World Environment Day: यमुना सींच रही आगरा में इस 45 साल पुराने बरगद को, सांसों की कीमत पहचान लोगों ने लिया पौधे लगाने का संकल्प

आगरा के दयालबाग क्षेत्र में यमुना किनारे खड़ा है लगभग 45 साल पुराना बरगद का पेड़। बरगद का पेड़ अपने स्वरूप के हिसाब से रोजाना छह टन आक्सीजन का उत्सर्जन करता है। 10 जून को वट सावित्री का व्रत बरगद की होती है पूजा।

By Prateek GuptaEdited By: Publish:Sat, 05 Jun 2021 09:39 AM (IST) Updated:Sat, 05 Jun 2021 09:39 AM (IST)
World Environment Day: यमुना सींच रही आगरा में इस 45 साल पुराने बरगद को, सांसों की कीमत पहचान लोगों ने लिया पौधे लगाने का संकल्प
अमर विहार में लगा 45 साल पुराना बरगद का पेड।

आगरा, प्रभजोत कौर। हिंदू धर्म में त्रिदेव की तरह नीम, पीपल और बरगद को महत्व दिया गया है। इनमें से बरगद की धार्मिक मान्यता भी है और यह पेड़ पर्यावरण मित्र भी है। ताजनगरी में भी कई पुराने पेड़ हैं, उनमें से एक बरगद का पेड़ लगभग 45 साल पुराना है। दयालबाग क्षेत्र की अमर विहार चौकी के आगे स्थित तनिष्क राजश्री एस्टेट के पास खड़ा यह पुराना पेड़, आज भी अपनी ठंडी छांव से लोगों को राहत दे रहा है। 10 जून को वट सावित्री का व्रत है। इस दिन महिलाएं अपने स्वजनों की दीर्घायु के लिए व्रत रखती हैं और बरगद का पूजन करती हैं। कोरोना महामारी के दौर में जब एक-एक सांस की कीमत लोगों को चुकानी पड़ी है, एेसे में शहर की महिलाओं ने वत सावित्री व्रत के साथ बरगद व अन्य पौधे लगाने का भी संकल्प लिया है।

यमुना का पानी सींचता है पेड़ को

लगभग 45 साल पुराने इस पेड़ को शंकर लाल बघेल ने लगाया था। उनके पोते विजय बघेल बताते हैं कि दादा यमुना किनारे खेती करते थे, तभी यह पेड़ लगाया था। यमुना से इस पेड़ की दूरी महज कुछ कदमों की है। पेड़ की जड़ें यमुना तक जा पहुंची हैं। यमुना के पानी से ही यह पेड़ हरा-भरा रहता है। शंकर लाल की मृत्यु के बाद स्वजनों ने इसी पेड़ के नीचे उनकी समाधि बना दी है। आस-पास की कालोनियों की महिलाएं वट सावित्री के पूजन के लिए इस पेड़ पर हर साल आती हैं।

बरगद का धार्मिक महत्व

गीता में भी बरगद को आध्यात्मिक रूपक की तरह प्रयोग करने का वर्णन है। बौद्ध धर्म में भी इसे पूज्य माना गया है। अग्निपुराण में यह उत्सर्जन को दर्शाता है, इसीलिए लोग संतान प्राप्ति के लिए इसकी पूजा करते हैं। वेद, रामायण, महाभारत, मनुस्मृति, रघुवंश पुराण और रामचरित मानस में वट वृक्ष यानी बरगद का उल्लेख मिलता है। वाल्मीकि रामायण में भी उल्लेख है कि भगवान राम, लक्ष्मण और सीता जब वन जा रहे थे, तब यमुना किनारे बरगद का विशाल पेड़ दिखा, जिसे श्यामन्यगरोध का नाम दिया गया। भगवान श्रीराम ने बरगद के पेड़ को प्रणाम कर आगे की यात्रा पर कदम बढ़ाए थे।

पर्यावरण मित्र है बरगद

बरगद का पेड़ अपने स्वरूप के हिसाब से रोजाना छह टन आक्सीजन का उत्सर्जन करता है। इस मात्रा का .02 फीसद हिस्सा मनुष्य व जीवों को जीवन देता है। ज्यादातर पेड़ दिन में आक्सीजन और रात में कार्बन डाई ऑक्साइड का उत्सर्जन करते हैं। पर,एेसी मान्यता है कि बरगद और पीपल दिन-रात आक्सीजन का ही उत्सर्जन करते हैं। इस पेड़ के आसपास का वातावरण अपने-आप ही शुद्ध रहता है।

पेड़ का फैलाव होता है अधिक

आरबीएस कालेज बाटनी विभाग की डा. सीमा भदौरिया बताती हैं कि बरगद के पेड़ का फैलाव बहुत होता है, इसलिए इसे लगाने से पहले एक सप्ताह पहले गड्ढा कम से कम दो फीट गहरा खोदना चाहिए। इसमें मिट्टी व गोबर की खाद का मिश्रण भर कर नियमित पानी देना चाहिए। मिट्टी और खाद जमीन के बराबर आए तो तभी पौधा लगाएं। इसकी शाखाएं काफी दूर तक फैलती हैं, इसलिए एेसी जगह पर लगाएं जहां आवागमन कम हो।

मैंने अपनी कालोनी के आसपास कई पौधे लगाए हैं, पिछले दिनों एक नीम का पौधा लगाया था। अब जगह ढूंढ रही हूं जहां इस साल वट सावित्री के पूजन के साथ ही बरगद का पौधा लगा सकूं। विनीता मित्तल, दयालबाग

बरगद का जितना धार्मिक महत्व है, उतना ही यह पर्यावरण के लिए भी लाभदायक है। हम फलदार वृक्षों की पौध तो लगाएंगे ही साथ ही बरगद लगा कर उसका पूरा ध्यान भी रखूंगी। प्रतिमा भार्गव, जयपुर हाउस

मैं अपनी कालोनी के पास बरगद और नीम के पौधे इस साल वट सावित्री के पूजन के बाद लगाऊंगी। स्वजनों के स्वास्थ्य के लिए हमें ही पर्यावरण को स्वच्छ करना होगा। उर्मिला अग्रवाल, श्रीनगर कालोनी, यमुना पार

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