Women's Political Empowerment Day: आधी आबादी को चाहिए पूरा हक
महिलाओं का राजनीतिक सशक्तीकरण दिवस विशेष। पंचायतों में आरक्षण ने राह दिखाई उच्च सदनों में बेरुखी। जारी है अपनी जमीन और अपने आसमान की तलाश।
आगरा, विनीत मिश्र। कल तलक मेरी निगाहों में थे पंछी डाल के, अब निशाने पर हमारे है समूचा आसमां ... आधी आबादी को पूरा हक चाहिए और इसके लिए 25 साल पहले संविधान से मिली ताकत को ढाल और तलवार बनाकर शुरू हुआ संघर्ष अब हक की लड़ाई का बिगुल बन गया है। यह जरूर है कि इस लड़ाई कड़ा मुकाबला उस दकियानूसी सोच के साथ है जो उन्हीं दहलीज के बाहर कदम रखने से रोकती है। जमीन के साथ आकाश हो या समुद्र। हर जगह महिलाओं ने अपनी प्रतिभा के बूते पहचान बनाई, लेकिन सियासत ने उनके साथ बेवफाई ही की। कभी मंच, कभी सार्वजनिक स्थानों पर महिलाओं को समाज में बराबरी का दर्जा देने की वकालत करने वालों की कमी नहीं है, लेकिन जब असल में राजनीति में उन्हें बराबरी का दर्जा देने की बात आती है, तो वकालत करने वाले भी पीछे हो जाते हैं।
ताजनगरी में भी सियासत ने महिलाओं के साथ कुछ ऐसा ही सलूक किया है। महिलाओं ने पुरुषों से मुकाबला करने की कोशिश तो की, लेकिन उन्हें हासिल कोशिश से कम ही हुआ। 24 अप्रैल 1993 को पंचायत और निकाय में महिलाओं को 33 फीसद आरक्षण तो लागू हो गया, लेकिन आज तक लोकसभा और विधानसभा में ये व्यवस्था लागू नहीं हो पाई है।
आगरा कॉलेज में राजनीति विज्ञान के प्रोफेसर अरुणोदय वाजपेयी कहते हैं कि वर्तमान में राजनीति में नौ से दस फीसद ही महिलाएं हैं। सार्वजनिक स्थानों पर महिलाओं को आधी आबादी कहा तो जाता है, लेकिन अभी पूरी तरह से माना नहीं जा रहा। महिलाओं के अधिकारों पर भाषण देने वाले भी इस व्यवस्था को लागू करने में डरते हैं। इस ढांचे में महिलाएं ठीक से फिट नहीं हो पाती हैं। नगर पालिका और पंचायत में महिलाओं को 33 फीसद आरक्षण लागू हो गया, लेकिन अभी इसे लोकसभा और विधानसभा में लागू करना है। यदि इसे विधानसभा में लागू किया जाए, तो लोकसभा पर वह ऐसी व्यवस्था का दबाव बना सकते हैं।
दूसरे, एक भ्रम लोगों में ये भी है कि दस फीसद महिलाएं जो राजनीति में अच्छे पदों पर पहुंची हैं, उनके पीछे कहीं न कहीं राजनीतिक पारिवारिक बैक ग्र्राउंड ही रहा है। आम महिला इन पदों पर पहुंचेगी, तो निश्चित ही ये भ्रम टूटेगा। मतदान को लेकर भी खासी जागरूकता आनी जरूरी है।
लोकसभा की सीढ़ी चढऩे में लगे 57 बरस
लोकसभा चुनावों में महिलाओं ने कई बार भाग्य आजमाया। लेकिन, मतदाता उन्हें दिल्ली पहुंचाने से बचते रहे। लोकसभा की सीढ़ी चढऩे में ताजनगरी से पहली महिला को 57 बरस लग गए। फतेहपुर सीकरी के चुनाव में 2009 में पहली बार बसपा प्रत्याशी के रूप में सीमा उपाध्याय ने जीत दर्ज की थी। आगरा और फतेहपुर सीकरी से एकमात्र महिला संसद पहुंच सकीं।
चार महिलाएं ही बन सकीं विधायक
विधानसभा में जिले से चार महिलाएं ही पहुंच सकीं। इनमें फतेहपुर सीकरी से चंपावती जरूर दो बार विधायक बनीं। पहली बार ऐसा हुआ जब जिले से दो महिलाएं एक साथ विधानसभा में हैं। इनमें एक बाह से पक्षालिका सिंह हैं, तो आगरा ग्र्रामीण से हेमलता दिवाकर।
बढ़ रहा मतदान में रुझान
राजनीतिक जागरूकता के बावजूद आज भी महिलाएं लोकतंत्र के उत्सव मतदान में पुरुषों से पीछे ही हैं। गौरव की बात यह है कि पिछले तीन लोकसभा चुनावों में महिला मतदाताओं के मतदान रुझान को देखें तो इसमें वह एक एक सीढ़ी चढ़कर शिखर की ओर बढ़ रही हैं।
2017 : विधानसभा चुनाव में महिला मतदान फीसद
बाह 46.99
एत्मादपुर 43.74
आगरा कैंट 43.56
आगरा दक्षिण 42.99
आगरा उत्तर 43.27
आगरा ग्र्रामीण 43.26
फतेहपुर सीकरी 44.96
खेरागढ़ 44.78
फतेहाबाद 45.10
लोकसभा चुनाव में महिला मतदान फीसद
2019
आगरा सुरक्षित 56.72
फतेहपुर सीकरी 57.90
2014
आगरा सुरक्षित 44.68
फतेहपुर सीकरी 44.49
2009
आगरा सुरक्षित 44.39
फतेहपुर सीकरी 44.38
क्यों मनाया जाता है ये दिवस
महिलाओं को राजनीति में 33 फीसद आरक्षण की भागीदारी देने की बात 73वें संविधान संशोधन में उठी थी। लेकिन तब ये लागू नहीं हो सका। बाद में 24 अप्रैल 1993 को पंचायत और निकाय व्यवस्था में महिलाओं को चुनावी राजनीति में भी 33 फीसद आरक्षण दिया जा रहा है। भारत की इस पहल को पड़ोसी देशों ने भी अपनाया। इस बार 25वां वोमेंस पॉलिटिकल इंपॉवरमेंट डे मनाया जा रहा है।