84 साल में 80 डीएम बदले, पहली बार महिला डीएम को जिले की कमान Aligarh news
जिले के इतिहास में एक और नया अध्याय जुड़ गया है। 84 साल के कार्यकाल में जिले में कुल 80 डीएम बदल चुके हैं। इनमें महिला अधिकारी के रूप में पहली बार मुज्जफरनगर की डीएम सेल्वा कुमारी जे को यहां भेजा गया है।
अलीगढ़, जेएनएन। जिले के इतिहास में एक और नया अध्याय जुड़ गया है। 84 साल के कार्यकाल में जिले में कुल 80 डीएम बदल चुके हैं। इनमें महिला अधिकारी के रूप में पहली बार मुज्जफरनगर की डीएम सेल्वा कुमारी जे को यहां भेजा गया है। बुधवार को इनके यहां पहुंचकर कार्यभार ग्रहण करने की संभावना लगाई जा रही हैं। वहीं, तबादले के बाद सोमवार को पूरे दिन इंटरनेट मीडिया पर डीएम चंद्रभूषण सिंह छाए रहे। कुछ लोगों ने जहां डीएम के कार्यकाल को एतिहासिक बताया। वहीं, कुछ लोगों ने सवाल भी उठाए। हालांकि, अधिकतर लोगों ने डीएम के कार्यकाल में डिफेंस कारिडोर, राज्य विश्वविद्यालय व सरकारी जमीनों को कब्जा मुक्त करना बड़ी उपलब्धि बताया।
1937 में पहले डीएम के रूप में एटी नकवी की तैनाती
1937 में अलीगढ़ जिले में पहले डीएम के रूप में एटी नकवी की तैनाती हुई है। तीन मार्च को इन्होंने कार्यभार ग्रहण किया था। करीब सात महीने पहले डीएम का कार्यकाल रहा। इसके बाद तमाम डीएम बदले। 1947 तक कुल 18 डीएम बदल चुके थे। इसके बाद भी डीएम का आना-जाना लगा रहा। अब जिले में कुल 84 साल के इतिहास में 80 डीएम बदले चुके हैं। इनमें कोई सालों रहा तो कोई महीनों में ही वापस चला। हालांकि, अब तक जिले के इतिहास में एक बात रही कि यहां कोई भी महिला डीएम नहीं बनीं। लोग इसके पीछे का कारण शहर की संवेदनशीलता को मानते हैं। यहां दो विशेष समुदायों की मिलीजुली आबादी है। ऐसे में कई बार छोटे-छोटे झगड़े भी बड़ा रूप ले लेते हैं। हालांकि, अच्छी बात यह है कि पिछले काफी समय से जिले में सब कुछ ठीक है। इसी को देखते हुए अब सरकार ने भी यहां पर पहली बार महिला डीएम की तैनाती कर दी है। मुज्जफरनगर की डीएम को यहां भेजा गया है। जल्द ही यह यहां पहुंचकर अपना कार्यभार शुरू कर देंगी।
तबादले के बाद भी याद किए जाएंगे सीबी सिंह
तीन साल चार महीने के लंबे कार्यकाल के बाद डीएम चंद्रभूषण सिंह का जिले से भले तबादला हो गया है, लेकिन यह अपनी कार्यशैली के लिए लंबे समय तक याद किए जाएंगे। जिले में पिछले दिनों में कई ऐसे काम हुए हैं, जो किसी अधिकारी के लिए हमेशा चुनौती पूर्ण होते हैं। निजी बस अड्डों को शहर से बाहर करने की बात हो या फिर सरकारी जमीनों को कब्जा कराने की। सभी में इनके निर्णय काफी चर्चाओं में रहे हैं। हालांकि, कई बार अपने फैसलों के चलते इन्हें राजनेताओं का विरोध भी झेलना पड़ा है। हर दिन करीब दो से तीन घंटे तक इनकी कलक्ट्रेट की जनसुनवाई भी काफी चर्चाओं में थी।