कदम-कदम पर बाधा, परीक्षा से पहले और भी हैं संकट

शुरुआत से संकट में फंसी तैयारियां और व्यवस्थाएं परीक्षा फार्म केंद्र निर्धारण और घोषणा सबकुछ हुआ देरी से

By JagranEdited By: Publish:Tue, 20 Apr 2021 10:30 PM (IST) Updated:Tue, 20 Apr 2021 10:30 PM (IST)
कदम-कदम पर बाधा, परीक्षा से पहले और भी हैं संकट
कदम-कदम पर बाधा, परीक्षा से पहले और भी हैं संकट

आगरा, जागरण संवाददाता। कोरोना संकट और विपरीत परिस्थितियों से अन्य बोर्ड भले ही धीरे-धीरे उबर रहे हों, लेकिन उप्र प्रदेश माध्यमिक शिक्षा परिषद (यूपी बोर्ड) लाकडाउन के बाद से अब तक नहीं उबर पाया है। बोर्ड परीक्षा फार्म दिसंबर तक भरे गए, वहीं परीक्षा तीन बार टाली जा चुकी है। अब भी यह कब और कैसे होगी? फिलहाल कोई नहीं जानता।

यूपी बोर्ड की हाईस्कूल और इंटरमीडिएट परीक्षा आयोजन में इतनी मुसीबत शायद ही कभी झेलनी पड़ी हो। इस असमंजस और ऊहापोह की स्थिति से जिले के एक लाख 20 हजार से ज्यादा पंजीकृत विद्यार्थी परेशान हैं। तीन बार टली परीक्षा, दो बार बदला कार्यक्रम

असमंजस का सबसे बड़ा कारण परीक्षा घोषित होने के बाद तीन बार टलना है। फरवरी में प्रस्तावित परीक्षा इस बार देरी का शिकार थी और 24 अप्रैल से कराने की घोषणा की गई। परीक्षा कार्यक्रम जारी हुआ, लेकिन बीच में पंचायत चुनाव आ गया और बोर्ड परीक्षा आठ मई तक स्थगित हो गई। संशोधित कार्यक्रम जारी हुआ, अब कोरोना संक्रमण ने परीक्षा तीसरी बार टाल दी, अब इसे 20 मई तक टाला गया है। परीक्षा कब होगी? फैसला प्रस्तावित बैठक में होगा।

और भी हैं मुश्किल

मुश्किलें यहीं खत्म होती नहीं होतीं। प्रधानाचार्य परिषद के प्रदेश वरिष्ठ उपाध्यक्ष और आरबीएस कालेज के प्रधानाचार्य डा. यतेंद्र पाल सिंह का कहना है कि बोर्ड परीक्षा जिले में 156 केंद्रों पर होनी है, जो वर्तमान परिस्थितियों को देखकर नाकाफी हैं। संसाधनों की कमी के बावजूद इन पर 800 से 1200 विद्यार्थी आवंटित हैं। ऐसे में शारीरिक दूरी का पालन कराना संभव नहीं होगा। इसलिए परीक्षा से पहले केंद्र संख्या बढ़ाने पर गंभीरता से विचार करना होगा।

दुरुस्त करें संसाधन

प्रधानाचार्य परिषद के प्रदेश महामंत्री डा. रामलखन यादव का कहना है कि परीक्षा से पहले शासन और माध्यमिक शिक्षा विभाग को केंद्रों पर संसाधन दुरुस्त कराने होंगे। वर्तमान परिस्थिति नहीं हैं कि इतने विद्यार्थियों की परीक्षा सुरक्षित परिवेश में कराई जाए। ऐसे में जिम्मेदारी विभागीय अधिकारियों की होगी।

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