कुरीतियों के खिलाफ जगाई अलख, सैकड़ों लोगों को दिखाइ जीने की राह Aligarh news

विश्व में भारत की पहचान यूं ही नहीं है। यहां की संस्कृति परंपराएं और मान्यताएं भी देश काे श्रेष्ठ बनाती हैं। लेकिन आधुनिकता की चकाचौंध में अब ये धुंधला रही हैं। जाने-अनजाने इनके मूल्यों का हनन हो रहा है।

By Anil KushwahaEdited By: Publish:Sun, 18 Apr 2021 08:47 AM (IST) Updated:Sun, 18 Apr 2021 08:47 AM (IST)
कुरीतियों के खिलाफ जगाई अलख, सैकड़ों लोगों को दिखाइ जीने की राह Aligarh news
प्रजापिता ब्रह्मकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय से जुड़ी हैं एटा की कमलेश।

लोकेश शर्मा, अलीगढ़ : विश्व में भारत की पहचान यूं ही नहीं है। यहां की संस्कृति, परंपराएं और मान्यताएं भी देश काे श्रेष्ठ बनाती हैं। लेकिन, आधुनिकता की चकाचौंध में अब ये धुंधला रही हैं। जाने-अनजाने इनके मूल्यों का हनन हो रहा है। आधुनिकता की धूल हटाकर इन्हें पुन: स्थापित करने का प्रयास ब्रह्मकुमारी कमलेश कर रही हैं। समाज में व्याप्त कुरीतियों के खिलाफ न सिर्फ उन्होंने अलख जगाई, बल्कि गांव-गांव जाकर लोगों को मानव जीवन का उद्देश्य भी बताया। दो सौ से अधिक लोगों को वह गुटखा और शराब छुड़वा चुकी हैं। इनकी प्रेरणा से कई लोग सामाजिक सरोकार के कार्यों सेे जुड़ चुके हैं।

सामाजिक सरोकार के कार्यों की शुरुआत

एटा की मूल निवासी ब्रह्मकुमारी कमलेश 20 साल पहले प्रजापिता ब्रह्मकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय जुड़ी थीं। देवी नगला स्थित विश्वविद्यालय की शाखा से उन्होंने सामाजिक सरोकार के कार्यों की शुरुआत की। वे कहती हैं, हमारा मुख्य उद्देश्य समाज में फैली कुरीतियों को दूर करना है। समाज में हालात बदल रहे हैं, संस्कृति और परंपराओं का पतन हो रहा है। आधुुुुुुुनिक परिवेश में लोग मानवीय मूल्यों को भूल रहे हैं। हमारा प्रयास है कि मानवीय मूल्यों को समाज में पुन: स्थापित किया जाए। गांव-गांव जाकर वह समाज के हर वर्ग के व्यक्तियों से मिलती हैं और उनके अवगुणों को दूर कर सद्गुण अपनाने के लिए उन्हें प्रेरित करती हैं।  काम, क्रोध, लोभ, मोह जैसे विकार दूर होने पर मानव सद्गुणों की ओर बढ़ता है। नम्रता, सहनशीलता, उदारता और परोपकार जैसे सद्गुण उनकी अलग पहचान बनाते हैं। इसके लिए आत्म चिंतन भी जरूरी है। इन्हीं प्रेरणाओं से पांच सौ लोग सामाजिक सरोकार के कार्यों से जुड़ चुके हैं। 

प्रसाद के रूप में ले रही भोजन

ब्रह्मकुमारी कमलेश बताती हैं गांव में लोगों के जीवन को बारीकी से समझा। कई परिवारों में महिलाएं नहाने से पहले ही भोजन बनाकर स्वजन को खिला देती थीं, खुद भी खा लेतीं। इन महिलाओं को जागरुक किया। अब वे महिलाएं नहाने के बाद भोजन बनाती हैं और भगवान का भोग लगाती हैं। घराें में साफ-सफाई का भी ध्यान रखा जाता है। ग्रामीण महिलाओं से नियमित संपर्क किया जाता है। इस मुहिम में विश्वविद्यालय की अन्य बहनें भी जुड़ी हुई हैं।

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