्यादातर अधिकारियों ने मुख्यमंत्री की बात को तवज्जो नहीं दी है। यदि ये अधिकारी अपने गांव-देहात में नहीं जा सकते तो शहरी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों पर तो बैठ सकते हैं। जबकि, जिन कार्यक्रमों के ये नोडल अधिकारी हैं, उनका पर्यवेक्षण करने तो देहात में जाते ही है, तभी अपनी चिकित्सीय डिग्री व अनुभव का लाभ मरीजों को दे सकते हैं। इनमें से कई अधिकारी तो सरकारी खर्चे पर पीजी करके आए हैं।
खिलौनों की जगह वायरस की सौगात
अब कोरोना संक्रमित मरीज नहीं निकल रहे, कहीं से लोगों के मरने की सूचना नहीं आ रही, आक्सीजन-वेंटीलेटर के लिए हाहाकार की खबरें भी नहीं, सरकार ने भी खतरे को समाप्त मानकर कर्प्यू यानि लाकडाउन को हटा दिया, तो हमें चिंता करने की क्या जरूरत? इस तरह की बातें कोरोना संक्रमण कम होते ही चेहरे से मास्क हटाकर बड़ी बेपरवाही से भीड़ में शामिल लोगों के मुंह से फिर सुनने को मिलने लगी है। एक तरफ जहां तमाम लोग अभी भी मास्क के साथ अन्य एहतियात भी खूब बरत रहे हैं। वहीं, कुछ लोगों ने फिर से लापरवाही शुरू कर दी है। विशेषज्ञों के अनुसार तीसरी लहर ऐसे ही लोगों की वजह से आएगी, जिसमें बच्चों को ज्यादा खतरा बताया जा रहा है। ये लोग ही अपने घर और परिवार के बच्चों को खिलौनों की जगह वायरस की सौगात देंगे। ये नहीं समझ रहे कि कोरोना खत्म नहीं हुआ है।