World River Day 2020: नदियां हैं पृथ्वी की धमनियां, इनमें जल बहना है जरूरी
World River Day 2020 27 सितंबर को है विश्व नदी दिवस। नदियों की रक्षा को लेकर 2005 में इसे मनाने की शुरुआत की गई थी। ब्रिटेन कनाडा अमेरिका भारत पोलैंड दक्षिण अफ्रिका ऑस्ट्रेलिया मलेशिया और बांग्लादेश में नदियों की रक्षा को लेकर कई कार्यक्रम का आयोजन होता है।
आगरा,तनु गुप्ता। हर साल सितंबर के आखिरी रविवार को विश्व नदी मनाने की रवायत है। भारत समेत विश्व के अनेक देशाें में पूरी श्रद्धा के साथ विश्व नदी दिवस मनाया जाता है और एक कसम ली जाती है कि नदियों को गंदा नहीं करेंगे और ना करने देंगे। लेकिन सवाल कि क्या वाकई ये कसम पूरी हो पाती है? नदियों की रक्षा को लेकर 2005 में इसे मनाने की शुरुआत की गई थी। ब्रिटेन, कनाडा, अमेरिका, भारत, पोलैंड, दक्षिण अफ्रिका, ऑस्ट्रेलिया, मलेशिया और बांग्लादेश में नदियों की रक्षा को लेकर कई कार्यक्रम का आयोजन होता है। वर्तमान में नदियों की दुर्दशा पर आगरा की नदियों का अध्ययन कर रहे बायोडायवर्सिटी रिसर्च एंड डवलपमेंट सोसायटी के अध्यक्ष डॉ केपी सिंह से जागरण डॉट कॉम ने बात की।
नदियां हैं पृथ्वी की धमनियां, इनमें जल बहना है जरूरी
भारतीय संस्कृति में नदियों को मां का दर्जा दिया गया है क्योंकि नदियां सदियों से मानव सभ्यता का पालन पोषण करती रही हैं। दुनिया की सभी प्राचीनतम सभ्यताएं नदियों के पास विकसित हुई और नदियों के साथ ही लुप्त हो गई। सिन्धु नदी के किनारे बसी हड़प्पा और मोहनजोदड़ो की सभ्यता, गंगा नदी क्षेत्र में विकसित मौर्य व गुप्त साम्राज्य की सभ्यता, दजला फरात नदियों के बीच बसी मेसोपोटामिया की सभ्यता, नील नदी पर बसी मिस्त्र की सभ्यता एवं चीन की ह्वांगहो नदी की सभ्यता आदि इसके उदाहरण हैं। डॉ केपी सिंह कहते हैं कि नदियां पृथ्वी की जल धमनियां हैं जिसमें करोणों जीव जन्तुओं के जीवन का संचार होता है लेकिन जल प्रदूषण, नदियों में खनन, भूगर्भीय जल का दोहन, बारिश के पानी के संरक्षण का अभाव और नदियों, नहरों व तालाबों पर अतिक्रमण की बहुत बड़ी कीमत हमें चुकानी होगी।
जल संकट
नीति आयोग द्वारा जारी रिपोर्ट के अनुसार भारत के कई शहरों में जल संकट गहराता जा रहा है। आने वाले समय में उसके और विकराल रूप लेने के आसार हैं। रिपोर्ट के अनुसार जहां 2030 तक देश की लगभग 40 फीसदी आबादी के लिए जल उपलब्ध नहीं होगा। वहीं 2020 तक देश में 10 करोड़ से भी अधिक लोग गंभीर जल संकट का सामना करने के लिए मजबूर हो जायेंगे।
आगरा जिले में बिखरे पडें हैं नदियों के अवशेष
डॉ के पी सिंह बताते हैं कि आगरा की लुप्त हो रही नदियों में 1990 तक भरपूर पानी रहता था। तीन दशक पहले जिन नदियों में बाढ आती थी उनका धीरे-धीरे पानी की कमी से सूखना शुरू हो गया है। इसके लिए निश्चित तौर पर सरकारी नीतियां दोषी हैं। वर्तमान में कई नदियों का अस्तित्व पूर्णतः खतरे में है। आगरा मे यह नदियां बहती रही हैं वर्तमान में इनकी स्थिति दयनीय है ।
