Birthday special : सांडर्स की हत्या के बाद सरदार भगत सिंह ने शादीपुर को बनाया था बसेरा Aligarh news
ऐसा कोई न होगा जिसने शहीद-ए-आजम सरदार भगत सिंह की गौरवगाथा न सुनी हो। भारत माता को गुलामी की बेढ़ियों से मुक्त कराने के लिए मात्र 23 वर्ष की आयु में हंसते हुए फांसी के फंदे को चूमने वाले सरदार भगत सिंह का अलीगढ़ से गहरा नाता रहा है।
रवि शर्मा, पिसावा (अलीगढ़)। ऐसा कोई न होगा, जिसने शहीद-ए-आजम सरदार भगत सिंह की गौरवगाथा न सुनी हो। भारत माता को गुलामी की बेढ़ियों से मुक्त कराने के लिए मात्र 23 वर्ष की आयु में हंसते हुए फांसी के फंदे को चूमने वाले सरदार भगत सिंह का अलीगढ़ से गहरा नाता रहा है। ये हमारे लिए गौरव की बात है कि अंग्रेज जनरल सांडर्स की हत्या के बाद सरदार भगत सिंह ने क्षेत्र के गांव शादीपुर को अपना गुप्त बसेरा बनाया था। यहां 18 माह गुजारे। आज भी इस गांव में महान क्रांतिकारी सरदार भगत सिंह का जन्मदिन व पुण्य तिथि हर वर्ष मनाई जाती है। लोगों में उनके प्रति काफी प्रेम दिखाई देता है। उनकी जयंती व पर गांव में प्रतिवर्ष एक कबड्डी टूर्नामेंट व क्षेत्र में अनेक आयोजन होते हैं। भारत माता के ऐसे सपूत की आज जयंती है। आइए, उनके अलीगढ़ प्रवास के बारे में जानें...
भगत सिंह ने अपना नाम बदला
गांव के स्वतंत्रता सेनानी ठाकुर टोडर सिंह कानपुर में गणेश शंकर विद्यार्थी से मिलने गए, तो अपने साथ सरदार भगत सिंह को भी साथ ले आए। कुछ दिन अलीगढ़ में गुजारने के बाद जब अंग्रेजों की हलचल बढ़ी तो टोडर सिंह खेरेश्वर व सोफा के रास्ते भगत सिंह को शादीपुर लेकर आ गए। उनका नाम बदलकर बलवंत सिंह रख दिया गया। 1928 में शादीपुर गांव से कुछ दूरी पर एक बगिया में नेशनल विद्यालय शुरू किया। इसमें खैर से लेकर पिसावा क्षेत्र के विद्यार्थी भी पढ़ने पहुंचते थे। यहां पर देशभक्ति की शिक्षा के अलावा कुश्ती दंगल आदि भी सिखाए जातेे थे। भगत सिंह व अन्य क्रांतिकारी सुबह-शाम गांव में पहुंचकर लोगों में देशभक्ति की भावना पैदा कर उन्हें जागरूक करते। साइक्लो स्टाइल मशीन से पर्चे भी छापे जाते थे, जिन्हें बलवंत सिंह के शिष्य इधर-उधर पहुंचाने का कार्य भी करते थे। विद्यार्थियों को अपने अध्यापक बलवंत सिंह से बहुत लगाव व प्यार था। डेढ़ वर्ष बाद जब बलवंत सिंह गांव से मां के बीमार होने की कह कर गए तो ग्रामीणों को काफी दुख हुआ। ग्रामीण उन्हें छोड़ने के लिए नहर तक आए थे। टोडर सिंह ने तांगे से उन्हें खुर्जा जंक्शन भिजवाया गया था। तब ग्रामीणों को जानकारी हुई थी कि बलवंत सिंह ही भगत सिंह थे। उनकी मां बीमार नहीं भारत मां बीमार थी।
भगत सिंह की फांसी पर पूरा गांव रोया
कुछ दिन बाद जब भगत सिंह को फांसी हुई तो पूरा गांव रोया था। घरों में चूल्हे भी नहीं जले थे। उस दिन से आज तक शादीपुर के ग्रामीण भगत सिंह को नहीं भूल पाए, उनकी याद में एक पार्क बनाकर उनके जन्म व शहीद दिवस पर विभिन्न कार्यक्रम आयोजित कर उन्हें याद करते रहते हैं। जिस स्थान पर भगत सिंह ने नेशनल विद्यालय चलाया था, वहां मौजूद कुआं व अन्य स्थान खंडहर में तब्दील हो चुका है। ग्रामीण चाहते हैं कि सरकार यहां पर एक विद्यालय खोल दे, जिसका नाम भगत सिंह के नाम पर ही हो।