यमुना नदी
आगरा जिले में यमुना नदी नगला अकोस से प्रवेश करती है। पास में ही यमुना के पानी से निर्मित कीठम झील है। यह झील वन्य जीवों की बहुत बडी शरणस्थली है। आगरा शहर से आगे यमुना के एक ओर फिरोजाबाद जिला और दूसरी ओर फतेहबाद तहसील स्थित है। बटेश्वर होते हुए आगरा जनपद से इटावा की ओर निकल जाती है। आगरा शहर के 92 नालों में से 61 का पानी सीधे यमुना नदी में गिरता है। इन नालों से 216 एमएलडी यानि 60 प्रतिशत सीवेज बिना ट्रीटमेंट यमुना में मिलकर जल को प्रदूषित करता है। यमुना वर्ष भर सूखी रहती है।
चंबल नदी
चंबल नदी का उद्गम मध्य प्रदेश की विंध्यांचल पर्वत श्रंखला में जानापाव पहाड़ी से होता है। इसकी कुल लंबाई 1024 किलोमीटर है। मध्य प्रदेश एवं उत्तर प्रदेश राज्य की सीमा रेखा पर इसकी लंबाई 150 किलोमीटर है तथा मात्र 33 किलोमीटर लंबाई में वह पूर्णतः उत्तर प्रदेश राज्य में बहती है। यह नदी अपनी 1024 किलोमीटर की दूरी तय करने के बाद आगरा के बाह पिनाहट होते हुए जनपद इटावा के पचनदा में यमुना में विलीन हो जाती है। चंबल डाल परियोजना द्वारा बाह के बहुत बडे क्षेत्रफल की कृषि भूमि की सिंचाई होती है।
किवाड़ नदी
आगरा जनपद के तांतपुर- जगनेर में किवाड़ नदी सोनी खेरा से निकल लगभग 14 किलोमीटर राजस्थान धौलपुर की डांग में बहने के बाद वापस आगरा में जगनेर के पास देवरी में पुनः उत्तर प्रदेश की सीमा में प्रवेश करती हुई उटंगन नदी में मिलती है। वर्तमान में केवल बारिश के दिनों में छोटे से नाले के स्वरूप में दिखती है।
करबन नदी
यह बुलन्दशहर जिले की खुर्जा तहसील से अलीगढ़, हाथरस होते हुए आगरा की एत्मादपुर तहसील में आगरा फीरोजाबाद रोड को पार कर झरना नाला के नाम से यमुना नदी में गिरती है। केवल बरसात के दिनों में इसमें पानी दिखता है और गर्मी के मौसम में यह सूखी रहती है। अलीगढ़ व हाथरस के कारखानों का दूषित जल इसमें गिरता है।
खारी नदी
फतेहपुर सीकरी के तेरह मोरी बांध से लगभग 90 किलोमीटर की दूरी तय करके मलपुरा, सैयां, इरादतनगर होते हुए बाह फतेहाबाद रोड पर अरनौटा के पास उटंगन नदी में मिलती है। बारिश के मौसम में बंधे वाली जगहों पर कुछ दिनों तक तो पानी दिखता है। अन्य दिनों यह सूखी रहती है।
उटंगन नदी
यह राजस्थान में गंभीर नदी के नाम जानी जाती है। उत्तर प्रदेश के आगरा में इसे उटंगन नदी के नाम से भी जाना जाता है। यह राजस्थान में करौली के पास हिंडौन की अरावली की पहाड़ियों से बहती हुई यूपी और राजस्थान के बीच सीमा बनाती है। यूपी में आगरा जिले में खेरागढ़ व फतेहाबाद होते हुए यमुना नदी में मिलती है। यह केवला देव घना बर्ड सेंचुरी व भरतपुर के लिए पानी की आपूर्ति करती है। यह केवल बरसात के मौसम में ही बहती है।
वर्तमान में सूखी रहती है। कस्बों का गंदा पानी इसे गंदे नाले में बदल देता है।
बाणगंगा नदी
हालांकि इस नदी का आगरा के सरकारी दस्तावेजों में उल्लेख नहीं है लेकिन आगरा से धौलपुर रेलमार्ग पर यूपी व राजस्थान के बार्डर पर लगा बाणगंगा ब्रिज नाम का बोर्ड और स्थानीय लोगों द्वारा इसे बाणगंगा नदी बताया जाता है। सरकारी दस्तावेजों में इसे उटंगन नदी माना जा रहा है।
इस नदी का उद्गम जयपुर की बैराठ पहाडियों से होता है। यह जयपुर, दौसा , भरतपुर जिले के रूपवास से होकर आगरा जिले में सैंया के खेडिया से होकर फतेहाबाद में यमुना नदी में इसका मिलन होता है।
आगरा की नदियों के सूखने से गिर रहा है भू-जल स्तर
डाॅ केपी सिंह बताते हैं कि तीन दशक पहले तक जिन नदियों में बाढ आती थी आज वह सूखी पडी हैं। परिणाम स्वरूप जैतपुर व पिनाहट ब्लाक को छोड़ जिले के 13 ब्लाक डार्क अथवा क्रिटिकल जोन में है। भूगर्भीय जल स्तर तीसरे स्ट्रेटा ( 90-150 मीटर ) पर पहुंच गया है। जगह जगह बंध बन जाने से सिंचाई में तो मदद मिलती है लेकिन भूगर्भीय जल स्तर के सुधार में ज्यादा लाभ नहीं हुआ। आगरा जिले की नदियों की जमीन पर दस प्रतिशत तक अतिक्रमण हो चुका है जो इनके अस्तित्व को खत्म कर रहा है। नदियों का अपना ईको सिस्टम होता है। नदियों के सूखने से वह बुरी तरह प्रभावित हुआ है। जैव विविधता नष्ट हो रही है परिणाम स्वरुप पर्यावरण व वन्य जीवों के संरक्षण का खतरा उत्पन्न हो गया है। आगरा की इन नदियों में 50 से अधिक मछलियों की प्रजातियां हुआ करती थी। नदियों में मछली आखेट नहीं होने से राजस्व हानि हो रही है। क्योंकि नदियों से मछली पकड़ने का काम अब समाप्ति की ओर है। भूगर्भीय जल स्तर तेजी से नीचे की ओर जा रहा है परिणाम स्वरुप कृषि भूमि की उर्वरकता पर बुरा प्रभाव पड़ रहा है।
इन प्रयासों की है जरूरत
पर्यावरणविद डाॅ केपी सिंह के अनुसार भारत सरकार को राष्ट्रीय नदी आयोग की स्थापना कर भारत की नदियों के राष्ट्रीय स्तर पर संरक्षण की नीति तैयार करनी चाहिए। आगरा की नदियों पर शोध कार्य को बढावा मिलना चाहिए। आगरा जिले के 3687 तालाबों में से केवल 166 तालाबों तक ही नहरों का पानी पहुंच रहा है। जिले के सभी तालाबों तक नदियों का पानी नहरों के माध्यम से पहुंचना चाहिए। सिंचाई एवं जल संबंधी विभागों द्वारा और गांव स्तर पर मनरेगा योजना के अंतर्गत इन नदियों का पुनरुद्धार प्रारम्भ किया जा सकता है। नदियों के किनारे हरित पट्टी का निर्माण कर घास , मूंज व पौधारोपण कर मिट्टी कटान को रोक सकते हैं। नदियों में पानी बहाव की उचित मात्रा निर्धारित करके इनकी तलहटी में सिल्ट जमने से रोका जाए। सामाजिक भागेदारी सुनिश्चित की जाए एवं शहरों व कारखानों के नालों का पानी शोधन कर नदियों में डाला जाए । राष्ट्रीय स्तर पर योजना बनाकर
राजस्थान और मध्यप्रदेश की कई नदियों के पानी को उत्तर प्रदेश के आगरा में सीमावर्ती नदियों में जोड़ा जा सकता है।